पुतिन ने मनाया 73वां जन्मदिन, देखे हैं कई उतार-चढ़ाव

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर व्लादिमीरोविच पुतिन आज 7 अक्तूबर 2025 को अपना 73वां जन्मदिन मना रहे हैं। दुनिया उन्हें एक रहस्यमयी और ताकतवर नेता के रूप में जानती है, जिन्होंने रूस को दुनिया के सबसे ताकतवर देशों में बनाए रखा है। उन्होंने अपने जीवन में उतार-चढ़ाव बहुत देखे हैं।
पुतिन की कहानी एक ऐसे शख्स की कहानी है, जो सोवियत संघ के सबसे गरीब इलाकों में चूहों से लड़ते हुए बड़ा हुआ, जहां उसके पिता कारखाने की मशीनों के बीच पसीना बहाते थे और मां सड़कों पर झाड़ू लगाती थीं। व्लादिमीर पुतिन का जन्म 7 अक्टूबर 1952 को लेनिनग्राद में हुआ था। यह शहर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी की घेराबंदी से बुरी तरह जूझ चुका था। पुतिन के पिता व्लादिमीर स्पिरिडोनोविच पुतिन और मां मारिया इवानोव्ना शेलोमोवा को इस जंग ने बहुत सारे जख्म दिए थे। उनके 2 बड़े बच्चे पहले ही काल का ग्रास बन गए थे। एक बच्चे की मौत डिप्थीरिया से हुई थी और दूसरा बचपन में किसी बीमारी से चल बसा था। पुतिन को परिवार का मिरैकल चाइल्ड कहा जाता था, क्योंकि वह ऐसे समय पैदा हुए जब उनके घर में बहुत अभाव था और मां को अक्सर भूखे पेट रहना पड़ता था।पुतिन के पिता एक मेटल फैक्ट्री में फोरमैन थे। जंग के दौरान वह बुरी तरह घायल हो चुके थे। उन्हें गोली लगी थी, जिसके बाद वे कभी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो सके। मां मारिया तरह-तरह के छोटे-मोटे काम किया करती थीं जैसे कि कभी सड़कों की सफाई, कभी फैक्ट्रियों में मजदूरी। घर में बिजली-पानी जैसी बेसिक सुविधाएं भी नहीं थीं, और परिवार 3 अन्य परिवारों के साथ एक छोटे से अपार्टमेंट में रहता था।
स्कूल के दिनों में पुतिन एक औसत छात्र थे। वो जूडो की क्लास लेते थे, जो उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट बना। जूडो ने उन्हें अनुशासन सिखाया। 1970 के दशक में, जब वो लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी में कानून पढ़ रहे थे, तो उन्हें जासूसी फिल्मों ने आकर्षित किया। द शील्ड एंड द स्वॉर्ड जैसी सोवियत फिल्में देखकर वो सोवियत खुफिया एजेंसी केजीबी में शामिल होने का सपना देखने लगे। ग्रेजुएशन के बाद 1975 में वो केजीबी में भर्ती हो गए। यहां उनकी जासूसी वगैरह की ट्रेनिंग शुरू हुई। 1985 से 1990 तक वो पूर्व जर्मनी के ड्रेस्डेन में तैनात रहे, जहां वो नाटो के राज उगलवाने की कोशिश करते लेकिन, बर्लिन वॉल गिरने पर उन्हें अचानक सारा काम रोकना पड़ा और केजीबी के दस्तावेज बचाने के लिए उन्होंने उनमें आग लगा दी। इस अनुभव ने उन्हें सिखा दिया कि अराजकता में मजबूत केंद्रीय सत्ता कितनी जरूरी है। सोवियत संघ के विघटन के बाद 1991 में पुतिन केजीबी छोड़कर लेनिनग्राद लौट आए। यहां किस्मत ने उनका साथ दिया। वो अपने पुराने प्रोफेसर अनातोली सोबचाक के सहायक बने, जो शहर के नए मेयर चुने गए थे।