पुतिन की बादशाहत कायम

यूक्रेन पर हमले को लेकर यूरोप मंे आलोचना का शिकार हो रहे ब्लादिमीर पुतिन को 15 से 17 मार्च 2024 तक हुए चुनाव मंे रूस की जनता का भरपूर समर्थन मिला है। इस प्रकार वहां की जनता ने साबित कर दिया कि पुतिन जो भी फैसले कर रहे हैं, ठीक कर रहे हैं। पुतिन भी तानाशाह हैं, इसमंे कोई संदेह नहीं लेकिन ग्रह-नक्षत्र इन्हीं नेताओं के अनुकूल हैं। चीन मंे शी जिनपिंग लगभग जीवन भर के लिए राष्ट्रपति बन गये हैं तो इजरायल मंे बेंजामिन नेतन्याहू की कुर्सी भी कोई हिला नहीं पा रहा है। रूस मंे पुतिन को 2030 तक कुर्सी फिर से मिल गयी है। पुतिन की बादशाहत कुछ चिंता भी पैदा करती है क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय देशों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रा की चेतावनी के बाद ही पुतिन ने परमाणु हमले की धमकी दी थी। कहा तो यहां तक जाता है कि पुतिन ने यूक्रेन पर परमाणु हमले की तैयारी भी कर ली थी लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समझाने पर उन्हांेने अपना इरादा बदल दिया था। भारत रूस के साथ सामान्य संबंध बनाए हुए हैं और प्रतिबंधों के बावजूद मोदी की सरकार ने रूस से कच्चा तेल खरीदा। इसलिए यूरोपीय देशो को भी रूस के प्रति उत्तेजना कम करनी होगी। यूक्रेन ने भी रूस की कई तेल रिफाइनरियों पर ड्रोन से हमले किये हैं और रूस का आरोप है कि यूक्रेन ने रूस के इलाकों मंे हमले बढ़ाकर चुनाव को भी प्रभावित करने का प्रयास किया था। फरवरी 2022 मंे रूस और यूक्रेन का युद्ध शुरू हुआ था। इसे रोकने का प्रयास तो विश्व स्तर पर होना चाहिए लेकिन रूस पर इतना दबाव भी न डाला जाए जिससे हिरोशिमा और नागासाकी जैसे हालात पैदा हो जाएं। पुतिन की लोकप्रियता कायम है। चुनाव मंे केरल मंे रह रहे रूसी नागरिकों ने भी मतदान किया था।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 18 मार्च को पश्चिम को चेतावनी देते हुए कहा कि रूस और अमेरिका के नेतृत्व वाली नाटो सैन्य गठबंधन के बीच सीधे संघर्ष का मतलब ये है कि धरती तीसरे विश्व युद्ध से सिर्फ एक कदम दूर है लेकिन आज के वक्त में शायद ही कोई इस तरह की परिस्थिति चाहता हो। यूक्रेन युद्ध ने 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट के बाद से पश्चिम के साथ मास्को के संबंधों में एक गहरा संकट पैदा कर दिया है। पुतिन अक्सर ही परमाणु युद्ध के खतरों के बारे में चेतावनी देते रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि उन्हें कभी भी यूक्रेन में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की जरूरत महसूस नहीं हुई। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रा ने पिछले महीने कहा था कि वह भविष्य में यूक्रेन में जमीनी सैनिकों की तैनाती से इनकार नहीं कर सकते हैं फिर चाहे कई पश्चिमी देशों ने इससे दूरी क्यों न बना ली हो। वहीं अन्य खासतौर पर पूर्वी यूरोप ने यूक्रेन ने अपना समर्थन व्यक्त किया है।
पुतिन ने सोवियत-रूसी इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी जीत के बाद संवाददाताओं से कहा, यह सभी के लिए स्पष्ट है कि यूरोप का दबाव तीसरे विश्व युद्ध से एक कदम दूर होगा। मुझे लगता है कि शायद ही किसी को इसमें दिलचस्पी है। हालांकि, पुतिन ने कहा कि नाटो के सैन्यकर्मी पहले से ही यूक्रेन में मौजूद थे, उन्होंने कहा कि रूस ने युद्ध के मैदान में बोली जाने वाली अंग्रेजी और फ्रेंच दोनों भाषा सीख ली हैं। उन्होंने कहा, इसमें किसी के लिए कुछ अच्छा नहीं है, खासतौर पर उनके लिए क्योंकि वो वहां बड़ी संख्या में मर रहे हैं। रूसी चुनाव से पहले, यूक्रेन ने रूस के खिलाफ हमले तेज कर दिए, सीमावर्ती क्षेत्रों पर गोलाबारी की और यहां तक कि रूस की सीमाओं को भेदने की कोशिश करने के लिए हथियारों का इस्तेमाल भी किया।
पुतिन ने कहा कि वह चाहते हैं कि मैक्रा यूक्रेन में युद्ध को बढ़ाने की कोशिश करना बंद कर दें, लेकिन शांति स्थापित करने में भूमिका निभाएं। ऐसा लगता है कि फ्रांस एक भूमिका निभा सकता है। अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। पुतिन ने कहा, मैं इसे बार-बार कह रहा हूं और मैं इसे फिर से कहूंगा। हम शांति वार्ता के पक्ष में है। पुतिन ने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका ने यूक्रेन में अपने सैनिक भेजे तो रूस परमाणु युद्ध के लिए तकनीकी तौर पर तैयार है। हालांकि, उन्होंने ये भी कहा है कि वे परमाणु हथियार इस्तेमाल में कोई जल्दबाजी नहीं करेंगे। वे यूक्रेन में परमाणु हथियार के इस्तेमाल की कोई जरूरत नहीं देखते मगर, सैन्य और तकनीकी तौर पर रूस इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। पुतिन ने कहा कि यूक्रेन में अगर अमेरिका कहीं भी अपने सैनिकों की तैनाती करता है तो इसे रूस दखलंदाजी के तौर पर देखेगा। परमाणु हथियार के इस्तेमाल को लेकर रूस ने अपने कायदे तय कर रखे हैं कि किन हालातों में इसका इस्तेमाल करना है।
2022 फरवरी में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है लेकिन युद्ध का अंत होता नजर नहीं आ रहा। इस बीच रूस में राष्ट्रपति चुनाव हुआ, जिसमें एक बार फिर पुतिन के चुन कर आने की पूरी संभावना है।
रूस में हो रहे राष्ट्रपति चुनाव के लिए केरल के तिरुवनंतपुरम में वोट डाले गये हैं। केरल में रहने वाले रूसी नागरिकों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए तिरुवनंतपुरम में रूसी संघ के मानद वाणिज्य दूतावास के रूसी हाउस में खास तौर बने पोलिंग बूथ पर अपना वोट डाला। रूस के मानद वाणिज्य दूत और तिरुवनंतपुरम में रूसी हाउस के निदेशक रथीश नायर ने कहा, कि तीसरी बार उन्होंने रूसी राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग की व्यवस्था की है। इसके साथ ही उन्होंने केरल में हो रही वोटिंग प्रक्रिया में सहयोग के लिए रूसी नागरिकों का आभार जताया। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 17 मार्च को रूस के चुनाव में रिकॉर्ड जीत हासिल की। इस जीत से सत्ता पर उनकी पहले से ही मजबूत पकड़ और मजबूत हो गई। उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि देश पश्चिम के सामने खड़ा होने और यूक्रेन में सैनिक भेजने के लिए सही था। अपने नए कार्यकाल पूरा करने पर वह जोसेफ स्टालिन से आगे निकल जाएंगे और रूस के सबसे लंबे समय राज करने वाले नेता बन जाएंगे। पुतिन, एक पूर्व केजीबी लेफ्टिनेंट कर्नल हैं, वह पहली बार 1999 में सत्ता में आए थे। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि परिणाम से पश्चिम को एक संदेश जाना चाहिए कि उसके नेताओं को एक साहसी रूस के साथ समझौता करना होगा, चाहे वह युद्ध में हो या शांति में। इस परिणाम का मतलब है कि 71 वर्षीय पुतिन एक नए छह साल के कार्यकाल के लिए तैयार हैं। लस्टर पब्लिक ओपिनियन फाउंडेशन के एक एग्जिट पोल के मुताबिक, पुतिन ने 87.8 फीसद वोट हासिल किए, जो रूस के सोवियत इतिहास के बाद का सबसे बड़ा परिणाम है। रशियन पब्लिक ओपिनियन रिसर्च सेंटर (वीसीआईओएम) ने पुतिन को 87 फीसद पर रखा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम और अन्य देशों ने कहा है कि राजनीतिक विरोधियों की कैद और सेंसरशिप के कारण वोट न तो स्वतंत्र था और न ही निष्पक्ष था। आंशिक नतीजों के अनुसार, कम्युनिस्ट उम्मीदवार निकोलाई खारितोनोव 4 फीसद से कम वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे, नवागंतुक व्लादिस्लाव दावानकोव तीसरे और अति-राष्ट्रवादी लियोनिद स्लटस्की चैथे स्थान पर रहे। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)