लेखक की कलम

दुलारचंद की हत्या से उठे सवाल

बिहार ही नहीं, यह पूरे देश के लिए और भारत के उस लेकतंत्र के लिए भी, जिसकी पूरी दुनिया मंें तारीफ होती है। शर्म की बात है कि बिहार विधानसभा चुनाव मतदान से पहले ही रक्तरंजित हो गया। इसमंे कोई दो राय नहीं कि दुलारचंद यादव को राजनीतिक कारणों से मारा गया। मोकामा विधानसभा क्षेत्र की चर्चा पहले से हो रही थी क्योंकि यहां दो बाहुबली चुनाव लड़ रहे हैं। सत्ता पक्ष की तरफ से माफिया अनंत सिंह हैं तो मुख्य विपक्षी दल राजद की तरफ से सूरजभान सिंह मोर्चा संभाले हैं क्योंकि उनकी पत्नी वीणी देवी चुनाव लड़ रही हैं। दुलारचंद यादव इस क्षेत्र मंे प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी (जसुपा) के प्रत्याशी का प्रचार कर रहे थे। उनकी हत्या के बाद कई सवाल उठ रहे है। पहला तो यही कि रामदुलार यादव की हत्या किसने करायी? रामदुलार के परिजन सीधे-सीधे अनंत सिंह को जिम्मेदार बता रहे हैं और यह भी कह रहे हैं कि उनके परिवार के तीन लोगों की हत्या पहले ही अनंत सिंह ने करवाई है। उधर, अनंत सिंह इस आरोप को खारिज करते हैं। यह एक सामान्य बात है कि कोई भी आरोप तब तक नहीं स्वीकार करता, जब तक अदालत मंे यह साबित न हो जाए। दुलारचंद यादव को पहले गोली मारी गयी, फिर वाहन से कुचला गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मंे डाक्टरों ने मृत्यु का कारण कार्डियो-पल्मोनरी फेल्योर विद ब्लंट इंजरी बताया है। इस प्रकार मामला उलझा है। दूसरा महत्वपूर्ण सवाल है कि मोकामा मंे क्या जनसुराज पार्टी का प्रभाव ज्यादा है? बिहार में प्रशांत किशोर की चुनाव मंे चर्चा हो रही है और जनसुराज पार्टी जीत-हार के समीकरण बदल सकती है। तीसरा सवाल यह है कि मोकामा क्षेत्र मंे बाहुबलियों की भरमार है तो नीतीश सरकार और चुनाव आयोग दोनों ने सुरक्षा में कोताही क्यों बरती? बिहार मंे विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण माहौल मंे सम्पन्न हों, इसकी जिम्मेदारी चुनाव आयोग की हैं सिर्फ एसआईआर से चुनाव आयोग का कर्तव्य पूरा नहीं हो गया है।
बिहार के मोकामा में गत 30 अक्टूबर को चुनावों में हिंसा की पहली गंभीर घटना तब हुई जब जन सुराज उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी का काफिला, जिसमें दुलारचंद भी शामिल थे और अनंत सिंह के काफिले तारातर गांव के बसावन चक के पास आपस में टकरा गए। उसके बाद पत्थरबाजी शुरू हो गई और तड़ातड़ गोलियां चलने लगीं। अफरा-तफरी के बीच, दुलारचंद को पहले गोली मारी गई, फिर एक वाहन ने उन्हें कुचल दिया। इस घटना में लगभग एक दर्जन अन्य लोग घायल हो गए। चुनाव आयोग ने इस घटना पर बिहार के डीजीपी से रिपोर्ट मांगी है। पुलिस ने चार एफआईआर दर्ज की हैं, जिनमें से एक दुलारचंद के परिवार द्वारा अनंत सिंह के खिलाफ और वहीं दूसरी अनंत सिंह के समर्थकों द्वारा जन सुराज कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज की गई है।
मोकामा में इस बार मतदान पहले चरण में यानी 6 नवंबर को है लेकिन इससे पहले एक बार फिर से रक्त रंजित बिहार और बाहुबलियों की ताकत की गवाही दे रहा है। बिहार की हॉट सीट कहे जाने वाले मोकामा में अपराध, राजनीति और बाहुबलियों के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। मारे गए शख्स का नाम 75 वर्षीय दुलारचंद यादव था, जिनके संपर्क मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद से तो थे ही, दूसरे काफिले में शामिल बाहुबली और जदयू के मोकामा उम्मीदवार अनंत सिंह से भी उनकी नजदीकी रही है। मोकामा में, जहां अपराध, राजनीति और जाति अक्सर एक-दूसरे से टकराते रहे हैं, यहां के लोगों के लिए कोई नई बात नहीं है। भूमिहारों के प्रभुत्व वाले मोकामा ने 1952 के बाद से शायद ही कभी कोई ऐसा विधायक चुना हो जो भूमिहार न हो। मोकामा को बिना किसी आपराधिक रिकॉर्ड वाला कोई भी प्रतिनिधि नहीं मिला जिसकी वजह से मोकामा को भूमिहारों की राजधानी का तमगा मिला। गैर-भूमिहार दुलारचंद की बात करें तो उनके खिलाफ भी आपराधिक मामलों की सूची साल 1991 से शुरू होती है, जब उनका नाम कांग्रेस कार्यकर्ता सीताराम सिंह की हत्या में समाने आया था। उनके सह-आरोपी अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह और नीतीश कुमार शामिल थे। माना जा रहा है कि दुलारचंद और अनंत सिंह के बीच तनाव की वजह रही दुलारचंद की प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के प्रति उनकी निष्ठा। जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी के लिए उनके प्रचार और अनंत सिंह की आलोचना ने मामले को और बिगाड़ दिया। दुलारचंद तब चर्चा में आए जब 1990 के दशक में लालू ने मोकामा में यादव नेताओं को संरक्षण दिया ताकि भूमिहार वर्चस्व को चुनौती दी जा सके। बिहार में कई नेता उसी व्यवस्था में जड़ जमा चुके थे, लेकिन 2005 से अनंत सिंह ने मोकामा में नियंत्रण जमाया और भूमिहारों के स्वामित्व वाली पुरानी व्यवस्था फिर से स्थापित हो गई है। मोकामा से 2020 के चुनाव में, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की, अनंत सिंह ने अपने हलफनामे में 38 मामलों का जिक्र किया, हालांकि आधिकारिक रिकॉर्ड में 1979 से अब तक 50 से ज्यादा मामले उन पर दर्ज हैं।
मोकामा से अनंत सिंह जहां इस बार जदयू के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीं इस बीच, एक और बाहुबली की पत्नी वीणा देवी ने राजद से टिकट मिलने पर मोकामा के चुनावी जंग में शंखनाद किया और अनंत सिंह के खिलाफ मैदान में कूद पड़ीं। सूरजभान सिंह, जो खुद भी भूमिहार हैं और अनंत सिंह की ही तरह बाहुबली भी हैं। अनंत सिंह और सूरजभान की राजनीतिक लड़ाई दशकों से मोकामा की राजनीति को परिभाषित करती रही है। सूरजभान ने पहली बार 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राजनीति में
प्रवेश किया था, और अनंत सिंह के
बड़े भाई, जो उस समय राजद के मंत्री थे, को मोकामा से करारी शिकस्त दी थी। मोकामा में दिलीप सिंह को बड़े सरकार के नाम से जाना जाता है, तो अनंत सिंह को छोटे सरकार कहा जाता है।
अपराध से जुड़े इन मामलों के कारण सूरजभान के चुनाव लड़ने पर रोक लगी हुई है और इसी वजह से सूरजभान ने अपनी पत्नी वीणा देवी को अनंत सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में खड़ा किया है। जन सुराज ने राजनीति में इस अपराध से लड़ने के वादे के इर्द-गिर्द अपना अभियान तैयार किया है। इसके उम्मीदवार 30 वर्षीय प्रियदर्शी एक अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) हैं, जिन्होंने शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवा जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है, और मोकामा को बिहार के स्थायी जंगल राज का एक उदाहरण बताया है। पुलिस ने दुलारचंद के पोते की शिकायत पर जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह, उनके भतीजों रणवीर सिंह और कर्मवीर सिंह समेत 5 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज की है। करीब दस बजे दुलारचंद का शव पोस्टमॉर्टम के लिए बाढ़ अस्पताल ले जाया जा रहा था। तारताड़ से अस्पताल की दूरी करीब 25 किलोमीटर है। हजारों लोगों का काफिला साथ चला। बीच-बीच में शव को श्रद्धांजलि दी जा रही थी, लेकिन रास्ते में अनंत सिंह के समर्थक और दुलारचंद के समर्थक आमने-सामने भिड़ गए। ट्रैक्टर पर सवार होकर राजद उम्मीदवार वीणा देवी (बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी) भी शामिल हुईं। उनके समर्थकों ने अनंत सिंह के खिलाफ नारेबाजी शुरू की, जिससे भड़कते हुए अनंत सिंह समर्थकों ने पथराव कर दिया।आरोप है कि अनंत सिंह के समर्थकों ने शव ले जा रही गाड़ी पर भी पत्थर फेंके। जवाब में दुलारचंद समर्थकों ने लाठी-डंडे चलाए।
अनंत सिंह ने हत्या में अपना और समर्थकों का हाथ होने से इनकार करते हुए सूरजभान सिंह पर आरोप लगाए हैं। दुलारचंद की हत्या पर प्रतिक्रिया देते हुए सूरजभान सिंह ने कहा कि जो हुआ, वह दुखद है। उन्होंने कहा, लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं। इस मर्डर की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। वहीं, चुनाव आयोग ने बिहार के डीजीपी से इस पूरे मामले पर रिपोर्ट तलब की है।
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button