विश्व-लोक

राणा के मन में भारतीयों के प्रति भरा था जह

नवंबर 2008 में मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों ने भारत को झकझोर कर रख दिया था। अब अमेरिकी न्याय विभाग के एक दस्तावेज ने इस हमले में तहव्वुर राणा की भूमिका पर नई रोशनी डाली है। दस्तावेज के अनुसार, तहव्वुर राणा ने अपने बचपन के दोस्त डेविड कोलमैन हेडली से हमले के तुरंत बाद कहा कि आतंकवादियों को पाकिस्तान का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ‘निशान-ए-हैदर’ मिलना चाहिए। इतना ही नहीं, राणा ने यह भी कहा कि ‘भारतीय इसके लायक थे’। यह दिखाता है कि राणा के मन में भारतीयों के लिए कितना जहर भरा था। डेविड कोलमैन हेडली वही व्यक्ति है जिसने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों के आदेश पर मुंबई में लक्ष्यों की रेकी की थी।
दस्तावेज में कहा गया, ‘हेडली के साथ एक इंटरसेप्टेड बातचीत में, राणा ने मुंबई हमले को अंजाम देते समय मारे गए 9 आतंकियों की तारीफ की। उसने तारीफ में कहा कि उन्हें निशान ए हैदर मिलना चाहिए। पाकिस्तान का युद्ध में वीरता के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है जो मारे गए सैनिकों को मिलता है।’ दस्तावेज में आगे बताया गया, ‘राणा पर भारत में कई अपराधों का आरोप है, जिसमें साजिश, हत्या, आतंकवादी कृत्य और जालसाजी शामिल हैं। यह 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों में उसकी कथित संलिप्तता से जुड़ा है, जिसे लश्कर-ए-तैयबा की ओर से अंजाम दिया गया था।’
26 से 29 नवंबर, 2008 तक चले इन हमलों में दस आतंकवादियों ने मुंबई को खून से रंग दिया था। दस्तावेज में कहा गया, ‘समुद्र के रास्ते शहर में घुसकर आतंकवादी छोटी-छोटी टुकड़ियों में बंट गए और 12 समन्वित हमले किए। एक ट्रेन स्टेशन पर हमलावरों ने भीड़ पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं और ग्रेनेड फेंके। दो रेस्तरां में ग्राहकों पर अंधाधुंध फायरिंग की गई। ताज महल पैलेस होटल में आतंकियों ने मेहमानों को गोली मारी और विस्फोटक लगाए। नरीमन हाउस के यहूदी सामुदायिक केंद्र में भी हमलावरों ने कई लोगों को बेरहमी से मार डाला।’ अमेरिकी न्याय विभाग का दस्तावेज बताता है, ‘जब आतंक रुका तो 6 अमेरिकी समेत 166 पीड़ित मारे गए। मुंबई को 1.5 बिलियन डॉलर की संपत्ति क्षति हुई। भारत के इतिहास का यह सबसे भयानक और विनाशकारी हमला था।’ भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने 10 अप्रैल शाम को राणा को औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया, जिसे अमेरिका से ‘सफलतापूर्वक प्रत्यर्पित’ किया गया था। राणा ने 1990 के दशक के अंत में कनाडा जाने से पहले पाकिस्तान सेना के चिकित्सा कोर में सेवा की थी और एक इमीग्रेशन कंसल्टेंसी फर्म शुरू की थी। बाद में वह अमेरिका चला गए और शिकागो में एक ऑफिस बनाया।

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