राजनीति

हरियाणा की जीत में सैनी के फैसले

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
हरियाणा में एग्जिट पोल और मतगणना में काफी उलटफेर के बाद भाजपा की बड़ी जीत को लेकर चर्चा होना स्वाभाविक है। एक तरफ नई सरकार के चेहरों को लेकर पार्टी में मंथन जारी था तो दूसरी तरफ पर्दे के पीछे के हीरो तलाशे जा रहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर लोकसभा से लेकर राज्य विधानसभा के चुनाव लड़े जाते हैं इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन दूसरे लोग भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हरियाणा में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की रणनीति की चर्चा इसी संदर्भ में की जा रही है। उनको दुबारा मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। गत 10 अक्टूबर को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और राज्य के प्रभारी वरिष्ठ मंत्री के बीच मंत्रिमंडल विस्तार और शपथ ग्रहण कार्यक्रम को लेकर चर्चा हुई थी। सूत्रों ने बताया कि नायब सिंह सैनी के मंत्रिमंडल में उनके अलावा 12 मंत्रियों को शामिल किया जा सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि इस जीत में कहीं न कहीं नायब सिंह सैनी सरकार के कुछ फैसलों का भी योगदान है जैसे कि उन्होंने अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया था। सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए धानुक, बाजीगर, कबीरपंथी, वाल्मीकि, मजहबी और मजहबी सिख को वंचित अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल किया तो चमार, राहगर, रैगड़, रविदासी, रामदासी और मोची को अन्य एससी जातियों में उप-वर्गीकृत करने का फैसला किया। यह फैसला भी बीजेपी के लिए फायदेमंद रहा। सैनी का चुनाव में मुकाबला करने वाले संदीप गर्ग तो जनसेवा से ही पीछे हट गये। दरअसल लाडवा से संदीप गर्ग चुनाव परिणाम घोषित होने के तुरंत बाद से दिखाई नहीं दे रहे हैं। उन्हें इस चुनाव में महज 2262 वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई थी। संदीप गर्ग ने अप्रैल 2022 में लाडवा में जनता रसोई खोली थी। बाद में लाडवा शहर के बाद चार अन्य जगह लाडवा विधानसभा के कस्बा बाबैन, गांव मथाना, यहां तक की उन्होंने साथ लगती विधानसभा शाहाबाद और रादौर में भी रसोई खोली थी। इन रसोई में आम लोगों को पांच रुपये में खाना मिलता था। हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद ऐसे कई नेता सामने आए हैं जिन्होंने चुनाव हारने के बाद नतीजों के अगले दिन ही समाज सेवा से किनारा कर लिया है। लाडवा से कार्यवाहक सीएम नायब सैनी के सामने बागी निर्दलीय चुनाव लड़ने के बाद जमानत जब्त करवा बैठे संदीप गर्ग ने लाडवा में आम लोगों के लिए पांच रुपये में खाना खिलाने वाली पांचों जनता रसोईयां बंद कर दी हैं।
हरियाणा की नई भाजपा सरकार में अनिल विज (पंजाबी), कृष्ण बेदी (वाल्मिकी), कृष्णलाल पंवार (जाटव), अरविंद शर्मा (ब्राह्मण), कृष्ण मिड्डा (पंजाबी), महिपाल ढांडा (जाट), मूलचंद शर्मा (ब्राह्मण), लक्ष्मण यादव (यादव), राव नरबीर (यादव), सुनील सांगवान (जाट), बिपुल गोयल (बनिया), तेजपाल तंवर (गुर्जर) को मंत्री बनाया जा सकता है। यानि दो-दो पंजाबी, ब्राह्मण, जाट और यादव जाति से मंत्री बनेंगे। वहीं एक-एक बनिया, गुर्जर, वाल्मिकी और जाटव जाति से मंत्री बनेंगे। अनिल विज खट्टर सरकार में गृहमंत्री थे, हालांकि उन्होंने नाराजगी के बाद नायब सिंह सैनी सरकार में नहीं शामिल होने का फैसला लिया।
चुनाव नतीजों के बाद से ही कैबिनेट में नए चेहरों को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी, क्योंकि सैनी सरकार में शामिल रहे 10 में से 8 मंत्रियों को इसबार हार का सामना करना पड़ा है। थानेसर से सुभाष सुधा, नूंह से संजय सिंह, अंबाला सिटी से असीम गोयल, हिसार से कमल गुप्ता, जगाधरी से कंवर पाल, लोहारू से जेपी दलाल, नांगल चौधरी से अभे सिंह यादव, रानियां से रणजीत सिंह चौटाला को हार का सामना करना पड़ा है।
प्रदेश में मुख्यमंत्री के नाम पर अब कोई विवाद नहीं है। नायब सिंह सैनी का ही फिर से मुख्यमंत्री बनना तय है। भाजपा ने इस बार 48 सीटें जीती हैं। हरियाणा में लगातार तीसरी बार जीतकर सरकार बनाने का एक रिकॉर्ड है, ऐसे में नायब सैनी की कैबिनेट के नाम तय करते वक्त सभी जाति समुदाय और इलाके को साधने का प्रयास किया गया ताकि ये संदेश जाए कि बीजेपी जाति विशेष को लेकर राजनीति नहीं करती, बल्कि सर्वसमाज को लेकर चलने वाली पार्टी है।
हरियाणा में जाति आधारित वोटों पर किए गए सर्वे से पता चला कि बीजेपी हो या कांग्रेस चाहे सवर्ण हों या ओबीसी या दलित किसी ने भी एकजुट होकर एक पार्टी को वोट नहीं दिया है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आने के बाद अब जातिगत वोटों पर चर्चा चल रही है कि किस पार्टी को किस जाति के वोट पड़े। इस बीच सीडीएस का एक सर्वे आया है जिससे यह जाहिर होता है कि चाहे वह चुनाव जीतने वाली बीजेपी रही है यो उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस दोनों में से किसी को भी किसी भी जाति का एकमुश्त वोट नहीं मिला है। जातिगत वोटों में बिखराव नजर आया है। दलित वोट की हरियाणा में खूब चर्चा रही है। सीएसडीएस की मानें तो 50 फीसदी जाटव मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट दिया है जबकि 35 फीसदी ने बीजेपी के पक्ष में वोट डाले हैं। बसपा प्रमुख मायावती की चिंता का यही कारण रहा कि उनका परम्परागत वोट बंट गया। स्थानीय दल इस मामले में बसपा की कोई मदद नहीं कर सके। वहीं, अन्य अनुसूचित जातियों की बात करें तो इनमें से 45 फीसदी ने बीजेपी और 33 फीसदी ने कांग्रेस को अपना वोट दिया है। कांग्रेस सत्ता में वापसी करने के लिए दलित और जाट वोटों पर निर्भर रही है लेकिन बीजेपी ने कांग्रेस के दलित और जाट वोट बैंक में सेंध लगा दी। हरियाणा में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 17 सीटें हैं। इनमें से बीजेपी ने आठ जीत लीं। बाकी नौ कांग्रेस ने जीतीं। बीजेपी ने दलित क्षेत्र वाले नीलोखेड़ी, पटौदी, खरखौदा, होडल, बावल, नरवाना, इसराना और बवानी खेड़ा पर जीत हासिल की। हैरानी की बात यह रही कि कांग्रेस के प्रदेश
अध्यक्ष उदयभान हार गए। बीजेपी ने 2019 के विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पांच सीटें जीती थीं।
इस प्रकार हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत में कहीं न कहीं नायब सिंह सैनी सरकार के कुछ फैसलों का भी योगदान है जैसे कि उन्होंने अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया था। सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए धानुक, बाजीगर, कबीरपंथी, वाल्मीकि, मजहबी और मजहबी सिख को वंचित अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल किया तो चमार, राहगर, रैगड़, रविदासी, रामदासी और मोची को अन्य एससी जातियों में उप-वर्गीकृत करने का फैसला किया। यह फैसला भाजपा के लिए वोटों की दृष्टि से फायदेमंद रहा है।
सैनी की रणनीति के तहत ही भाजपा ने सोनीपत, रोहतक और जींद जिलों के निर्वाचन क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में सीटें जीतीं। ये जाट बहुल क्षेत्र हैं। जाटों के गढ़ में बीजेपी ने पांच सीटें जीतीं। इनमें गोहाना, जींद, सफीदों, सोनीपत और उचाना कलां शामिल हैं। कांग्रेस ने बरोदा, बेरी, गढ़ी सांपला-किलोई, जुलाना, महम और रोहतक में जीत दर्ज की। कांग्रेस काफी हद तक जाट वोटों की एकजुटता और दलित वोटों पर निर्भर थी, लेकिन बीजेपी ने इन दोनों वोट बैंकों में बड़ी बढ़त हासिल की है। (हिफी)

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