सम-सामयिक

चुनाव ड्यूटी पर जान गंवाने वाले लोकसेवकों को नमन!

 

¨चुनाव ड्यूटी में 123 कर्मचारियों ने गंवाई जान।
¨संसद में दी जानी चाहिए उन्हें श्रद्धांजलि।

अठारहवीं लोकसभा अस्तित्व में आ चुकी है। लोकतंत्र के इस महापर्व के आयोजन के फलस्वरूप 543 सांसद चुने गए। कुछ मंत्री बन गए। प्रधानमंत्री लोकसभा स्पीकर और विपक्ष के नेता बन गए। इस लोकतंत्र के बुनियादी कार्यक्रम आम चुनाव को सम्पन्न कराने के लिए कुल दस लाख से अधिक केंद्र व राज्य कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई गई थी। इन चुनावों को सम्पन्न कराने के लिए अपने घर परिवार बच्चों को छोड़कर मतदान केंद्रों पर ड्यूटी देने गए 123 कर्मचारी अपने घर जीवित वापस नहीं आए, वरन् वह अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ड्यूटी पर ही विभिन्न कारणों से जान गंवा गए। चुनाव आयोग को चुनाव कराने के लिए बड़ी संख्या में कर्मियों की जरूरत होती है और ये कर्मी विभिन्न सरकारी विभागों, सरकारी स्कूल के शिक्षकों, राष्ट्रीयकृत बैंकों और एलआईसी सहित विभिन्न उद्यमों जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से लिये जाते हैं। मतदान दलों में पीठासीन अधिकारी और मतदान अधिकारी, सेक्टर और जोनल अधिकारी, माइक्रो-ऑब्जर्वर, सहायक व्यय पर्यवेक्षक, चुनाव में उपयोग किए जाने वाले वाहनों के ड्राइवर, कंडक्टर और क्लीनर आदि शामिल होते सुरक्षा और कानून व्यवस्था में शामिल पुलिसकर्मी, सेक्टर और जोनल अधिकारी , रिटर्निंग अधिकारी, सहायक रिटर्निंग अधिकारी, जिला चुनाव अधिकारी और उनके कर्मचारी, अन्य लोगों में से हैं जो देश भर के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अपने-अपने जिलों में चुनाव कराने में मदद करते हैं। चुनाव ड्यूटी के लिए नियुक्त लोगों के अनुपस्थित रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। अनुपस्थिति पर आयोग की ओर से दंड दिया जाता है। चुनाव कार्य में केवल उन्हीं कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जा सकती है जो केंद्र या राज्य के स्थायी कर्मचारी हैं। इसके बाद भी अगर जरूरत पड़ती है तो उन कर्मचारियों की भी ड्यूटी लगाई जा सकती है जो रिटायर होने के बाद प्रतिनियुक्ति पर हैं।

चुनाव कार्य में किसी भी प्रकार का कांट्रैक्ट व दैनिक वेतनभोगी की ड्यूटी नहीं लगाई जा सकती है। किन्तु पति-पत्नी दोनों सरकारी कर्मचारी हैं तो उन दोनो में किसी एक को छूट मिल सकती है। ऐसे में पति-पत्नी दोनों की ड्यूटी नहीं लगाई जाएगी। दंपति में से कोई एक बच्चों या अपने बुजुर्ग मां-बाप की सेवा के लिए अपनी ड्यूटी हटाने के लिए आवेदन दे सकता है।

उत्तर प्रदेश में ही 54 कर्मचारियों की ड्यूटी करते हुए मौत हो गई। 33 मौतें तो वोटिंग के आखिरी दिन 1 जून को हुईं। मरने वालों में ज्यादातर होमगार्ड्स थे, जिनके परिवारों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। कुछ परिवार ऐसे हैं, जिन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं बचा। उनकी आखिरी उम्मीद 15 लाख रुपए का सरकारी मुआवजा है, जोकि अभी तक नहीं मिला है। उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के अन्य राज्यों में भी चुनाव ड्यूटी के दौरान कई कर्मचारियों की मौत हुई है। चुनाव आयोग से इसकी जानकारी मांगी गयी परन्तु कोई जवाब नहीं मिला। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों में अधिकारियों से बात की, तो पता चला कि मध्यप्रदेश में 27, असम में 15, राजस्थान-छत्तीसगढ़ में 8-8, पंजाब में 7 और दिल्ली में 4 मौतें हुई हैं। ड्यूटी पर जान गंवाने वाले इन कर्मचारियों में से अभी तक सिर्फ 27 के आश्रितों को सरकार की ओर से मदद मिली है जबकि बाकी मृतकों के आश्रितों को अभी कोई मदद नहीं मिली है। इलेक्शन ड्यूटी के दौरान मरने वाले पोलिंग स्टाफ का डेटा और उन्हें मिलने वाली आर्थिक मदद के बारे उत्तर प्रदेश स्टेट इलेक्शन कमीशन के असिस्टेंट चीफ इलेक्टोरल अफसर अरबिंद कुमार पांडेय के अनुसार चुनाव खत्म होने के बाद हमने यूपी के सभी जिलों से पोलिंग कर्मचारियों की मौत से जुड़ी रिपोर्ट मंगवाई थी। राज्य में 54 कर्मचारियों की मौत हुई। इनमें से 27 के परिवार तक मदद पहुंचा दी गई है। 10 लोगों का भुगतान अभी प्रक्रिया में है, 17 मृतकों की रिपोर्ट उनके जिलों में नहीं आई है। इसलिए उनका कुछ नहीं हो पाया।
इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, जान गंवाने वाले कर्मचारियों में ज्यादातर होमगार्ड, सफाईकर्मी और वोटिंग कराने वाले कर्मचारी थे। इन सभी की 500 रुपए रोज के हिसाब से ड्यूटी लगाई गई थी। सभी को वोटिंग से 3 से 4 दिन पहले तय लोकसभा क्षेत्रों में पहुंचना था।

यूपी के मुख्य चुनाव अधिकारी नवदीप रिणवा के हवाले से बताया गया है कि यूपी में रिपोर्ट हुईं सभी मौतें नेचुरल डेथ की कैटेगरी में आती हैं, इसलिए सभी पीड़ित परिवारों को 15 लाख रुपए की मदद दी जाएगी। 7 जुलाई से पहले मदद राशि भेजने का लक्ष्य रखा गया है।इलेक्शन कमीशन की गाइडलाइन के अनुसार, चुनाव ड्यूटी के दौरान पोलिंग स्टाफ की मौत होने पर दो तरह से मदद दी जाती है। पहला- कर्मचारी की बीमारी से या फिर प्राकृतिक मौत होने पर 15 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाता है। दूसरा- किसी भी तरह के उपद्रव या आतंकी हमले में पोलिंग स्टाफ की मौत होने पर 20 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी जाती है।चीफ इलेक्शन कमिश्नर अभी यह जानकारी नहीं दे रहे हैं कि चुनाव ड्यूटी करते हुए देश में कितने पोलिंग कर्मचारियों की मौत हुई, कब तक पीड़ित परिवारों को मुआवजा मिल जाएगा, क्या तपती गर्मी और हीटवेव को देखते हुए चुनाव आगे के लिए टाला जा सकता था, वरिष्ठ पत्रकारों ने ऐसे 6 सवाल चीफ इलेक्शन कमिश्नर राजीव कुमार को मेल के जरिए भेजे। जवाब नहीं आया। यह बेहद शर्मनाक बात है कि देश का चुनाव आयोग चुनाव सम्पन्न कराने के लिए अपनी जान गंवाने वाले ड्यूटी पर तैनात कर्मचारियों की सही संख्या तक नहीं बता रहा है।

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

मध्यप्रदेश में 27, दिल्ली में 4 मौत होने की पुष्टि की गई है जब राज्यों के चुनाव अधिकारियों से इस सिलसिले में जानकारी हासिल करने की कोशिश की गई कि ड्यूटी के दौरान कितनी मौतें हुई हैं और कितने परिवारों को मुआवजा मिल चुका है। मध्यप्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी अनुपम रंजन के मुताबिक चुनाव ड्यूटी के दौरान 27 कर्मचारियों की मौत हुई है। इनमें से 21 के परिवारों को केंद्र सरकार की तरफ से 15 लाख रुपए की मदद दी गई है। छत्तीसगढ़ में 8 कर्मचारियों की मौत हुई। सभी के परिवारों को मुआवजा मिल गया है। राजस्थान के मुख्य चुनाव अधिकारी प्रवीण गुप्ता के मुताबिक, प्रदेश में 8 मौतें हुई हैं, जिनमें से 6 परिवारों को मुआवजा मिल गया है।

देश में कुल 28 राज्य और संघ शासित प्रदेशों के अभी पूरे आंकड़े आने बाकी है जाहिर है कि यह संख्या दो सौ से अधिक हो सकती है क्योंकि चुनाव के दौरान व्यवस्था में लगे कई पुलिस कर्मियों व दूसरे कर्मियों की सडक दुर्घटना में व अन्य असाधारण कारण से भी मृत्यु हुई है वहीं अनेक कर्मचारी अराजक तत्वों के हमले में जख्मी हो गए हैं। यह सभी मृतक इस लोकतंत्र की नींव के लिए अपना बलिदान दे गए। एक ओर वह नेता हैं जो संविधान हाथ में लेकर संविधान में आस्था रखने का प्रदर्शन करते हैं और मौका मिलने पर सुविधानुसार संविधान का दुरुपयोग करने से भी नहीं चूकते हैं वहीं दूसरी ओर यह नीव के पत्थर हैं जो अपनी जान ड्यूटी देते गंवा गए। इनके इस संविधान के द्वारा प्रदत्त व्यवस्था को बनाए रखने के लिए दिए गए योगदान का सम्मान किया जाना चाहिए। हमारे विचार में नई लोकसभा के पहले सत्र में इन तमाम लोगों के परिश्रम और संवैधानिक व्यवस्था के लिए कर्तव्य परायणता के लिए स्मरण व श्रद्धांजलि दी जानी चाहिए। (हिफी)

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