स्मृति विशेष

सरदार पटेल का संदेश

भारत को अखंड बनाने में अप्रतिम योगदान देने वाले सरदार बल्लभ भाई पटेल की इस बार 150वीं जयंती मनायी जाएगी। आगामी 31 अक्टूबर को उनके जन्मदिन के 150 साल पूरे होंगे। गुजरात के केविडया मंे उनकी स्मृति में स्टैच्यू आफ यूनिटी बनायी गयी है। यह स्टैच्यू आफ यूनिटी सिर्फ एक स्मारक भर नहीं है बल्कि देश को आजादी मिलने के बाद पांच सौ से अधिक रियासतों को भारत संघ से जोड़ने का संदेश देता है। देश की नई पीढ़ी को सरदार पटेल के बारे मंे विशेष रूप से बताया जाना चाहिए। हैदराबाद के निजाम को सरदार पटेल ने किस तरह घुटनों के बल पर बैठने को मजबूर किया था, इसे युवा पीढ़ी को बताना होगा। इसीलिए इस बार 31 अक्टूबर से 25 नवम्बर तक सरदार बल्लभ भाई पटेल की जयंती मनायी जाएगी और स्कूलों मंे विशेष रूप से
इस संदर्भ मंे कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं होंगी। अभिभावकों को भी चाहिए कि
वह समय निकालकर अपने बच्चों को सरदार बल्लभ भाई पटेल के कृतित्व
एवं व्यक्तित्व के बारे में सरल भाषा मंे जानकारी दें।
लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती इस वर्ष 31 अक्टूबर से 25 नवंबर तक मनाई जाएगी। इस दौरान स्कूल और कॉलेजों में सरदार 150 का संदेश गूंजेगा। नई पीढ़ी को सरदार पटेल के विचारों से जोड़ने के लिए विभिन्न कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी।
शैक्षणिक संस्थानों में 1 से 7 नवंबर के बीच निबंध, भाषण, रंगोली और चित्रकला प्रतियोगिताएं होंगी। निबंध प्रतियोगिता कक्षा 9 और उससे ऊपर के सभी विद्यार्थियों के लिए इंटर कॉलेज, महाविद्यालय, इंजीनियरिंग और प्रोफेशनल कॉलेजों में होगी। भाषण प्रतियोगिता में कक्षा 11 और उससे ऊपर के विद्यार्थी भाग लेंगे, जो सभी इंटर कॉलेजों, महाविद्यालयों और प्रोफेशनल कॉलेजों में आयोजित की जाएगी। रंगोली प्रतियोगिता में कक्षा 6 और उससे ऊपर की सभी छात्राएं इंटर कॉलेजों और महाविद्यालयों में हिस्सा लेंगी। चित्रकला प्रतियोगिता कक्षा 1 से 8 तक के विद्यार्थियों के लिए प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूलों में आयोजित की जाएगी। इसके साथ 31 अक्टूबर को जिला और ब्लॉक स्तर पर यूनिटी मार्च का आयोजन भी किया जाएगा। इसके लिए बेसिक शिक्षा विभाग, माध्यमिक शिक्षा विभाग और उच्च शिक्षा विभाग को निर्देश जारी किए गए हैं। जिला प्रशासन की ओर से भी यूनिटी मार्च निकाला जाएगा और सभी ब्लॉकों में कार्यक्रम होंगे।
गुजरात के केवडिया स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर लौह पुरुष सरदार साहब की 150वीं जयंती भव्य रूप से मनाई जाएगी। विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा का निर्माण होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर साल देश के पहले उप प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को नमन करने के लिए उनके जन्मदिन पर केवडिया पहुंचते हैं। उनके जन्मदिन को पूरे देश में राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है, क्योंकि इस बार 31 अक्टूबर को उनके जन्मदिन के 150 साल पूरे हो रहे हैं, ऐसे में गुजरात के केवडिया में भव्य तैयारियां की जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में लौह पुरुष के जन्मदिन को मनाया जाएगा। इस मौके राज्यों की उपलब्धियों को दर्शाती एकता थीम पर आधारित 10 झांकियां प्रस्तुत की जाएंगी। गुजरात के मुख्य सचिव पंकज जोशी और पुलिस महानिदेशक विकास सहाय के अनुसार एकता दिवस समारोह काफी भव्य होगा। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय एकता दिवस की परेड में बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, सीआरपीएफ, एसएसबी, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, असम, त्रिपुरा, ओडिशा, छत्तीसगढ़, केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और एनसीसी की कुल 16 टुकड़ियां भाग लेंगी।इतना ही नहीं, ऑपरेशन सिंदूर में बीएसएफ के 16 पदक विजेता और सीआरपीएफ के पांच शौर्य चक्र विजेता भी खुली जिप्सी में परेड में शामिल होंगे।
पटेल की उपलब्धियों में निजाम का विलय प्रमुख माना जाता है। निजाम का विलय ऑपरेशन पोलो के तहत 17 सितंबर 1948 को हुआ, जब हैदराबाद रियासत का भारतीय संघ में विलय कर दिया गया। यह एक सैन्य अभियान था, जिसे सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में भारतीय सेना ने अंजाम दिया था, क्योंकि निजाम मीर उस्मान अली खान ने स्वतंत्र रहने का फैसला किया था। इस अभियान को ऑपरेशन पोलो इसलिए कहा गया क्योंकि उस समय हैदराबाद में दुनिया के सबसे ज्यादा पोलो के मैदान थे। हैदराबाद का विलय (कोड नाम ऑपरेशन पोलो) सितंबर 1948 में शुरू किया गया एक सैन्य अभियान था जिसके परिणामस्वरूप भारत द्वारा हैदराबाद रियासत का विलय हुआ, जिसे पुलिस कार्रवाई करार दिया गया।
1947 में भारत के विभाजन के समय , भारत की रियासतें, जिनके पास सिद्धांत रूप में अपने क्षेत्रों में स्वशासन था, अंग्रेजों के साथ सहायक गठबंधन के अधीन थीं, जिसने बाहरी संबंधों पर अंग्रेजों को नियंत्रण दिया। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम
1947 के साथ, अंग्रेजों ने ऐसे सभी गठबंधनों को त्याग दिया, जिससे
राज्यों के पास पूर्ण स्वतंत्रता चुनने का विकल्प रह गया। हालांकि, 1948 तक लगभग सभी भारत या पाकिस्तान में शामिल हो गए थे। एक बड़ा अपवाद सबसे धनी और सबसे शक्तिशाली रियासत, हैदराबाद का था, जहां निजाम, मीर उस्मान अली खान, आसफ जाह सप्तम, एक मुस्लिम शासक, जो बड़े पैमाने पर हिंदू आबादी का शासन करता था, ने स्वतंत्रता को चुना और एक अनियमित सेना के साथ इसे बनाए रखने की उम्मीद की।
नवंबर 1947 में, हैदराबाद ने भारत के डोमिनियन के साथ एक स्टैंडस्टिल समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें राज्य में भारतीय सैनिकों की तैनाती को छोड़कर सभी पिछली व्यवस्थाएं जारी रहीं। भारत ने महसूस किया कि हैदराबाद में एक कम्युनिस्ट राज्य की स्थापना देश के लिए खतरा होगी। तेलंगाना विद्रोह के कारण निजाम की शक्ति कमजोर हो गई थी, जिसे वह दबा नहीं सका। रजाकारों ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि निजाम का शासन बनाए रखा जाए, हालांकि वे असफल साबित हुए। 7 सितंबर को, जवाहरलाल नेहरू ने निजाम को एक अल्टीमेटम दिया, जिसमें रजाकारों पर प्रतिबंध लगाने और सिकंदराबाद में भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग की गई। भारत ने 13 सितंबर 1948 को राज्य पर आक्रमण किया, रजाकारों की हार के बाद, निजाम ने भारत में शामिल होने के लिए एक विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस ऑपरेशन के कारण बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसे कई बार भारतीय सेना द्वारा अंजाम दिया गया। भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा नियुक्त सुंदरलाल समिति ने निष्कर्ष निकाला कि राज्य में कुल मिलाकर 30,000 से 40,000 लोग मारे गए थे, एक रिपोर्ट में जिसे 2013 तक जारी नहीं किया गया था, अन्य जिम्मेदार पर्यवेक्षकों ने अनुमान लगाया कि मौतों की संख्या 200,000 या उससे अधिक थी।
हैदराबाद राज्य अपने 7वें निजाम , मीर सर उस्मान अली खान के नेतृत्व में भारत की सभी रियासतों में सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध था। 9 करोड़ रुपये से अधिक के वार्षिक राजस्व के साथ इसने 82,698 वर्ग मील (214,190 किमी) के काफी समरूप क्षेत्र को कवर किया और इसमें लगभग 16.34 मिलियन लोगों की आबादी शामिल थी (1941 की जनगणना के अनुसार) जिसमें से बहुमत (85 फीसद) हिंदू थे। राज्य की अपनी सेना, एयरलाइन, दूरसंचार प्रणाली, रेलवे नेटवर्क, डाक प्रणाली, मुद्रा और रेडियो प्रसारण सेवा थी। हैदराबाद एक बहुभाषी राज्य था जिसमें तेलुगु (48.2 फीसद), मराठी (26.4 फीसद), कन्नड़ (12.3 फीसद) और उर्दू (10.3 फीसद) बोलने वाले लोग शामिल थे। राज्य की सेना के 1765 अधिकारियों में से 1268 मुसलमान, 421 हिंदू और 121 ईसाई, पारसी और सिख थे। 600 से 1200 रुपये प्रति माह वेतन पाने वाले अधिकारियों में से 59 मुसलमान, 5 हिंदू और 38 अन्य धर्मों के थे। निजाम और उनके रईस, जो ज्यादातर मुसलमान थे, राज्य की कुल जमीन के 40 फीसद के मालिक थे।(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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