विष्णु के आंसुओं से बनी सरयू नदी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
एक दिन अचानक एक सच्चन ने सवाल किया कि तेज बहाव के लिए विख्यात घाघरा नदी ही अयोध्या में धीर गंभीर सरयू नदी क्यों बन जाती है। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने सरयू नदी के महत्व को दर्शाते हुए लिखा-
दरस परस मज्जन अरु पाना
हरइ पाप कह वेद पुराना
घाघरा नदी के स्वभाव में इतना अच्छा बदलाव कैसे आ जाता है। मेरे पास इसका कोई सटीक जवाब नहीं था। पत्रकारिता के अनुभव से मैंने उनकी शंका का समाधान किया। मैंने कहा अरे भाई मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की नगरी में प्रवाहित होने वाली नदी को भी मर्यादा का पालन तो करना ही होगा फिर चाहे वह तेज कटान करने वाली घाघरा ही क्यों न हो।
वह सज्जन तो संतुष्ट हो गये लेकिन मैं शारदा से सरयू नदी के भौगोलिक और पौराणिक इतिहास को खंगालने लगा। इस नदी के बारे में माना जाता है कि यह भगवान विष्णु के आंसुओं से बनी है। भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्री राम ने इसी में विलीन होकर देह त्यागी थी। प्राचीनकाल में सूर्य देव ने वेदों को चुराकर समुद्र में डाल दिया। खुद भी वहीं छिप गए। इसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें खोजने के लिए मत्स्य रूप धारण किया। भगवान विष्णु ने समुद्र में मत्स्यरूप धारण कर असुर शंखासुर का वध किया और वेदों को ब्रह्मा जी को सौंप कर अपना वास्तविक रूप धारण कर लिया। इस दौरान भगवान विष्णु खुशी से भाव विभोर हो उठे। खुशी से भाव विह्वल होकर भगवान विष्णु की आंखों से आंसू टपक पड़े। देवताओं ने भगवान विष्णु के आंसुओं को सहेज कर मानसरोवर में डाल दिया और उन्हें सुरक्षित कर लिया। इन आंसुओं को महापराक्रमी महाराज वैवस्वत ने अपने बाणों का प्रहार कर मानसरोवर से बाहर निकाला। यही जलधारा सरयू नदी कहलाई जो मानव जीवन का कल्याण करने के लिए धरती पर आई।
पुराणों में सरयू को गंगा और गोमती को यमुना नदी का दर्जा दिया गया है। हालांकि एक मान्यता यह भी है कि भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी को धरती पर लाने का श्रेय ब्रम्हर्षी वशिष्ठ को जाता है। भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए सरयू नदी वास्तव में शारदा नदी की एक सहायक नदी है। इसे सरजू के नाम से भी जाना जाता है। यह नदी उत्तराखंड में शारदा नदी से अलग होकर उत्तर प्रदेश की भूमि के माध्यम से अपना प्रवाह जारी रखती है। इसलिए उत्तर प्रदेश की आबादी के लिए पानी का प्रमुख स्रोत है। अयोध्या के उत्तर दिशा में उत्तर वाहिनी सरयू नदी बहती है। सरयू नदी में स्नान के महत्व का वर्णन तुलसीदास कृत रामचरितमानस में है। भगवान राम ने लक्ष्मण को सरयू नदी की पावनता के बारे में बताते हुए कहा था कि सरयू नदी इतनी पावन है कि सभी तीर्थ दर्शन और स्नान के लिए आते है। सरयू नदी में स्नान करने मात्र से सभी तीर्थों में दर्शन करने का पुण्य मिल जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति सरयू नदी में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करता है उसे सभी तीर्थों के दर्शन करने का फल मिल जाता है। कालिदास के काव्य रघुवंश में राम सरयू नदी को जननी के समान ही मानते थे।
कहा जाता है कि अयोध्या से बहने वाली सरयू नदी के तट में ही राजा दशरथ से अनजाने में पाप हुआ था। अयोध्या नगरी से बाहर पहले घनघोर जंगल था। यहां राजा दशरथ आखेट खेलने गए थे। इस दौरान सरयू नदी के तट पर तीर्थ दर्शन के लिए जा रहे श्रवण कुमार अपने माता-पिता के लिए जल लेने आए थे। किसी जंगली जानवर की आशंका पर राजा दशरथ ने उन्हें तीर मार दिया। जिसके चलते श्रवण कुमार ने प्राण त्याग दिए और राजा दशरथ को उनके माता-पिता ने पुत्र वियोग सहने का श्राप दिया।
रामायण में उल्लेखित है कि सरयू नदी एक जल निकाय है। इसके तट पर कई पर्यटक तीर्थ स्थल है। ऋग्वेद में भी इसका उल्लेख मिलता है। धरती के नीचे बहने वाली एकमात्र नदी सरयू को माना जाता है। सरयू नदी प्रभु श्री राम के वनवास काल से लेकर उनकी अयोध्या वापसी तक की साक्षी बनी। पौराणिक कथाओं के अनुसार सरयू और गंगा का संगम श्री राम के पूर्वज भागीरथ ने करवाया था। श्रीराम की नगरी अयोध्या से होकर बहने वाली सरयू नदी के बारे में भी अब चर्चा होने लगी है। पवित्र सरयू नदी का पौराणिक के साथ ही ऐतिहासिक महत्व भी है। सरयू को शारदा, काली और घाघरा के नाम से भी जाना जाता है। इसका उद्गम उत्तराखंड के बागेश्वर जिला से होता है और उत्तर प्रदेश- बिहार की सीमा पर बलिया और छपरा के बीच यह गंगा नदी में विलीन हो जाती है। सरयू नदी बागेश्वर में उत्पन्न होती और आगे चलकर शारदा नदी में मिल जाती है। शारदा नदी को ही काली नदी भी कहते हैं। उत्तर प्रदेश आते-आते यह नदी घाघरा में मिल जाती है। यही नदी आगे बढ़ती तो उसे सरयू नदी कहते हैं।
ऐतिहासिक नदी सरयू के बारे में यह भी कहा जाता है कि इसे महादेव का अभिशाप प्राप्त है। तुलसीदास की रामचरित मानस के अलावा ऋग्वेद, कालिदास की रचना रघुवंश व महाभारत के अलावा मत्स्य पुराण व ब्रह्मपुराण, पाणिनी के अष्टाध्यायी, पद्मपुराण में भी इसका उल्लेख है। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान यह सरयू नदी दीपों से जगमग हो गयी। सरयू नदी के तट पर ऐसा माहौल छाया था जैसे कि रामलला आज ही वनवास काटकर वापस आए हैं।
इस प्रकार सरयू नदी का उद्गम हिमालय की तराइयों से हुआ है। सरयू नदी के बारे में एक मान्यता यह भी है कि यह मानसरोवर से उत्पन्न हुई है। सरयू नदी हिमालय से निकलकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में बहती है। उत्तर प्रदेश में यह बहराइच, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद, अयोध्या, राजेसुल्तानपुर, दोहरीघाट, बलिया आदि शहरों से होकर गुजरती है। सरयू नदी उत्तराखंड राज्य से बहते समय काफी लंबे भूभाग में भारत और नेपाल के बीच सीमा बनाती है। सरयू नदी की प्रमुख सहायक नदी राप्ती नदी है जो उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज नामक स्थान पर मिलती है। उत्तर प्रदेश का प्रमुख शहर गोरखपुर जहां से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आते हैं इसी राप्ती नदी के तट पर स्थित है। अन्य सहायक नदियां आमी, जाह्नवी भी सरयू नदी में मिलती है। सरयू नदी की लंबाई 350 किलोमीटर है इसकी स्रोत ऊंचाई 4150 मीटर है। इस नदी का नाम संस्कृत भाषा से लिया गया है।
भगवान राम और उनके चारों भाइयों ने अपनी मानव लीला समाप्त कर सरयू नदी में ही जल समाधि ली थी। सरयू नदी के चलते भगवान राम की वजह से समाप्त होने की बात सुन भगवान भोलेनाथ क्रुद्ध हो गए और सरयू नदी को श्राप दे दिया। भगवान महादेव ने सरयू नदी को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हारा जल मंदिर में चढ़ने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा साथ ही किसी पूजा पाठ में भी तुम्हारे जल का प्रयोग नहीं किया जाएगा। इसके बाद सरयू नदी ने भगवान भोलेनाथ से विनती की और उन्हें कहा कि प्रभु यह विधि का विधान है जिसे मैं नहीं बदल सकती। भगवान राम ने बैकुंठ धाम गमन के लिए खुद मेरा मार्ग चुना था। सरयू नदी की करुण
पुकार सुन भगवान भोलेनाथ ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन बस इतना कर सकता हूं कि तुम्हारे जल में स्नान करने से लोगों के पास धुल जाएंगे लेकिन
तुम्हारे जल का इस्तेमाल पूजा पाठ में नहीं किया जाएगा। तब से लोग
सरयू नदी में स्नान करते हैं और सरयू नदी के तट पर स्थित हनुमानगढ़ी
में जाकर भगवान मारुति के दर्शन करते हैं।
हरि अनंत हरि कथा अनंता
की तरह सरयू नदी की गाथा भी अनंत है। (हिफी)