सम-सामयिक

समुद्र मंथन से जुड़े हैं सावन के तार

(चक्षु स्वामी-हिफी फीचर)
भारतीय पौराकिण कथाओं के अनुसार सावन का इतिहास समुद्र मंथन से जुड़ा है जब देवता और असुर अमृत की तलाश में एक साथ समुद्र मंथन के लिये आये थे। समुद्र मंथन मंे सबसे पहले विष हलाहल निकला। इस विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया। इसीलिए सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है और भक्ति भाव से शिव का अभिषेक किया जाता है। सावन में कजरी ग्रायन का भी विधान है।श्रावण (सावन) भगवान शिव की पूजा करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए मनाया जताा है। सावन माह के दौरान सोमवार का दिन ज्यादा शुभ होता है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से और जल, धतूरा, फल, चावल, बेल पत्र, दही, दूध चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं वे सबकी मनोकामनायें पूरी करते हैं। वैवाहिक जीवन सुखमय होता है और जिन लोगों के विवाह नहीं हो रहे उनको शिवलिंग पर जल चढ़ाने से मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।
यह महीना जुलाई से अगस्त के बीच रहता है। सावन कृषि की दृष्टि से भी बड़ा ही महत्व रखता है। इस समय किसान अपनी फसल की बुआई भी करते हैं। समुद्र मंथन के दौरान आभूषण, पशु, देवी लक्ष्मी और कई चीजें उत्पन्न हुईं थी और जब अचानक से एक घातक जहर सामने आया तो उससे दहशत फैल गयी। जो भी इसके संपर्क में आया उसका नाश होने लगा। तब भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने भगवान शिव से शरण मांगी। भगवान शिव ही ऐसे थे जो इस शक्तिशाली जहर को सहन कर सकते थे। शिव जी ने जहर पिया तो उनका कंठ और शरीर नीला पड़ गया। शिवजी के पूरे शरीर में जहर फैलने से माता पार्वती ने उनके गले में प्रवेश किया और जहर को आगे फैलने से रोक दिया। इस प्रकार भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा। ये घटनायें सावन के महीने में हुयी थी। इसलिये इस पूरे महीने सोमवार के दिन भगवान शिव और माता पार्वता की पूजा की जाती है। ऐसा मानना है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए सावन के पहले सोमवार से ही व्रत और तपस्या शुरू की थी। इसी महीने नागपंचमी, हरियाली तीज, रक्षाबंधन के त्योहार मनाये जाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव सावन महीने की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। श्रावण माह में प्रकृति अपना प्यार हम सब पर भरपूर लुटाती है।
हिन्दू सावन महीने को शुभ मानते हैं क्योंकि इस दौरान कई महत्वपूर्ण त्योहार मनाये जाते हैं। इसी महीने कांवर यात्रा की जाती है। इन दिनों शिव मंदिरों में सबसे ज्यादा भीड़ लगती है और भक्त भगवान शिव को दूध, दही, शहद और गंगाजल चढ़ाते हैं। लोग सावन के दिनों में कहा जाता है कि मास, मदिरा के सेवन से दूर रहें। सात्विक और फलहारी चीजों का सेवन करना चाहिये। व्रत में आम सेब, अंगूर, केला जैसे फलों का सेवन कर सकत हैं और दूध से बनी मिठाईयांे का सेवन कर सकते हैं। कुट्टू या सिंघाड़े के आटे से बनी चीजें खा सकते हैं। वारिश के दिनों में पाचन क्रिया ठीक नहीं रहती है। फलाहार का एक कारण यह भी हो सकता है।
सावन में हम सभी को अधिक से अधिक वृक्ष लगाकर पर्यावरण एवं प्रकृति का संरक्षण करना चाहिये। यह समय किसानों के लिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय किसान खरीफ फसल के अनाज, सब्जी और फूल आदि की बुवाई करते हैं। धान, मक्का, बाजरा, सूरजमुखी के साथ कई प्रकार की सब्जी की बुआई सावन में की जाती है। वर्ष में दो शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं जिसमें पहली फाल्गुन की महाशिवरात्रि और सावन की शिवरात्रि होती है जिसकी हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है। महाशिवरात्रि, भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन का प्रतीक है। इसे शिव-गौरी के विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाता है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की
चतुर्दशी को शिवजी ने वैराग्य का त्याग कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया और माता पार्वती से विवाह किया। इसलिए यह भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन भी भक्त उपवास रखते हैं और जल चढ़ाते हैं और शिव मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।
हिंदू पंचांग के 12 महीनों में श्रावण का विशेष स्थान है, क्योंकि इस मास में शिव पूजा का बहुत महत्व होता है। श्रावण का हर दिन अपने आप में खास होता है। सोमवार से रविवार तक हर दिन की गई शिव पूजा से अलग-अलग शुभ फल मिलता है। इस महीने की हर तिथि पर व्रत किया जाता है।
श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मतः।।
श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावग्रः स्मृतः।
यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिदरू श्रावणोऽप्यतः ।।
अर्थ- भगवान शिव कहते हैं कि, सभी महीनों में मुझे श्रावण अत्यंत प्रिय है। इसकी महिमा सुनने योग्य है। इसलिए इसे श्रावण कहा जाता है। इस महीने में पूर्णिमा पर श्रवण नक्षत्र होता है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इस महीने की महिमा को सुनने से ही सिद्धि मिलती है। इसलिए भी इसे श्रावण कहा गया है।देवी पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में बिना कुछ खाए और बिना पानी पिए कठिन व्रत और तपस्या की थी। फिर शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया। इसका एक कारण ये भी है कि भगवान शिव श्रावण महीने में पृथ्वी पर अपने ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि हर साल सावन में भगवान शिव अपने ससुराल आते हैं। कुछ विद्वानों ने मार्कंडेय ऋषि की तपस्या को भी श्रावण महीने से जोड़ा है।
माना जाता है कि मार्कंडेय ऋषि की उम्र कम थी लेकिन उनके पिता मरकंडू ऋषि ने उन्हें अकालमृत्यु दूर कर लंबी उम्र पाने के लिए शिवजी की विशेष पूजा करने को कहा। तब मार्कंडेय ऋषि ने श्रावण महीने में ही कठिन तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। जिससे मृत्यु यानी काल के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे। इसलिए शिवजी को महाकाल भी कहा जाता है।
पारद शिवलिंग के महत्व का वर्णन ब्रह्मपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, शिव पुराण, उपनिषद आदि अनेक ग्रंथों में किया गया है। ऐसी मान्यता है कि पारद शिवलिंग की पूजा से हर परेशानी का अंत हो सकता है। सावन में पारद शिवलिंग की पूजा करने से हर मनोकामना पूरी हो सकती है। वैज्ञानिक भाषा में पारद को मरक्यूरी ) कहते हैं। पारा ही एकमात्र ऐसी धातु है, जो सामान्य स्थिति में भी द्रव्य रूप में रहता है। पारद शिवलिंग इसी पारे से निर्मित होते हैं। पारे को विशेष प्रक्रियाओं द्वारा शोधित किया जाता है जिससे वह ठोस बन जाता है फिर तत्काल उसका शिवलिंग बना लिया जाता है। यह प्रक्रिया बड़ी ही जटिल रहती है। पारद शिवलिंग को घर, ऑफिस या दुकान में रखने से निगेटिविटी कम होती है और सकारात्मकता बढ़ती है। पारद शिवलिंग की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुखशांति और सौभाग्य प्राप्त होता हैं। साथ ही धन-धान्य, आरोग्य, पद-प्रतिष्ठा, सुख आदि भी प्राप्त होते हैं। नवग्रहों से जो अनिष्ट प्रभाव का भय होता है, उससे मुक्ति भी पारद शिवलिंग से मिलती है। पारद शिवलिंग की भक्तिभाव से पूजा-अर्चना करने से संतानहीन दंपति को संतानरत्न की प्राप्ति हो जाती है। . पारद शिवलिंग से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। वास्तु दोष भी नहीं रहता और पारलौकिक गतिविधियों पर भी विराम लगता है। (हिफी)

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