सम-सामयिक

मध्य प्रदेश की सियासत में सिंधिया परिवार

 

मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया परिवार ने बहुत उथल-पुथल की है। एक समय राजमाता विजयराजे सिंधिया ने जनसंघ में शामिल होकर कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी। वही काम ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी किया।

शिवराज सिंह चैहान के राज्य मध्य प्रदेश मंे भारतीय जनता पार्टी सरकार चलाने का एक नया इतिहास रचने की तैयारी कर रही है। पिछली बार 2018 मंे राज्य की जनता ने भाजपा से सत्ता छीनकर कांग्रेस को सौंप दी थी लेकिन सिंधिया परिवार के चलते सत्ता भाजपा के हाथ मंे चली गयी। महाराज कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ सरकार से बगावत कर दी थी और शिवराज सिंह चैहान चैथी बार मुख्यमंत्री बने। राज्य की राजनीति में सिंधिया परिवार की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गोविन्द नारायण सिंह के कार्यकाल मंे विजयराजे सिंधिया 30 जुलाई 1967 से 12 मार्च 1969 तक सदन की नेता रहीं। राजमाता विजयराजे सिंधिया पहले कांग्रेस की नेता हुआ करती थीं लेकिन अपमान का बदला लेने के लिए कांग्रेस की सरकार को गिरा दिया था। दरअसल, पचमढ़ी में अर्जुन सिंह ने कांग्रेस का सम्मेलन आयोजित किया था। इस सम्मेलन में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र और राजमाता विजयराजे सिंधिया भी थीं। मुख्यमंत्री ने राजशाही पर करारे व्यंग्य किये और राजमाता तिलमिला गयीं। पचमढ़ी से लौटकर राजमाता सिंधिया ने अपमान का बदला लेने के लिए कांग्रेस छोड़ जनसंघ का दामन थामा। उन्हांेने कांग्रेस के 35 विधायकों को तोड़कर सरकार गिरा दी थी। इसी प्रकार का बदला ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लिया जो अब भाजपा की फिर से सरकार बनवाने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं। इस बार राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर कयास लगाए जा रहे हैं। ज्योतिरादित्य केन्द्र सरकार मंे मंत्री हैं लेकिन राज्य की राजनीति पर भी उनकी निगाह हमेशा रहती है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि बाबूलाल गौर के बाद बाद एमपी के सबसे सफल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के कार्यकाल का आगाज होता है। शिवराज सिंह 29 नवंबर 2005 से 11 दिसंबर 2008, 12 दिसंबर 2008 से 09 दिसंबर 2013, 14 दिसंबर 2013 से 12 दिसंबर 2018 और 23 मार्च 2020 से अब तक प्रदेश को चला रहे हैं। मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री का ताज पं. रविशंकर शुक्ल के सिर पर सजा था, उनका कार्यकाल 1 नवंबर 1956 से 31 दिसंबर 1956 यानी महज दो महीने तक ही रहा। 1 जनवरी 1957 को उनका दिल्ली में निधन हो गया था। रविशंकर शुक्ल के बाद भगवंतराव मंडलोई सीएम बने जो 9 जनवरी 1957 से 30 जनवरी 1957 और इसके बाद 12 मार्च 1962 से 29 सितंबर 1963 तक मुख्यमंत्री रहे थे। इसके बाद तीसरा चेहरा कैलाश नाथ काटजू का है, जो 31 जनवरी 1957 से 14 अप्रैल 1957 और 15 अप्रैल 1957 से 11 मार्च 1962 तक सीएम के पद पर रहे। चैथे सीएम फेस पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र रहे जो 30 सितंबर 1963 से 08 मार्च 1967 और 08 मार्च 1967 से 29 जुलाई 1967 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। अब बात गोविंद नारायण सिंह की, ये छठवां चेहरा थें। गोविंद नारायण सिंह का कार्यकाल 30 जुलाई 1967 से 12 मार्च 1969 तक था। उनके बाद प्रदेश की
बागडोर राजा नरेशचंद्र सिंह ने संभाली थी। ये सीएम का सातवां चेहरा थे, इनका कार्यकाल 13 मार्च 1969 से 25 मार्च 1969 तक था। आठवां नाम श्यामाचरण शुक्ल का है, जो कि 26 मार्च 1969 से 28 जनवरी 1972, 23 दिसंबर 1975 से 30 अप्रैल 1977 और 09 दिसंबर 1989 से 01 मार्च 1990 तक प्रदेश के मुखिया
रहे थे।

नौवां चेहरा प्रकाश चंद्र सेठी का है जो 29 जनवरी 1972 से 22 मार्च 1972 और 23 मार्च 1972 से 23 दिसंबर 1975 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। दसवां नाम कैलाश जोशी का है, जिन्होंने 24 जून 1977 से 17 जनवरी 1978 तक प्रदेश की सत्ता संभाली थी। 11वें क्रम में हैं वीरेन्द्र कुमार सखलेचा जो 18 जनवरी 1978 से 19 जनवरी 1980 तक सीएम थे, उसके बाद 12वें नंबर पर सुंदरलाल पटवा का नाम आता है, इन्होंने 20 जनवरी 1980 से 17 फरवरी 1980 और 05 मार्च 1990 से 15 मार्च 1992 तक मध्यप्रदेश की बागडोर संभाली थी।

मुख्यमंत्री के रूप मंे 13वां चेहरा अर्जुन सिंह का रहा है, इन्होंने 09 जून 1980 से 10 मार्च 1985 तक सत्ता अपने हाथ में रखी थी। उसके बाद 14वां चेहरा मोतीलाल वोरा का है, इन्होंने 1989 तक सीएम की गद्दी संभाली थी। मोतीलाल के बाद आता है दिग्विजय कार्यकाल। दिग्विजय सिंह 15वें चेहरे हैं, इन्होंने 1993 से 2003 तक प्रदेश की कमान अपने पास रखी थी। मध्य प्रदेश को अपनी पहली और इकलौती महिला मुख्यमंत्री उमा भारती के रूप में मिली, ये ब्ड का 16वां चेहरा बनी। उमा भारती का कार्यकाल दिसम्बर 2003 से अगस्त 2004 तक ही था। उसके बाद 17वां चेहरा बाबूलाल गौर के तौर पर देखने को मिला।

इस राज्य में पांच मुख्यमंत्री विशेष रूप से उल्लेखनीय रहे। पं. रविशंकर शुक्ल 2 अगस्त 1877 को सागर में पैदा हुए थे। महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने पर वकालत छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में उतर गए। राज्य पुर्नगठन के बाद नये मध्यप्रदेश का निर्माण 1 नवंबर 1956 को हुआ था, तब प्रदेश के पहले सीएम बनाये गये लेकिन दो महीने बाद ही 31 दिसंबर 1956 को देहावसान हो गया। इसके बाद मुख्यमंत्री बने पं. रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद से अंतरिम व्यवस्था के तौर पर 9 जनवरी से 31 जनवरी, 1957 तक पहली बार सीएम रहे इसके बाद तीसरी विधानसभा के एक बार फिर 12 मार्च 1962 से 29 सितंबर 1963 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे। इसके बाद कैलाश नाथ काटजू सीएम बने।
कश्मीरी मूल के कैलाश नाथ काटजू प्रसिद्ध वकील और तेज तर्रार नेता थे। उन्होंने आजाद हिंद फौज के लिए भी वकालत की थी। अंग्रेजों से स्वाधीनता आंदोलन की लड़ाई के दौरान वे दो बार जेल भी गए। काटजू पहली विधानसभा में 31 जनवरी 1957 से 14 अप्रैल 1957 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे। इसके बाद दूसरी विधानसभा में 15 अप्रैल 1957 से 11 मार्च 1962 तक मुख्यमंत्री रहे थे। काटजू मध्य प्रदेश के पहले ऐसे सीएम बने थे, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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