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मणिपुर की समस्या में मुर्मू की लें मदद

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

मणिपुर से लेकर मिजोरम तक आदिवासियों के कटाजुज्झ से थरथरा रहे हैं। मणिपुरमें कुकी समुदाय की महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने और सामूहिक दुराचार के बाद आक्रोश इतना बढ़ा है कि पड़ोसी राज्य मिजोरम से आरोपी मैतेई समुदाय के लोगों को घर-बार छोड़कर भागना पड़ रहा है। मणिपुर की बीरेन सिंह सरकार और मिजोरम की जोराम थंगा की सरकार ने अपने दायित्व को ठीक से निभाया होता तो ऐसे शर्मनाक हालात तो नहीं आते। आदिवासी समुदाय के लोग हमारे देश के कई राज्यों में निवास कर रहे हैं और खेल प्रतिस्पद्र्धाओं में उन्होंने देश का नाम रोशन किया है। भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू भी आदिवासी समुदाय से ही आती हैं। उनकी समस्याओं से वह भलीभांति परिचित भी हैं। राष्ट्रपति के रूप में उनका एक वर्ष पूरा हुआ है। इस बीच आदिवासी समुदायों के 1750 लोगों से उन्हांेने राष्ट्रपति भवन में मुलाकात कर उनकी समस्याएं दूर करने का आश्वासन भी दिया था। संविधान दिवस पर देश के प्रधान न्यायाधीश के समक्ष उन्होंने जेलोें की व्यवस्था की तरफ ध्यान आकर्षित कराया था और कहा कि आदिवासी समुदाय के लोग अपनी पैरवी न खुद कर पाते हैं और न महंगे वकील करने की क्षमता रखते हैं, जिसके कारण वर्षों से जेलों मंे सड़ रहे हैं। आदिवासियों के प्रति उनकी जानकारी का यह एक उदाहरण भर है। इसलिए मणिपुर और मिजोरम के आदिवासियों की समस्या को सुलझाने में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की मदद ली जा सकती है। राष्ट्रपति का यह कार्य दलगत राजनीति से इतर होगा लेकिन इससे शांति स्थापित हो सकती है। उनके समझाने का तरीका बहुत स्वाभाविक है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के कार्यकाल का 25 जुलाई को एक साल पूरा हो गया। इस एक साल के दौरान उन्होंने विभिन्न राज्यों की अपनी यात्राओं और राष्ट्रपति भवन में आदिवासी समूहों के 1,750 सदस्यों समेत 16 हजार लोगों से मुलाकात की। राष्ट्रपति भवन की ओर से प्रदान किए गए आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है। भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मुर्मू ने राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, झारखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों की अपनी यात्राओं के दौरान आदिवासी समूहों के लगभग 1,750 सदस्यों से मुलाकात की। आंकड़ों में कहा गया है कि वह बीते एक साल में राष्ट्रपति भवन और राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों की अपनी आधिकारिक यात्राओं के दौरान विभिन्न क्षेत्रों के 16,000 से अधिक लोगों से मिल चुकी हैं। पहले वर्ष में, राष्ट्रपति ने पूर्वोत्तर भारत के आठ राज्यों में से छह का दौरा किया । इस दौरान उन्होंने गौहाटी उच्च न्यायालय के प्लेटिनम जयंती समारोह और अरुणाचल प्रदेश के राज्य दिवस समारोह जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में भाग लिया। साथ ही अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम की राज्य विधानसभाओं को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार के 20 विधेयकों और राज्य सरकारों के 23 विधेयकों को मंजूरी दी।
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के अनुभव का लाभ मणिपुरनागपुर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को परिवार और समाज में मातृभाषा के इस्तेमाल पर जोर दिया और कहा कि लोगों को अपनी मातृभाषा और मातृभूमि को कभी नहीं भूलना चाहिए। मुर्मू नागपुर में भारतीय विद्या भवन के सांस्कृतिक केंद्र के उद्घाटन के अवसर पर एक सभा को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा, हम पहले भारतीय हैं, चाहे हम अपने देश में रहें या इसके बाहर। रामायण का उदाहरण देते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें लगता है कि मातृभूमि, मातृभाषा और माँ सबसे ऊपर हैं। उन्होंने कहा, नयी पीढ़ी देश-विदेश में आधुनिक शिक्षा प्राप्त करके अच्छा काम कर रही है। अपनी जन्मभूमि से दूर होने के बावजूद वे अपनी स्थानीय भाषा और संस्कृति से जुड़े हुए हैं, जो बहुत अच्छी बात है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आप सभी को बताना चाहती हूं कि अपने परिवार, समाज और समुदाय में अपनी मातृभाषा का उपयोग करना आपकी जिम्मेदारी है। अपने बच्चों को उनकी मातृभाषा का ज्ञान दें। अन्य भाषाएं और संस्कृतियां सीखना अच्छी बात है, लेकिन आप जीवन में जो भी बनें, अपनी मातृभाषा और मातृभूमि को कभी नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीयता हमारी पहचान है और दुनिया में भारत की भी पहचान है। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि भगवान राम के जीवन मूल्य और संघर्ष मानव जाति के लिए प्रेरणा हैं। उन्होंने कहा, भगवान राम का अपने पिता की आज्ञा का पालन करना, अपने भाई के प्रति उनका प्यार और एक राजा के रूप में उनके कर्तव्य, आदर्श व्यवहार के उदाहरण हैं।
इस प्रकार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित संविधान दिवस समारोह में अपने समापन भाषण में कहा था कि न्याय पाने की प्रक्रिया को सभी के लिए किफायती बनाना हर किसी की जिम्मेदारी है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से लोगों की दुर्दशा को कम करने के लिए एक प्रभावी विवाद समाधान तंत्र को आगे बढ़ाने का आग्रह करते हुए कहा, न्याय प्राप्त करने की प्रक्रिया को किफायती बनाने की जिम्मेदारी हम सभी पर है। अपने संबोधन में, राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि संविधान सुशासन के लिए एक मानचित्र की रूपरेखा तैयार करता है और इसमें सबसे महत्वपूर्ण विशेषता राज्य के तीन अंगों- कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के कार्यों और शक्तियों को अलग करने का सिद्धांत है। मुर्मू ने कहा, यह हमारे गणतंत्र की पहचान रही है कि तीनों अंगों ने संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं का सम्मान किया है। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि तीनों में से प्रत्येक का उद्देश्य लोगों की सेवा करना है, यह समझ में आता है कि नागरिकों के हितों की सर्वोत्तम सेवा करने के उत्साह में, तीन अंगों में से एक या दूसरे को सीमा से आगे बढ़ने का प्रलोभन हो सकता है। उन्होंने कहा कि तीनों ने लोगों की सेवा में
अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करते हुए हमेशा सीमाओं को ध्यान में रखने का प्रयास किया है।
राष्ट्रपति ने कहा था कि प्रस्तावना संविधान की आधारशिला का सार प्रस्तुत करती है और इसका एकमात्र ध्यान इस बात पर है कि सामाजिक भलाई को कैसे बढ़ाया जाए। इसकी पूरी इमारत न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर टिकी हुई है। जब हम न्याय की बात करते हैं, तो हम समझते हैं कि यह एक आदर्श है और इसे प्राप्त करना बाधाओं के बिना नहीं है। न्याय पाने की प्रक्रिया को किफायती बनाने की जिम्मेदारी हम सभी पर है।
उन्होंने ओडिशा में राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में अपने दिनों को भी याद किया और बताया कि मुकदमेबाजी की अत्यधिक लागत न्याय प्रदान करने में एक बड़ी बाधा थी। न्याय के त्वरित वितरण के उदाहरणों की सराहना करते हुए, राष्ट्रपति ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से लोगों की दुर्दशा को कम करने के लिए एक प्रभावी विवाद समाधान तंत्र विकसित करने का आग्रह किया। राष्ट्रपति मुर्मू ने भारतीय संविधान के निर्माण में महिलाओं की भागीदारी पर भी प्रकाश डाला, उन्होंने कहा पश्चिम के देश अभी भी महिलाओं के अधिकारों पर बहस कर रहे थे। इस प्रकार द्रोपदी मुर्मू से अपेक्षा है कि वह मणिपुर की समस्या सुलझा सकती है। (हिफी)

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