उल्फा को मुख्यधारा में ले आए शाह

वर्ष 2023 के अंतिम दिनों मंे केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पूर्वोत्तर भारत के संवेदनशील राज्य असम मंे प्रमुख अलगाववादी गुट-यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आॅफ असम (उल्फा) को मुख्यधारा मंे शामिल कर राज्य और देश दोनों को बहुत बड़ी राहत प्रदान की है। अलग अस्तित्व को लेकर 1979 मंे संगठित इस अलगाववादी संगठन मंे कई गुट भी बने और उनके नेता एक-दूसरे से सहमत-असहमत भी रहे लेकिन हिंसा और बरगलाने का सिलसिला बराबर चलता रहा। वहां की सीधी-सादी जनता को सरकार के खिलाफ भड़काया जाता था और बाहरी राज्यों से गये लोग चाय बागान आदि खरीद कर शांति से व्यापार नहीं कर पा रहे थे। इसी बीच राजनीतिक दलों ने भी उल्फा का दुरुपयोग किया और असम में अशांति फैल गयी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौजूदगी मंे 15 अगस्त 1985 को नई दिल्ली में भारत सरकार के प्रतिनिधियों और असम आंदोलन के नेताओं के बीच हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (एमओएस) तैयार हुआ था। उस असम समझौते ने असमिया सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए सहमति जतायी थी। इस समझौते से भी उल्फा के लोगों का मंतव्य पूरा नहीं हो रहा था और वे लगातार हिंसक वारदातें कर रहे थे। इतना ही नहीं उन्होंने पड़ोसी देश बांगलादेश मंे अपने ठिकाने बना लिये और कहा तो यह भी जा रहा था कि पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई से भी उनका सम्पर्क हो गया था। इस बीच कई बार वार्ताएं हुईं लेकिन उल्फा के लेागों को समाज की मुख्यधारा मंे शामिल नहीं किया जा सका। इसका राजनीतिक कारण भी बताया जा रहा था लेकिन संयोग से 2014 मंे केन्द्र मंे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व मंे भाजपा सरकार बनी तो असम में भी भाजपा ने सरकार बना ली। मौजूदा मुख्यमंत्री हिमंता विस्वा सरमा का प्रयास रंग लाया और उल्फा के कुछ प्रमुख नेताओं से वार्ता के बाद उल्फा अलगाववादियों ने हथियार डाले हैं। गृहमंत्री अमित शाह ने इन लोगों को जीवन निर्वाह की सुविधा का वादा किया है। इसके साथ और भी कई बातें हैं जो अमित शाह की सरपरस्ती में हुए त्रिपक्षीय समझौते मंे शामिल की गयी हैं। इससे असम में शांति का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
29 दिसंबर 2023 को असम के सबसे बड़े उग्रवादी संगठन, यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानी उल्फा ने भारत सरकार और असम के साथ एक त्रिपक्षीय शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। उल्फा के प्रो टॉक डेलिगेशन में 16 लोग थे। इस डेलिगेशन ने गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और समझौते पर बात बनी। इस दौरान असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा भी मौजूद रहे। यह भारत सरकार के पूर्वोत्तर में शांति प्रयास की दिशा में बहुत बड़ा कदम माना जा रहा है। उल्फा पिछले कई सालों से उत्तर पूर्व में सशस्त्र सुरक्षा बलों के खिलाफ हिंसात्मक संघर्ष कर रहा था। इस शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद सशस्त्र संगठन उल्फा के हजारों काडर आत्मसमर्पण करेंगे और मुख्य धारा में शामिल होंगे। भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गये हैं। पिछले 1 साल से भारत सरकार इस शांति समझौते पर कार्यरत थी और उल्फा के शीर्ष नेता, जिसमें अनूप चेतिया भी शामिल हंै, भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी वार्ता कर रहे थे। गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर यह अहम समझौता हो सका।
भारत दुनिया भर को शांति का पाठ पढ़ा रहा है, तब यह समझौता भारत सरकार के लिए बहुत अधिक मायने रखता है। इसका उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्य में दीर्घकालिक शांति बहाली का है। समझौते के समय असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के एक दर्जन से अधिक शीर्ष नेता मौजूद थे। देश के पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय उग्रवादी संगठन उल्फा का गठन 1979 में हुआ था और इसकी सबसे प्रमुख मांग स्वायत्त असम की थी। यह लगातार हिंसक और तोड़फोड़ की गतिविधियों में शामिल रहा। इसे 1990 में प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया गया था। असम में शांति समझौते का माहौल बनाने और उसके लिए संगठन को राजी करने के लिए लंबे समय से प्रयास हो रहे थे। इधर, बीते एक हफ्ते से इसको लेकर दिल्ली में संगठन और सरकार के बीच गंभीर बातचीत चल रही थी। राजखोवा गुट के दो लीडर अनूप चेतिया और शशधर चैधरी नई दिल्ली में सरकारी वार्ताकारों के संपर्क में थे। दोनों पक्षों के बीच कई दौर की चर्चा हुई। इंटेलीजेंस ब्यूरो के निदेशक तपन डेका और पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के सलाहकार एके मिश्रा ने भी सरकार की तरफ से संगठन के नेताओं से वार्ता की थी।
असम मूल रूप से जनजातियों की बस्ती थी। सन् 1874 में असम एक अलग प्रांत बना। तब इसकी राजधानी शिलॉन्ग थी। देश आजाद हुआ और असम भारत का राज्य बना। असम में लोगों को तीन श्रेणियां- जनजातीय, गैर-जनजातीय और अनूसूचित जाति की है। साल 1979 में असम में विद्रोह की शुरुआत हो गई। विद्रोह के पीछे मांग थी- असम को अलग देश बनाना और इसके केंद्र में था- उल्फा। इसे बनाया था परेश बरुआ और राजीव राजकोँवर उर्फ अरबिंद राजखोवा ने। परेश, उल्फा की मिलिट्री विंग का कमांडर था। कुछ और लोग भी साथ थे। मसलन- भीमकान्त बुरागोहांइ, गोलाप बरुवा उर्फ अनूप चेतिया, समिरण गोगई उर्फ प्रदीप गोगई और भद्रेश्वर गोहांइ। ये लोग माओवादी विचारधारा के मानने वाले थे। उल्फा का कहना था कि असम कभी भी भारत का हिस्सा नहीं था। उसके मुताबिक, असम जिन परेशानियों का सामना कर रहा था उनमें सबसे बड़ी थी- उसकी राष्ट्रीय पहचान की समस्या। इसीलिए उल्फा का लक्ष्य था एक श्संप्रभु असमश् बनाना। माने एक अलग देश।
राजनीति भी इसके इर्द-गिर्द चलने लगी और 1979 में ऑल स्टूडेंट्स असम यूनियन बना, जिसने अवैध प्रवासियों के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। 1987 में ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन ने बोडो जनजाति के लिए अलग बोडोलैंड की मांग को लेकर आंदोलन कर दिया। इसके बाद बोडो जनजाति के कई उग्रवादी संगठन बनते चले गए। नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड और कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन बड़े उग्रवादी संगठन थे। इस दौरान कई और जनजाति और आदिवासियों ने भी अपने-अपने संगठन बना लिए लेकिन 90 के दशक के आखिरी सालों तक, उल्फा सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन बन चुका था। माना जाता है कि नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैण्ड और म्यान्मार में सक्रिय संगठन काछिन रेबेल्स जैसे संगठनों से भी उल्फा को हथियार, पैसा और ट्रेनिंग की मदद मिल रही थी। तिनसुकिया और डिब्रुगढ़ जिलों में इसके कई प्रशिक्षण कैम्प खुल गए। 89 में उल्फा को बांग्लादेश में भी कैंप लगाने की अनुमति मिल गई। दावे ये भी किए जाते हैं कि उल्फा के लोगों को पाकिस्तान तक में ट्रेनिंग दी जाती थी। अब अमित शाह ने जो समझौता कराया है, उससे शांति की उम्मीद की जा सकती है।
ध्यान रहे, 90 के दशक तक, उल्फा कई बड़ी हिंसक वारदातों को अंजाम दे चुका था। अपने गठन से एक दशक से भी कम वक्त में उल्फा हिंसक और ताकतवर विद्रोही संगठन बन गया। ऐसे में केंद्र सरकार ने साल 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया लेकिन उल्फा की वारदातें नहीं रुकीं। उल्फा कई सरकारी, गैर सरकारी नामचीन हस्तियों, विदेशी नागरिकों, व्यापरियों की हत्या कर चुका था। उल्फा के कई बम विस्फोटों में आम लोगों की जान जा रही थी। तेल की पाइपलाइन, रेलवे ट्रैक, सरकारी इमारतें- उल्फा के उग्रवादी कहीं भी हमला कर रहे थे। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)