लेखक की कलम

विपक्षी दलों की दिखावे की एकता

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
झारखण्ड की राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में जब हेमंत सोरेन चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तब विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के सभी घटक दल के नेता वहां एकजुटता का प्रदर्शन भी कर रहे थे। जाहिर है कि यह सिर्फ प्रदर्शन था और हरियाणा से लेकर महाराष्ट्र तक विपक्षी दल इसका खामियाजा भी भुगत चुके हैं। महाविकास अघाड़ी के नेता वहां मिली शर्मनाक पराजय पर मंथन कर रहे हैं कि कांग्रेस का अति आत्मविश्वास इसका कारण है। यह बात हरियाणा को लेकर तो कही जा सकती है लेकिन महाराष्ट्र मंे पराजय के अन्य कारण भी हैं। विपक्षी दलों के अब तक यह समझ में क्यों नहीं आ रहा है कि मन में स्वार्थ रखकर गठबंधन नहीं चल सकता। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पश्चिम बंगाल है जहां कांग्रेस और वामपंथी अपनी गठबंधन की साथी ममता बनर्जी के ही खिलाफ चुनाव लड़ते हैं। इसी तरह आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल भी गठबंधन मंे अपना स्वार्थ देखते हैं। कांग्रेस ने काफी कोशिश की थी कि हरियाणा के विधानसभा चुनाव में उसका आम आदमी पार्टी के साथ चुनाव में गठबंधन हो जाए लेकिन आम आदमी का पार्टी वहां सभी 90 सीटो पर चुनाव लड़ी। नतीजा यह हुआ कि अच्छी उम्मीद होते हुए भी कांग्रेस हार गयी। अब दिल्ली विधानसभा चुनाव मंे भी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में कोई तालमेल की संभावना नहीं दिखती। इसलिए यह कहना पड़ेगा कि विपक्षी दलों मंे एकता सिर्फ दिखावे के लिए है और ऐसे हालात में वे भाजपा का मुकाबला तो नहीं कर पाएंगे। हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह मंे राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, ममता बनर्जी, अरविन्द केजरीवाल, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, भगवंत मान और वामपंथी दलों के नेता भी मौजूद थे।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद इंडिया गठबंधन के नेता ने कांग्रेस पर सवाल खड़े कर दिए हैं। शिवसेना (यूबीटी) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा महाराष्ट्र में कांग्रेस के ओवर कॉन्फिडेंस और सीट-बंटवारे की बातचीत के दौरान उसके रवैये ने महा विकास अघाड़ी की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है। महाराष्ट्र विधान परिषद में नेता विपक्ष अंबादास दानवे ने कहा कि महा विकास अघाड़ी को उद्धव ठाकरे को अपने सीएम चेहरे के रूप में पेश करना चाहिए था। दानवे ने कहा कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की तरह महाराष्ट्र में भी ओवर कॉन्फिडेंस में थी, जिसका असर नतीजों पर साफ देखने को मिला। कांग्रेस के रवैये ने हमें चोट पहुंचाया है। उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया जाना चाहिए था। अगर ऐसा होता तो परिणाम अलग होते। कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए अंबादास दानवे ने कहा कि परिणामों से पहले ही वे सूट और टाई पहनकर तैयार हो रहे थे। उन्होंने कहा कि शिवसेना (यूबीटी) अपनी ताकत उस स्तर तक बनाने की तैयारी करेगी, जहां वह राज्य की सभी 288 सीटों पर चुनाव लड़ सके।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के इस बार के नतीजे सियासी मायनों में बेहद खास हैं। इस चुनाव में भाजपा, शिवसेना और एनसीपी के नेतृत्व वाले महायुति ने प्रचंड जीत हासिल की। वहीं, कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) वाले महाविकास अघाड़ी गठबंधन को करारी शिकस्त मिली। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का प्रदर्शन अब तक सबसे खराब रहा है। महायुति ने महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से 230 सीटें हासिल कीं। भाजपा ने सबसे अधिक 132 सीटें जीतीं जबकि, उसके सहयोगी दल शिवसेना ने 57 सीटें और अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने 41 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, महाविकास अघाड़ी (एमवीए) महज 46 सीटों पर सिमटकर रह गई। शिवसेना (यूबीटी) ने 20, कांग्रेस को 16 सीटों पर जीत मिली। इस बार के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को सिर्फ 10 सीटें ही दीं।
अब झारखण्ड दृश्य देखें हेमंत सोरेन ने झारखंड के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। उनके नेतृत्व वाले झामुमो, कांग्रेस, राजद और सीपीआईएमएल के गठबंधन ने 56 सीटों पर जीत के साथ दो तिहाई बहुमत हासिल किया है। शपथ ग्रहण समारोह में इंडिया ब्लॉक के कई शीर्ष नेता मंच पर मौजूद रहे। इनमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी की अध्यक्ष ममता बनर्जी, आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव शामिल रहे। इनके अलावा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान, सीपीआई (एमएल) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके. शिवकुमार, बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, बिहार के सांसद राजीव रंजन उर्फ पप्पू यादव, आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, सांसद राघव चड्ढा ने भी समारोह में शिरकत की। सभी ने दिखाया हम एक हैं।
राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता प्रमोद तिवारी ने अडानी मामले पर केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने महाराष्ट्र चुनाव के परिणाम को लेकर हैरानी व्यक्त की है। साथ ही ईवीएम पर सवाल उठाए है जबकि दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर आप से गठबंधन की बात को जल्दबाजी बताया है। हालांकि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है।आज अगर कोई बीजेपी को चुनौती देने के प्रति गंभीर है तो वह अरविंद केजरीवाल हैं। ममता बनर्जी में अब उतना जोश नहीं दिखता है और बीजेपी कांग्रेस को गंभीरता से ले नहीं रही है। इसके साथ ही वे (बीजेपी) क्षेत्रीय दलों को खघ्त्म करना चाहेंगे। इसमें कोई शक नहीं है कि केजरीवाल आगे बढ़ रहे हैं। अगर वो गंभीरता से आगे बढ़ते रहे तो उन्हें ऐसा करने में 15 सालों का वक्त लगेगा। इसकी वजह ये है कि वह एक नयी राजनीतिक शक्ति को खड़ा कर रहे हैं। इसमें वक्त लगता है। वह राजनीतिक रूप से काफी परिपक्व हैं। उन्हें देश की नब्ज पहचानना आता है। उन्हें पता है कि सेक्युलर होने वाली जो पुरानी परिभाषा है, वो अब काम नहीं करती है। ऐसे में वह अपनी छवि एक प्रो-हिंदू नेता के रूप में बनाना चाहते हैं जो कि मुसलमानों का विरोधी न हो। दूसरी पार्टियों के नेता जैसे राहुल गांधी कभी-कभार मंदिर चले जाते हैं तो उससे बात बनती नहीं है। इसी प्रकार के मतभेद हैं लेकिन सबसे ज्यादा स्वार्थ टकरा रहा है। (हिफी)

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