अध्यात्म

विश्वास के स्वरूप हैं शिव

(मोहिता स्वामी-हिफी फीचर)
मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान शिव और माता पार्वती को विश्वास और श्रद्धा का प्रतीक बताया है। मनुष्य में जब तक श्रद्धा और विश्वास नहीं होगा तब तक उसे अपनी आत्मा में विराजमान परमात्मा भी दिखाई नहीं पड़ेगा-
भवानी शंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ
याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धा स्वांतः स्थितमीश्वरम्।
विश्वास स्वरूपम भारत का सबसे विशाल शिवमंदिर माना जाता है। यह मंदिर नाथद्वारा (राजस्थान) मंे स्थित है। सावन के महीने मंे देश भर के शिव मंदिरों मंे श्रद्धालुआंे की भीड़ उमड़ती है। विश्वास स्वरूपम् मंदिर में भी इन दिनों शिव भक्तों की कतार लगी रहती है। यहां पर शिवजी की प्रतिमा 360 फिट ऊंची है। इसको बनाने मंे 30 हजार टन धातु (पंच धातु) का प्रयोग किया गया है। बताया जाता है कि 90 इंजीनियरों और 900 कारीगरों ने इसको बनाया है। शिवजी की विशाल प्रतिमा है तो उनके वाहन नंदी जी भी विशालकाय होने चाहिए। नंदी जी की प्रतिमा 25 फिट ऊंची और 37 फिट चैड़ी है शिवजी की प्रतिमा के ठीक सामने नंदी जी विराजमान हैं। प्रतिमा की विशालता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि इसे 20 किमी. दूर से देखा जा सकता है।
विश्वास स्वरूपम् मंदिर मंे शिव को बैठे हुए दिखाया गया है, उनके पैर क्रॉस किए हुए हैं और उनके बाएं हाथ में त्रिशूल है। शिव का बायां पैर उनके दाहिने पैर के घुटने पर रखा हुआ है। चेहरे का भाव अलग, ध्यानमग्न है। मूर्ति में एक विशिष्ट तांबे की छाया है। दो सुविधाजनक बिंदु हैं जो आसपास के ग्रामीण इलाकों का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। मूर्ति के लिए डिजाइन 2011 में शुरू हुआ, निर्माण 2016 में शुरू हुआ और यह 2020 में पूरा हुआ। समग्र मूर्ति 369 फीट (112 मीटर) ऊंची है। चबूतरा 110 फीट (34 मीटर) ऊंचा है। मूर्ति को 20 किलोमीटर (12 मील) दूर से देखा जा सकता है। प्रतिमा के आंतरिक भाग में एक प्रदर्शनी हॉल के साथ-साथ 20 फीट (6.1 मीटर), 110 फीट (34 मीटर) और 270 फीट (82 मीटर) पर लिफ्ट द्वारा सुलभ सार्वजनिक दर्शक दीर्घाएं हैं। स्थापना में शिव के बैल, नंदी की एक मूर्ति शामिल है, जो 25 फीट (7.6 मीटर) ऊँची और 37 फीट (11 मीटर) लंबी है। 16 एकड़ के मैदान में एक पार्किंग सुविधा, तीन हर्बल गार्डन, एक फूड कोर्ट, एक लेजर फव्वारा, हस्तशिल्प की दुकानों के लिए एक क्षेत्र, देखने के मंच, संगीतमय फव्वारे, स्मारिका दुकानें और एक तालाब शामिल हैं। त्वरित स्थानीय दर्शनीय स्थलों की यात्रा के लिए साइट पर एक मिनी ट्रेन है। इस मूर्ति की परिकल्पना भारतीय व्यवसायी मदन पालीवाल ने की थी, मूर्तिकार नरेश कुमावत ने इसे गढ़ा था और शापूरजी पल्लोनजी ने इसका निर्माण किया था। इस संरचना में प्रबलित सीमेंट कंक्रीट की दीवारों का एक आंतरिक कोर है, जो एक संरचनात्मक स्टील ढांचे से घिरा है, जो स्वयं एक ढले हुए अति उच्च प्रदर्शन कंक्रीट बाहरी आवरण से घिरा है। सतह पर तरलीकृत जस्ता का छिड़काव किया गया था, फिर तांबे का लेप लगाया गया था।
नाथद्वारा की गणेश टेकरी पहाड़ी पर बनी विश्व की सबसे ऊंची महादेव की प्रतिमा अद्भुत है। शिव ध्यान मुद्रा में जैसे यहां विराजमान हैं, उस रूप में उनके कहीं और दर्शन मुश्किल ही हैं। मूलरूप से राजस्थान के पिलानी के रहने वाले मूर्तिकार नरेश कुमार ने भगवान शिव की विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति मानेसर में तैयार की थी। मूर्तिकार का दावा है कि मूर्ति इतनी मजबूत है कि ढाई हजार साल तक इसी तरह खड़ी रहेगी। मूर्ति के सामने आधुनिक लेजर लाइटें लगाई गई हैं जो रात के समय आसमान में इसका प्रतिबिंब बनाएंगी। इस मूर्ति को मिराज ग्रुप ने तैयार कराया है। इसमें ऊपर तक जाने के लिए चार लिफ्ट और एलिवेटर लगाए गए हैं। इनके माध्यम से भगवान शिव के कंधे के नजदीक लगे त्रिशूल के दर्शन कर सकेंगे। इसके साथ ही ऊपर जलाभिषेक की व्यवस्था भी होगी। मूर्ति के सिर में पानी के दो बड़े टैंक बनाए गए हैं। इनमें एक टैंक का इस्तेमाल भगवान शिव की जटाओं से गंगा जल निकालने के लिए किया जाएगा और दूसरे टैंक के पानी को आपातकाल के लिए रखा जाएगा। इस मूर्ति को मानेसर स्थित नरेश कुमार के प्लांट में तैयार किया गया है।पहले 251 फीट ऊंची शिव प्रतिमा बनाना तय किया गया था, लेकिन बाद में इसकी ऊंचाई 351 फीट करने का निर्णय लिया गया। इतनी ऊंचाई पर तैयार होने के बाद गंगा की जलधारा लगाने के विचार को प्रारूप देने से इसका आकार 369 फीट तक पहुंच गया। राजस्थान में राजसमंद जिले के नाथद्वारा कस्बे में निर्मित 369 फुट ऊंची शिव प्रतिमा ‘विश्वास स्वरूपम’ का लोकार्पण 2022 में हुआ। दावा है कि भगवान शिव की अल्हड़ व ध्यान मुद्रा वाली यह प्रतिमा दुनिया की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा है। लोकार्पण कार्यक्रम में तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कथावाचक मुरारी बापू, योग गुरु बाबा रामदेव, विधानसभा अध्यक्ष डॉ सी.पी.जोशी भी मौजूद थे। बाहर से दिखने वाली इस प्रतिमा की खूबी ये है कि इसके अंदर बने हॉल में 10 हजार लोग एक साथ एक समय में आ सकते हैं, यानी एक गांव या कस्बा इस प्रतिमा में बस सकता है।
प्रतिमा का निर्माण पदम संस्थान द्वारा किया गया। संस्थान के ट्रस्टी और मिराज समूह के अध्यक्ष मदन पालीवाल ने कहा कि प्रतिमा के उद्घाटन के बाद 29 अक्टूबर से 6 नवंबर तक नौ दिनों तक धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। इस दौरान मुरारी बापू राम कथा का पाठ भी करेंगे। कार्यक्रम के प्रवक्ता जयप्रकाश माली ने कहा कि नाथद्वारा की गणेश टेकरी पर 51 बीघा की पहाड़ी पर बनी इस प्रतिमा में भगवान शिव ध्यान एवं अल्लड़ की मुद्रा में हैं। माली ने दावा किया, ‘‘विश्व की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा की अपनी एक अलग ही विशेषता है। 369 फुट ऊंची यह प्रतिमा विश्व की अकेली ऐसी प्रतिमा होगी, जिसमें लिफ्ट, सीढ़ियां, श्रद्धालुओं के लिए हॉल बनाया गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘प्रतिमा के अंदर सबसे ऊपरी हिस्से में जाने के लिए चार लिफ्ट और तीन सीढ़ियां बनी हैं। प्रतिमा के निर्माण में 10 वर्षों का समय और 3000 टन स्टील और लोहा, 2.5 लाख क्यूबिक टन कंक्रीट और रेत का इस्तेमाल हुआ है।’’
शास्त्रों में कहा गया है कि भक्त अगर सच्चे दिल से सावन के महीने में शिवजी की पूजा करते हैं, तो उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। भगवान शिव को पूरे देश के अलग-अलग शहरों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे महादेव, भैरव, महाकाल, शंभु, नटराज। माना जाता है कि सबसे पहले पांडवों ने केदारनाथ मंदिर बनवाया था। जिसके बाद यह मंदिर लुप्त हो गया था। केदारनाथ मंदिर 400 सालों तक बर्फ में दबा रहा था। फिर आठवीं सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने भगवान शिव के इस मंदिर का फिर निर्माण करवाया। मंदिर के पीछे आदिशंकराचार्य की समाधि भी है। (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button