देश के हित में हैं एक साथ चुनाव

विपक्षी दलों को इस मामले में अडंगा नहीं डालना चाहिए और एक साथ चुनाव की प्रक्रिया आगे बढ़े, इस पर अपना पक्ष रखना चाहिए। अभी इसके शुरू होने मंे काफी समय लगेगा। यह कार्य 2029 से प्रारम्भ होगा।
देर आयद, दुरुस्त आयद की तरह देश मंे लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित की गयी समिति ने अपनी रजामंदी जाहिर कर दी है। यह रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को सौंप दी गयी है। दुर्भाग्य की बात है कि विपक्षी दलों के नेता इस पर आपत्ति जता रहे हैं। यह कार्य देश के हित में है क्योंकि हर साल चुनाव होते रहते हैं और इससे धन की बर्बादी भी होती है। राजनीतिक अस्थिरता चलती रहती है। रामनाथ कोविंद की रिपोर्ट में हर परिस्थिति के समाधान की बात भी कही गयी है। इसके बावजूद एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि वन नेशन वन इलेक्शन से कई संवैधानिक मुद्दे जुड़े हैं। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि इससे फायदे हैं। इसी प्रकार कांग्रेस नेता और कर्नाटक के मंत्री प्रियांक का तर्क तो बिल्कुल अलग है। वह कह रहे हैं कि एक देश एक चुनाव कैसे हो सकता है जब भाजपा की मौजूदा सरकार जनादेश को स्वीकार ही नहीं कर रही है। वह इसे एक तरह की सांठ-गांठ बता रहे हैं। बहरहाल, विपक्षी दलों को इस मामले में अडंगा नहीं डालना चाहिए और एक साथ चुनाव की प्रक्रिया आगे बढ़े, इस पर अपना पक्ष रखना चाहिए। अभी इसके शुरू होने मंे काफी समय लगेगा। यह कार्य 2029 से प्रारम्भ होगा।
एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है। देश भर में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की व्यवहार्यता पर रिपोर्ट सौंपी गई है।पैनल ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को 18,626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी है। यह रिपोर्ट 2 सितंबर 2023 को इसके गठन के बाद से हितधारकों, विशेषज्ञों के साथ व्यापक परामर्श और 191 दिनों के शोध कार्य का परिणाम है। कोविंद पैनल ने सिफारिश की है कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं। कोविन्द पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साथ मतदान होने से भारत की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिल सकती है। क्या भारत में सभी तरह के चुनाव, यानी लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय आदि चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। यह सवाल संविधान सभा की बैठकों और बहसों के दिनों से आज तक चर्चा में बना हुआ है। आजादी के बाद कई बार सभी चुनाव एक साथ हुए, लेकिन उसके लगभग दो दशक बाद जिस तरह लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का सुर-ताल बिगड़ा, तब से यह बहस और तेज होती चली आ रही है। पिछले साल पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में बनी कमेटी ने अब अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों में जब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ये दस्तावेज सौंप रहे थे तो वो भारत के लिए वन नेशन, वन इलेक्शन की एक नई जमीन भी तैयार कर रहे थे। पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की अगुवाई में बने पैनल ने राष्ट्रपति को जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें साफ लिखा है कि संविधान संशोधन के पहले चरण में लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ हों। इसके लिए राज्यों से मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। कोविंद कमेटी की ये भी सिफारिश है कि तीन स्तरीय चुनाव के लिए एक मतदाता सूची, फोटो पहचान पत्र जरूरी होगा। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 325 में संशोधन की जरूरत होगी, जिसमें कम से कम आधे राज्यों की मंजूरी चाहिए। साथ ही मध्यावधि चुनाव के बाद गठित होने वाली लोकसभा या विधानसभा का कार्यकाल उतना ही होगा, जितना लोकसभा का बचा हुआ कार्यकाल रहेगा। इसके लिए कोविंद कमेटी ने 47 राजनीतिक दलों से राय मशविरा किया, जिनमें 32 दल तो एक साथ सारे चुनावों के पक्ष में हैं, लेकिन कांग्रेस और टीएमसी समेत 15 राजनीतिक दल इससे सहमत नहीं हैं।
माना जा रहा है कि एक साथ मतदान से विकास प्रक्रिया और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा, लोकतांत्रिक नींव गहरी होगी। पैनल का कहना है कि एक साथ मतदान से पारदर्शिता, समावेशिता, सहजता और मतदाताओं का विश्वास काफी बढ़ेगा।
कोविंद पैनल ने एक साथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की अग्रिम योजना की सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले एक साथ चुनावों के लिए सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनावों तक की अवधि के लिए हो सकता है। कोविंद पैनल ने यह भी कहा कि त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव की स्थिति में शेष पांच साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति का कहना है कि सभी पक्षों, जानकारों और शोधकर्ताओं से बातचीत के बाद ये रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने वालों की दलील है कि इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा। ये अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला होगा। रिपोर्ट के अनुसार इसका विरोध करने वालों का कहना है कि ये व्यवस्था राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाएगी।
समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता गुलाम नबी आजाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ। सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे। इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर कानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और डॉ. नितेन चंद्रा समिति में शामिल थे। आजादी के बाद पहले दो दशकों तक साथ में चुनाव न कराने का नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर पड़ा है। पहले हर दस साल में दो चुनाव होते थे, अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं। इसलिए सरकार को साथ-साथ चुनाव के चक्र को बहाल करने के लिए कानूनी रूप से तंत्र बनाना करना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक समूह बनाया जाए जो समिति की सिफारिशों के कार्यान्वयन पर ध्यान दे। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए जरूरी लॉजिस्टिक्स, जैसे ईवीएम मशीनों और वीवीपीएटी खरीद, मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की तैनाती और अन्य व्यवस्था करने के लिए निर्वाचन आयोग पहले से योजना और अनुमान तैयार करे। वहीं नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए ये काम राज्य निर्वाचन आयोग करे। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)