सम-सामयिक

अकबर के बाड़े में सीता नहीं रहेंगी दीदी!

 

¨ शेरों के जेहादी नामकरण से आहत हुयी हिन्दू आस्था!
¨ कोर्ट ने भी लगायी फटकार।

क्या एक हिन्दू देवी और एक मुगल बादशाह के नाम पर एक चिड़िया घर के नर व मादा जानवरों के नाम रखा जाना चाहिए? पश्चिम बंगाल इन दिनों ऐसे ही विवाद से घिरा हुआ है। यह कौन सी मानसिकता है जो इस तरह के नामकरण कर आस्था और भावनाओं पर कुठाराघात करने का प्रयास करती है। बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं के उत्पीड़न का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि शेर और शेरनी के नाम अकबर-सीता रखने पर नया विवाद खड़ा हो गया। मामला कलकत्ता हाई कोर्ट पहुंचा तो अदालत ने इनके नामों पर आपत्ति से सहमति जताते हुए नाम बदलने का आदेश दिया है।

आपको बता दें कि इस मामले पर विश्व हिंदू परिषद ने कलकत्ता हाई कोर्ट में याचिका डाली थी और इसे भावनाएं आहत करने वाला कदम बताया था। यह मामला हाल ही में उजागर हुआ। जब बीती 22 फरवरी को हाई कोर्ट में सुनवाई हुई तो राज्य सरकार के वकील ने सफाई दी कि ये नाम तो त्रिपुरा सरकार ने रखे थे, वहीं, जस्टिस सौगत भट्टाचार्य ने कहा कि देश में एक बड़ा वर्ग सीता की पूजा करता है, जबकि अकबर एक मुगल सम्राट थे। अदालत ने फिर सवाल करते हुए कहा, “लेकिन यह नाम किसने दिया? विवाद का कारण? मैं सोच रहा था कि क्या किसी जानवर का नाम किसी भगवान या पौराणिक नायक या स्वतंत्रता सेनानी या नोबेल पुरस्कार विजेता के नाम पर रखा जा सकता है? क्या हम किसी शेर का नाम स्वामी विवेकानन्द या रामकृष्ण के नाम पर रख सकते हैं? क्या आप ऐसा कर सकते हैं? आज हम आपके जूलॉजिकल ऑफिसर के पालतू कुत्ते के नामकरण को लेकर विचार नहीं कर रहे हैं। वह पालतू कुत्ते को जो चाहें बुला सकते हैं लेकिन आप एक कल्याणकारी राज्य हैं, यह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। आपको सीता और अकबर के नाम पर शेर का नाम रखकर विवाद क्यों खड़ा करना चाहिए?”

माननीय न्यायाधीश ने स्टेट काउंसिल से कहा, “आप एक राज्य अधिवक्ता के अलावा एक एएजी भी हैं। क्या आप अपने पालतू कुत्ते का नाम किसी पौराणिक देवता या हिंदू देवता या देवी या पैगंबर के नाम पर रखेंगे? इस विवाद से बचना चाहिए था। अगर इसका नाम है तो राज्य सत्ता को इससे दूर रहना चाहिए और इससे बचना चाहिए। हमारा राज्य कई विवादों से जूझ रहा है। शिक्षकों की नियुक्ति से लेकर अन्य कई मामले विवादजन्य रहे हैं। राज्य विवेकपूर्ण निर्णय लें और विवाद से बचें। इन दोनों जानवरों का नाम कलकत्ता हाई कोर्ट ने शेरनी का नाम सीता और शेर का नाम अकबर रखे जाने के लेकर कहा कि इस तरह के नामकरण से बचना चाहिए था। कलकत्ता हाई कोर्ट ने शेर का नाम अकबर और शेरनी का नाम सीता रखे जाने पर इनको बदलने का सुझाव दिया। पश्चिम बंगाल चिड़ियाघर प्राधिकरण इन दो जानवरों के नाम बदलकर विवेकपूर्ण निर्णय ले।

त्रिपुरा के सिपाही जाला प्राणी उद्यान से अकबर नामक शेर और शेरनी सीता को सिलीगुड़ी के बंगाल सफारी पार्क में 12 फरवरी को लाया गया था। अधिकारियों का दावा है कि जानवरों का नाम त्रिपुरा के सिपाही जला जूलॉजिकल पार्क ने रखा था और उन्हें पशु विनिमय कार्यक्रम के तहत सिलीगुड़ी लाया गया था। विश्वहिंदू परिषद ने सर्किट पीठ के समक्ष एक याचिका दायर कर अनुरोध किया कि इन जानवरों के नाम बदले जाएं, क्योंकि इससे नागरिकों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं। हालांकि बताया गया कि नॉर्थ बंगाल वाइल्ड एनिमल्स पार्क के अधिकारी जानवरों का नाम बदलने पर विचार कर रहे थे।

कोर्ट ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और हर समुदाय को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है। सौगत भट्टाचार्य ने पूछा, ‘‘आपको सीता और अकबर के नाम पर एक शेरनी और एक शेर का नाम रखकर विवाद क्यों खड़ा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नागरिकों का एक बड़ा वर्ग सीता की पूजा करता है, जबकि अकबर ‘‘एक बहुत ही सफल और धर्मनिरपेक्ष मुगल सम्राट थे।’’ जस्टिस भट्टाचार्य ने कहा कि वह दोनों जानवरों के नामों का समर्थन नहीं करते हैं। इन दोनों ही जानवरों को कोई अलग नाम देने की व्यवस्था प्राणी उद्यान के अधिकारी करें।

पश्चिम बंगाल के चिड़ियाघर में अकबर नाम का शेर और सीता नाम की शेरनी को लेकर उठे विवाद के बाद त्रिपुरा सरकार को भी गलती का अहसास हुआ और सरकार ने राज्य के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव और पारिस्थितिक पर्यटन) प्रबीन लाल अग्रवाल को निलंबित कर दिया।

गौरतलब यह भी है कि इन शेरों का नाम कई साल पहले त्रिपुरा के वन्य अधिकारी ने रखा था लेकिन त्रिपुरा में इस नामकरण को लेकर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की गई। अब त्रिपुरा से पश्चिम बंगाल स्थानांतरण होने पर इस पर लोगों का ध्यान गया। यह मामला अदालत के सामने नहीं आता यदि पश्चिमी बंगाल विश्व हिन्दू परिषद के कुछ कार्यकर्ताओं को शेरनी का नाम सीता रखने और नर शेर का नाम अकबर रखने को लेकर वैचारिक व आस्थाजन्य आपत्ति नहीं होती। इन कार्यकर्ताओं का मानना है कि पश्चिमी बंगाल सरकार जानबूझकर ऐसे काम करती है जिनसे हिन्दू समाज की आस्था आहत होती है हालांकि अदालत के संज्ञान लेने पर बताया गया है कि शेर का नाम मुगल बादशाह अकबर और मादा शेरनी का नाम हिन्दू देवी सीता रखने में बंगाल सरकार का कोई हाथ नहीं है। इनका नामकरण त्रिपुरा के प्राणी उद्यानों में किया गया था बस यह एक अजब संजोग बना कि दोनों प्राणी पश्चिमी बंगाल विनिमय के तहत पहुंच गए और उन्हे सहजीवन के लिए एक ही बाड़े में रख दिया गया।

दरअसल जानवर नहीं जानते कि वह हिन्दू है या मुसलमान। उन्हें मानवीय समाज द्वारा तय की गई जाति धर्म क्षेत्र भाषा वर्ण और रीति रिवाजों की रवायतों और सीमाओं का भी कोई ज्ञान नहीं है यानी वह इंसानों के सभ्य समाज से इतर स्वाभाविक तौर पर जाति धर्म वर्ण को लेकर किसी फिरकापरस्ती की भावना या विचार से परे हैं। तो क्या जानवर इस मामले में इंसानों के मुकाबले अधिक सभ्य, सामंजस्यपूर्ण व सुसंस्कृत है? लेकिन समाज की आस्था और मान्यता से खिलवाड़ की छूट नहीं दी जा सकती है।
बहरहाल पश्चिमी बंगाल सरकार अब इस शेर जोड़े को नया नामकरण कर अदालत के सुझाव पूर्ण आदेश का पालन करेगी। उधर वन्य जीव अधिकारी जिन पर गाज गिरी अपने जाने अनजाने हुए अपराध पर विचार करेंगे और समस्त प्राणी उद्यान किसी जानवर का नामकरण करते समय इस प्रकरण से सबक लेकर ही प्रक्रिया पूर्ण करेंगे ताकि भविष्य में भी इस तरह के विवाद को जन्म न मिले। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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