बच्चों की तस्करी और खरीद-फरोख्त

राजस्थान के एक आदिवासी गांव से मात्र चार दिन के नवजात बच्चे को बेचने के लिए दिल्ली लाया गया था। गरीबी से जूझ रहे उसके माता-पिता पहले से कई संतानों का जीवन यापन करने के लिए संघर्ष कर रहे थे और उन्होंने अपनी इस नवजात संतान को बच्चा गैंग के दलाल की बात मान कर बेचने का फैसला लिया। दलाल के समझाने पर इस दम्पति ने बच्चे को एक ऐसे अजनबी के हवाले कर दिया जिसने उन्हें तुरंत पैसा देने का वादा किया। कुछ घंटों बाद वह तस्करों की गोद में दिल्ली के लंबे सफर पर निकल चुका था। जब तक पुलिस ने उसे बरामद किया वह एक व्यस्त बाजार में खड़ी कार में था और पहले ही बेचा जा चुका था। यह बच्चा दिल्ली पुलिस की ओर उस जांच के तहत बचाए गए तीन बच्चो में से एक है, जिसने बच्चों की तस्करी के एक बड़े खेल का खुलासा किया।
आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि इन दिनों देशभर में चल अचल संपत्ति या प्रॉपर्टी की तरह बच्चे बेचने का धंधा तेजी से फैल रहा है। बच्चा तस्करी गिरोह के एजेंट राजस्थान-गुजरात ओडिशा, पं बंगाल मध्यप्रदेश समेत कई प्रदेशों के ज्यादातर जिलों में फैले हैं। मौका लगने पर या तो बच्चों को चोरी कर लिया जाता है या फिर गरीब परिवारों को लालच देकर उनके बच्चों को खरीदकर मुंहमांगी कीमत पर बेच दिया जाता है। आशंका है कि गिरोह अब तक सैकड़ों नवजातों का सौदा करा चुका है। अमीर घराने के लोग लाखों रुपए खर्च करके बच्चा खरीद रहे हैं। आपको जानकार हैरानी होगी कि एक बच्चे को करीब 7 से 10 लाख रुपए में बेचा जा रहा है। दिल्ली पुलिस ने बच्चा बेचने वाले गिरोह के कई लोगों को गिरफ्तार किया है।
दिल्ली पुलिस की ओर से इस महीने दायर दो हजार पन्नों की चार्जशीट में 11 आरोपियों के नाम हैं जिनमें छह महिलाएं हैं। पुलिस ने इसमें बेहद चैंकाने वाली कहानी का खाका खींचा है जिसमें बताया गया है कि किस तरह राजस्थान और गुजरात के आदिवासी इलाकों में गरीब परिवारों को निशाना बनाया जाता था और नवजात बेटों को 1.5 लाख में खरीदकर दिल्ली के अमीर परिवारों में 5 से 10 लाख रुपये में बेचा जाता था। इस बात का पता तब चला जब राजस्थान के एक आदिवासी गांव से उस बच्चे को दिल्ली लाया गया था तब वह महज 4 दिन का था। इस तस्करी को चलाने वाली अधिकतर वो महिलाएं हैं जो कभी एग डोनर रही हैं। अब इन पर साजिश और करप्शन का केस चल रहा है। तीनों बच्चे चाइल्ड वेलफेयर कमिटी के पास हैं और पुलिस चैथे बच्चे की तलाश में है।
डीसीपी (द्वारका) अंकित सिंह ने कहा, ‘वे 5-10 लाख रुपये के बीच सौदे की बात कर रहे थे।’ यह बच्चा राजस्थान में पैदा हुआ था और जन्म के तुरंत बाद उसे दिल्ली लाया गया। यास्मीन ने ‘कैरियर’ का काम किया जिसे बच्चे के लिए 1.5 लाख रुपये दिए गए, जबकि अंजलि और जितेंद्र को दिल्ली के परिवार के साथ डील फाइनल करनी थी। जन्म के एक दिन बाद ही एक राज्य से दूसरे राज्य ले जाए गए बच्चे को जॉइंडिस हो गया और अन्य जटिलताओं की वजह से उसे आईसीयू में भर्ती कराया गया।
अधिकारी ने कहा, ‘जब तक बच्चा अस्पताल में रहा उसके साथ एक महिला कांस्टेबल रही। बाद में बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो गया।’ बाद में पुलिस ने बच्चे के असली पिता का पता लगा लिया जोकि बेरोजगार था और उसके चार बच्चे हैं। पुलिस ने उसे उदयपुर के पास पकड़ा और उसने बच्चे को बेचने का जुर्म कबूल किया। जांचकर्ताओं को पता लगा कि गैंग ने एक साल में चार बच्चों को बेचा है और सभी पुरुष लिंग शिशु थे। एक अन्य अधिकारी ने बताया कि वह आदिवासी इलाकों में गर्भवती महिलाओं की तलाश करते थे और बच्चे के जन्म से ठीक पहले या बाद में डील फाइनल की जाती थी। बताया गया है कि ’30 दिन से कम के नवजात बेटों की मांग बहुत अधिक है।’
बीती 30 अप्रैल को पूजा सिंह को कड़कड़डूमा स्थित किराये के एक फ्लैट में पकड़ा गया। इन गिरफ्तारियों का 21 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वतः संज्ञान लिया और इसे ‘बड़ा ऑपरेशन’ कहते हुए अदालत ने दिल्ली पुलिस को तलाश तेज करने और बाकी दोषियों को गिरफ्तार करने को कहा। अगले कुछ सप्ताह में सब इंस्पेक्टर राकेश और एएसआई करतार सिंह की अगुआई में टीमों ने डिजिटल फॉरेंसिक से लेकर फील्ड वर्क तक कई तरीके अपनाते हुए अन्य आरोपियों को दबोच लिया।
ज्योति और सरोज को पहले ही दिल्ली और उत्तर प्रदेश में बच्चा तस्करी में पकड़ा गया था। इन्हें दिल्ली में विकासपुरी से गिरफ्तार किया गया। गरीब परिवारों से संपर्क करने वाले रंजीत को राजस्थान से दबोचा गया। ऐसे ही एक कॉल ने पुलिस को पश्चिमी दिल्ली के मादीपुर में एक कारोबारी तक पहुंचाया। पुलिस का कहना है कि कारोबारी ने इस साल करीब 8 लाख रुपये में ‘बेटा’ खरीदा था। एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘उसकी तीन बेटियां थीं। जूता कारोबार संभालने के लिए उसे बेटा चाहिए था।’
उस समय दो महीने के रहे बच्चे को बरामद कर लिया गया और कारोबारी को गिरफ्तार किया गया। एक दूसरे बच्चे को गुलाबी बाग से बरामद किया गया जहां उसे एक 40 साल के ट्रांसपोर्टर को बेचा गया था। सभी आरोपियों को प्रति बच्चे 35 हजार की कमाई होती थी। पुलिस ने कहा कि परिवारों से झूठ कहा गया था कि कानूनी रूप से गोद लेने की प्रक्रिया पूरी की गई है। विमला उन्हें फर्जी शपथपत्र भी देती थी।पूजा के बाद इस गिरोह की दूसरी बड़ी सदस्य 59 साल की विमला है।
36 साल की अंजली भी इनके साथ थी जिस पर बच्चा तस्करी को लेकर सीबीआई का केस चल चुका है। ग्रामीण इलाकों से बच्चे लाने वाले बिचैलिए जितेंद्र और रंजीत है। सभी न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। दिल्ली पुलिस की जांच की शुरुआत मार्च में हुई जब उत्तर नगर में इंस्पेक्टर विश्वेद्र चैधरी को सूचना मिली। 20 दिन के सर्विलांस और फोन रिकॉर्ड्स की
जांच के बाद उन्हें पहली सफलता मिली 8 अप्रैल को जब यास्मीन (30), अंजलि और जितेंद्र को पकड़ा गया।
वे बच्चे को बेचने के लिए कार से निकले थे।
इसी तरह के मामले देश के दूसरे हिस्सों में सामने आते रहे हैं। इसी साल जनवरी में यूपी के अलीगढ़ जिले में मानवता को शर्मसार करने वाला ऐसा ही मामला सामने आया। यहां निजी अस्पतालों में नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त करने का आरोप लगा। एक निजी अस्पताल की एक नर्स बच्चे के लिए परेशान दंपती से नवजात बच्चे का सौदा कर रही थी। नर्स कहती है, बच्चा चाहिए, लड़का है। 3 लाख रुपए में मिल जाएगा। युवक ने पूछा, रुपए कुछ कम हो जाएंगे? इस पर नर्स ने जवाब दिया कि इसमें 2.5 लाख रुपए डॉक्टर साहब लेते हैं और 50 हजार मुझे चाहिए होंगे।
एक अन्य मामले में इसी साल फरवरी में यूपी की राजधानी लखनऊ में नवजात बच्चों की खरीद-फरोख्त करने वाले एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश हुआ है। मड़ियांव पुलिस और क्राइम ब्रांच ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए गैंग के 6 सदस्यों को गिरफ्तार किया है। इसमें 3 पुरुष और 3 महिलाएं शामिल हैं. गिरोह नर्सिंग होम की आड़ में
5 लाख रुपये में लड़का और 3 लाख रुपये में लडकी बेचने का धंधा चल
रहा था। (मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर) (एजेंसी)