विश्वविख्यात ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ

(मोहिता-हिफी फीचर)
शिवपुराण के अनुसार, एक बार राजा दक्ष ने चंद्र देव को ये श्राप दे दिया था कि उनकी रोशनी बीतते दिन के साथ कम होती जाएगी, जिससे मुक्ति पाने के लिए चंद्र देव ने सरस्वती नदी के पास सोमनाथ मंदिर की स्थापना की थी और इसी स्थान पर भोलेनाथ की कठिन तपस्या की। उनकी तपस्या से खुश होकर शिव जी ने उनके इस श्राप को सदैव के लिए खत्म कर दिया था। इसके बाद चंद्र देव ने शंकर भगवान से यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान रहने की प्रार्थना की, जिसे भोले बाबा ने पूर्ण कर दिया था।
देवों मंे सबसे ज्यादा चर्चित भगवान शंकर के मंदिर सावन महीने मंे हर-हर महादेव के जयघोष से गूंजते रहते हैं। भगवान शिव के 12 अति पवित्र और सिद्ध स्थान माने गये हैं जिनको ज्यातिर्लिंग कहा जाता है। देश भर मंे 12 ज्योतिर्लिंग हैं। माना जाता है कि यहां पर भगवान शिव ज्योति रूप मंे स्वयं विराजमान रहते हैं। श्रद्धालु इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर अपना जीवन सफल मानते हैं। गुजरात का सोमनाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग माना गया है। गुजरात में स्थित इस ज्योतिर्लिंग मंदिर की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। इसीलिए इसका नाम सोमनाथ पड़ा है।
भारत धार्मिक मान्यताओं और पवित्र मंदिरों से बसा देश है, जहां लोग ईश्वर की आराधना करते हैं। यहां कई सारे प्राचीन और पवित्र मंदिर हैं, इनमें भगवान भोलेनाथ के मंदिरों की महिमा ही अपार है। श्रद्धालु भगवान शिव के इन मंदिरों, शिवालयों में हर साल लाखों की संख्या में जाते हैं। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यहां पर देवताओं द्वारा बनवाया गया एक पवित्र कुंड भी है, जिसे सोमकुण्ड या पापनाशक-तीर्थ कहते हैं। सोमनाथ मंदिर, गुजरात के वेरावल में स्थित एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है, जिसे 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। यह मंदिर हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है और इसका इतिहास काफी पुराना है। सोमनाथ को सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सोमनाथ मंदिर असल में चंद्रदेव ने बनवाया था। उन्होंने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों से शादी की थी, लेकिन वह रोहिणी को सबसे ज्यादा प्यार करते थे। इससे खफा होकर दक्ष प्रजापति ने चंद्र देव यानी सोम को श्राप दिया था कि उनका तेज धीरे-धीरे कम हो जाए।
सोमनाथ मंदिर का उल्लेख हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, हालांकि सोमनाथ नाम से नहीं, बल्कि प्रभास-पट्टन के रूप में। पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रदेव (सोम) ने भगवान शिव की आराधना करके इस मंदिर की स्थापना की थी, जिसके बाद इसका नाम सोमनाथ पड़ा। मंदिर को कई बार तोड़ा गया और पुनर्निर्मित किया गया, खासकर 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी के हमले के बाद। वर्तमान मंदिर का निर्माण सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से हुआ था और इसे 1995 में राष्ट्र को समर्पित किया गया था।
सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो हिंदुओं के लिए एक पवित्र स्थान है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह मंदिर तीन नदियों- कपिला, हिरण्या और सरस्वती के संगम पर स्थित है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है।
सोमनाथ मंदिर का उल्लेख शिव पुराण के अध्याय 13 में भी मिलता है। कई मुस्लिम आक्रमणकारियों और शासकों द्वारा बार-बार विध्वंस के बाद, विशेष रूप से 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी के हमले के बाद, इस मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण किया गया। सोमनाथ मंदिर हिंदुओं के लिए एक पावन स्थल है क्योंकि मिथकों के अनुसार इसे शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। कहते हैं कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने किया था। इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। गुजरात के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी। अरब यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में इसका विवरण लिखा जिससे प्रभावित हो महमूद गजनवी ने सन 1025 में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। इसके बाद गुजरात के राजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर कब्जा किया तो इसे फिर गिराया गया। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और विनाश का सिलसिला जारी रहा।
इस समय जो मंदिर खड़ा है उसे भारत के तत्काल गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बनवाया और पहली दिसंबर 1995 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। भारत के सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक सोमनाथ मंदिर है। यह धाम भगवान शिव को समर्पित है। ये 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि यह सबसे पुराने ज्योतिर्लिंग में से भी एक है और जो भी इस धाम में दर्शन के लिए जाते हैं, उनके सभी कष्टों का अंत हो जाता है। शिवपुराण के अनुसार, एक बार राजा दक्ष ने चंद्र देव को ये श्राप दे दिया था कि उनकी रोशनी बीतते दिन के साथ कम होती जाएगी, जिससे मुक्ति पाने के लिए चंद्र देव ने सरस्वती नदी के पास सोमनाथ मंदिर की स्थापना की थी और इसी स्थान पर भोलेनाथ की कठिन तपस्या की। उनकी तपस्या से खुश होकर शिव जी ने उनके इस श्राप को सदैव के लिए खत्म कर दिया था। इसके बाद चंद्र देव ने शंकर भगवान से यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान रहने की प्रार्थना की, जिसे भोले बाबा ने पूर्ण कर दिया था। बता दें, चंद्र देव को सोम के नाम से भी जाना जाता है और उन्होंने
इस ज्योतिर्लिंग की तपस्या की थी, जिसके चलते इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा। इसके साथ ही इसे प्रभास तीर्थ भी कहा जाता है। समुद्र के किनारे मंदिर के दक्षिण में एक बाण स्तंभ है, जो छठी शताब्दी से मौजूद है। इसके बारे में किसी को भी ज्यादा जानकारी नहीं है। बाण
स्तंभ एक दिशादर्शक स्तंभ है, जिसके ऊपरी सिरे पर एक तीर बना हुआ है, जिसका मुख समुद्र की तरफ है।
इस बाण स्तंभ पर आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव, पर्यंत अबाधित ज्योतिमार्ग लिखा हुआ है, जिसका मतलब है कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में किसी भी तरह की बाधा
नहीं है। (हिफी)