सम-सामयिक

सनातन धर्म पर कुतर्क

 

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने भारत के वैदिक धर्म की मनमानी व्याख्या कर डाली। वेदों को आदिकालीन ग्रंथ माना जाता है, उसी तरह वैदिक धर्म भी सनातन धर्म है। इसे पूजा-उपासना से जोड़ दिया गया लेकिन वास्तविक रूप से यह जीवन की सबसे अच्छी पद्धति है। सनातन का अर्थ है कि जिसका न आदि है और न अंत। इसी तरह हमारा जीवन कैसे शुरू हुआ, इसकी सटीक जानकारी नहीं है लेकिन यह आदिकाल से अब तक कितना बदल गया है, यह प्रत्यक्ष दिख रहा है। सुविधाएं तो हैं लेकिन अशांति ज्यादा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है कि उदयनिधि के सनातन धर्म से जुड़े बयान का उचित जवाब दिया जाना चाहिए। हालांकि उदयनिधि और उनके बयान का समर्थन करने वाले के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो गयी है। हिन्दू धर्म के बारे मंे यह दुर्भावना समाप्त होनी चाहिए कि इसके बारे मंे बिना सोचे-समझे कुछ भी कहा जा सकता है। कुतर्क करने वालों को कानून के दायरे में भी लाया जाना चाहिए।

सनातन धर्म को लेकर अभद्र टिप्पणी करने के आरोप में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि और कथित रूप से उनका समर्थन करने वाले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियंक खरगे के खिलाफ रामपुर में मुकदमा दर्ज हुआ है। पुलिस सूत्रों ने 6 सितम्बर को बताया कि अधिवक्ता हर्ष गुप्ता और राम सिंह लोधी ने यूपी के रामपुर की सिविल लाइंस कोतवाली में केस दर्ज कराया। सूत्रों के मुताबिक, केस में उदयनिधि और प्रियंक पर धार्मिक भावनाएं भड़काने और समाज में द्वेष फैलाने का आरोप लगाया गया है। मुकदमा दर्ज करवाने वाले अधिवक्ता हर्ष गुप्ता ने कहा कि 4 सितंबर को अखबारों में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन द्वारा सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया से करते हुए उसे खत्म किए जाने की जरूरत बताए जाने संबंधी एक समाचार प्रकाशित हुआ था। गुप्ता ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियंक खरगे ने उदयनिधि के इस बयान का समर्थन किया था, जिससे संबंधित खबर भी एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक में छपी थी। अधिवक्ता ने कहा कि इससे उसकी भावनाएं आहत हुई हैं, जिसके चलते उसने मुकदमा दर्ज कराया है।

तमिलनाडु के युवा कल्याण एवं खेल मंत्री उदयनिधि ने दो सितंबर को चेन्नई में आयोजित एक कार्यक्रम में सनातन धर्म को लेकर विवादित टिप्पणी की थी। उन्होंने सनातन धर्म की तुलना कोरोना वायरस संक्रमण, डेंगू और मलेरिया से करते हुए इसे खत्म किए जाने की वकालत की थी। तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन लगातार चर्चाओं में हैं। सनातन धर्म को लेकर उनके बयान को लेकर देश भर में लोगों की प्रतिक्रिया सामने आ रही है। उन्होंने अपने बयान का बचाव किया और आरोप लगाया कि नई संसद के उद्घाटन के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेदभाव के कारण ही नहीं बुलाया गया। साथ ही उन्होंने कहा कि उनका बयान इस विषय पर डीएमके के लंबे समय से चले आ रहे रुख को ही रेखांकित करता है।

गौरतलब है कि पेरियार के तर्कवादी सिद्धांतों पर आधारित, द्रमुक ने दशकों तक सनातन धर्म का विरोध किया है और भरपूर राजनीतिक लाभ भी उठाया है। उदयनिधि स्टालिन अपनी टिप्पणियों के लिए किसी भी कानूनी कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार हैं। ऐसी खबरें हैं कि उनके खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए तमिलनाडु के राज्यपाल से मंजूरी लेने की कोशिश की जा रही है। इससे पहले उदयनिधि स्टालिन ने महाभारत के एक उदाहरण के साथ भेदभाव का उल्लेख किया था। उन्होंने एक्स पर लिखा था कि शिक्षक अतुलनीय लोग हैं जो हमेशा केवल भविष्य की पीढ़ियों के बारे में सोचते हैं। हमारे द्रविड़ आंदोलन और उन शिक्षकों के बीच का बंधन जो अंगूठे मांगे बिना सद्गुणों का प्रचार करते हैं, हमेशा के लिए जारी रहेगा। ध्यान रहे कि अंगूठा मांगने का उल्लेख पांडवों और कौरवों के शिक्षक द्रोणाचार्य के संदर्भ में आता है।

सनातन धर्म में चार युगों का वर्णन किया गया है। ये क्रमशः सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग हैं। वर्तमान समय में कलयुग चल रहा है। इस युग के समापन के पश्चात सतयुग प्रारंभ होगा। ये क्रम अनवरत जारी रहेगा। ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल पैदा होता है कि आखिर सतयुग से पूर्व क्या था और सनातन धर्म की उत्पत्ति कैसे हुई है ? इस विषय को लेकर दर्शन शास्त्र के जानकारों में मामूली मतभेद है। कई दार्शनिक वेद को साक्षी मानकर सनातन धर्म की गणना करते हैं। वहीं, कुछ जानकर शास्त्रों को आधार मनाते हैं। आधुनिक इतिहासकारों में सनातन धर्म की सटीक गणना को लेकर व्यापक मतभेद है। आधुनिक समय के इतिहासकार महज प्राचीन भारत के इतिहास का अध्ययन कर सनातन धर्म को समझने की कोशिश करते हैं। जबकि सनातन धर्म सभ्य जीवन की पद्धति है।
सनातन धर्म का व्यापक उल्लेख अहं ब्रह्मास्मि और तत्वमसि श्लोक से मिलता है। इस श्लोक का अर्थ है कि मैं ही ब्रह्म हूँ और यह संपूर्ण जगत ब्रह्म है। ब्रह्म पूर्ण है। इस सृष्टि के निर्माण के पश्चात भी ब्रह्म में न्यूनता नहीं आई है। कहने का तात्पर्य यह है कि ब्रह्म पूर्ण है। इसे ही सनातन कहते हैं। आसान शब्दों में कहें तो सत्य ही सनातन है।

अब यह सवाल मन में उठता है कि सत्य क्या है? ईश्वर, आत्मा, मोक्ष ये सभी पूर्ण और ध्रुव सत्य हैं। अतः सनातन धर्म का न आदि है और न अंत है। कहने का अभिप्राय यह है कि अनादि काल से सनातन धर्म चला आ रहा है और अनंत काल तक रहेगा। इस सत्य को ही सनातन कहा जाता है। सनातन के माध्यम से ईश्वर,आत्मा और मोक्ष का ज्ञान होता है। विज्ञान के लिए भी मृत्यु पहेली बनी है। सनातन धर्म में ईश्वर, मोक्ष और आत्मा को तत्व और ध्यान से जाना जा सकता है। इस धर्म के प्रारंभ वर्ष की गणना करना कठिन है, किंतु वर्तमान साक्ष्य के आधार पर सनातन धर्म अनंत काल से चला आ रहा है। इस धर्म का मूल सार पूजा,जप-तप,दान,सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा और यम-नियम हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवों, ऋषि-मुनियों और यहां तक कि साधारण मनुष्य ने भी इसी मार्ग पर चलकर अपना उत्थान किया है। सनातन में ऊँ को प्रतीक चिह्न माना जाता है। इस धर्म में शिव-शक्ति, ब्रह्म और विष्णु को समान माना गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी संप्रदाय के लोग सनातन धर्म को मानते हैं। इस धर्म में शास्त्रों की रचना संस्कृत भाषा में की गई है। सनातन धर्म में त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश को प्रमुख आराध्य माना गया है। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि अरण्य संस्कृति में भी उनकी पूजा की जाती थी। यह वह समय था। जब मानव सभ्यता का विकास नहीं हो पाया था। कालांतर में अरण्य संस्कृति ही आगे चलकर सनातन यानी जीने का आधार बनी। उस समय से भगवान शिव को सनातन का आधार माना गया है। विज्ञान वर्तमान समय तक आत्मा की गति को समझने में असफल रहा है। हालांकि,सनातन धर्म में ऋषि-मुनियों ने ध्यान कर ब्रह्म,ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को उजागर किया। सनातन धर्म मंे अपार ज्ञान है जिस पर अंतरिक्ष विज्ञान काम कर रहा है। ऐसे जीवनोपयोगी धर्म की निंदा करना अक्षम्य है। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

 

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