लेखक की कलमसम-सामयिक

माफ करना निठारी के मासूमांे! नहीं दे सके न्याय

 

आपको याद दिला दें कि वही निठारी कांड, जिसमें उत्तर प्रदेश के एक अमीर आदमी के घर के पीछे नाले में कई बच्चे-बच्चियों व युवतियों के कंकाल मिले थे… जांच करने पर और मानव कंकाल भी बरामद किए गए थे और मात्र 10 दिन के भीतर मामला जांच के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई को सौंप दिया गया था। वह मकान था मोनिंदर सिंह पंढेर का। इस मामले में पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को आरोपी बनाकर दुष्कर्म एवं हत्याओं का मुकदमा शुरू किया गया। दोनों को इससे जुड़े कुछ मामलों में सीबीआई की विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। किन्तु हाल ही में दोनों को उच्च न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया। यह चैंकाने वाला मामला है कि जिनको फांसी की सजा सुनाई गई, उन्हें बरी कैसे कर दिया गया?

यूपी के नोएडा का निठारी कांड! आजादी के बाद का सबसे क्रूरता भरा सीरियल मर्डर रेप केस! एक रईस रसूखदार की कोठी जो हैवानियत बर्बरता नृशंसता और दरिंदगी का अड्डा बन गयी थी। इस कोठी के मालिक और उसके केयर टेकर पर आरोप है कि वह भोली भाली मासूम बच्चियों को लालच देकर कोठी के भीतर बुलाते थे इस के बाद उनके साथ दरिंदगी कर कत्ल कर लाश को छोटे छोटे टुकड़े कर कोठी के पिछवाड़े के नाले में फेंक दिया जाता था। इतना बर्बर और दिल दहला देने वाले सीरियल किलर कांड के दोनों अभियुक्तों को लोअर कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा सुनाई थी लेकिन हाल ही में हाइकोर्ट के न्यायाधीशों ने उन्हें बारह मामलों में बरी कर दिया तर्क दिया गया है कि जांच एजेंसी सही तरह से जुर्म साबित करने में नाकाम रही। अब उन्नीस मासूमों की मौत उनके शवों के खून अलूदा टुकड़े जो अदालत में बतौर सबूत पेश किए गए, न्याय मांग रहे हैं कि उनकी इस दुर्गति के जिम्मेदार अपराधियों को सजा कब मिलेगी?

आपको याद दिला दें कि वही निठारी कांड, जिसमें उत्तर प्रदेश के एक अमीर आदमी के घर के पीछे नाले में कई बच्चे-बच्चियों व युवतियों के कंकाल मिले थे… जांच करने पर और मानव कंकाल भी बरामद किए गए थे और मात्र 10 दिन के भीतर मामला जांच के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई को सौंप दिया गया था। वह मकान था मोनिंदर सिंह पंढेर का। इस मामले में पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली को आरोपी बनाकर दुष्कर्म एवं हत्याओं का मुकदमा शुरू किया गया। दोनों को इससे जुड़े कुछ मामलों में सीबीआई की विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुनाई। किन्तु हाल ही में दोनों को उच्च न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया। यह चैंकाने वाला मामला है कि जिनको फांसी की सजा सुनाई गई, उन्हें बरी कैसे कर दिया गया?

निठारी का सनसनीखेज मामला उस समय प्रकाश में आया था जब 29 दिसंबर, 2006 को नोएडा के निठारी में पंढेर के मकान के पीछे नाले में आठ बच्चों के कंकाल पाए गए। पंढेर के मकान के आसपास के क्षेत्र में ड्रेन में तलाशी के बाद और कंकाल पाए गए। इनमें से ज्यादातर कंकाल गरीब बच्चों और युवतियों के थे, जो उस इलाके से लापता थे। सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली तो जांच के दौरान और अस्थियां प्राप्त हुई।

उस समय उसके घर की, विशेषकर रसोईनुमा कमरे की जो तस्वीरें सामने आई थीं, उन्हें देख लोगों का दिल दहल गया था। वहां दीवारें इस तरह से खून से सनी हुई थीं मानो वह किसी घर का कमरा न होकर कोई कत्लखाना हो।
सीबीआई ने जांच के आधार पर विशेष न्यायालय में इन दोनों के विरुद्ध साक्ष्य एवं जांच रिपोर्ट पेश की। लंबी सुनवाई के बाद कोली को 12 मामलों में फांसी की सजा हुई थी। वह अभी गाजियाबाद की एक जेल में बंद है और अपनी सजा के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपील की थी। न्यायालय उसी की सुनवाई कर रहा था। वहीं, पंढेर नोएडा की एक जेल में बंद है और उसे दो मामलों में फांसी की सजा हुई थी। कुल मिलाकर पंढेर और कोली के खिलाफ 2007 में 19 मामले दर्ज किए गए थे। सीबीआई ने साक्ष्यों के अभाव में इन 19 मामलों में से तीन मामलों में ‘क्लोजर रिपोर्ट’ दाखिल की थी। बाकी के 16 मामलों में कोली को पूर्व में तीन मामलों में बरी कर दिया गया था और एक मामले में उसकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया गया था। उसे बीते 16 अक्टूबर को शेष 12 मामलों में बरी कर दिया गया। शुरुआत में पंढेर के खिलाफ छह मामलों में आरोप लगाए गए थे जिसमें से पूर्व में तीन मामलों में सत्र अदालत ने बरी किया था। बाकी तीन मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उसे एक मामले में 2009 में और दो मामले में अब बरी कर दिया गया। इसका अर्थ यह हुआ कि पंढेर अब जेल से बाहर आ सकता है।

विचारणीय सवाल है कि कानून वही, न्याय प्रक्रिया वही, साक्ष्य वही, मामला वही, किन्तु एक अदालत ने दोनों को दोषी मानते हुए मृत्युदंड जैसी सजा सुनाई और दूसरी अदालत ने उसी मामले में दोनों को बरी कर दिया। आखिर फैसले में इतना फासला कैसे? फांसी की जगह उम्रकैद कर दी जाती तो लगता कि जजों को मामला उतना गंभीर नहीं लगा होगा, किन्तु बरी कर देना तो किसी के गले नहीं उतरेगा।

यह पहला मामला नहीं है जिसमें न्यायालय के निर्णय में इस तरह का विरोधाभास नजर आया है। इस मामले में न्यायपालिका को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है कि इतना विरोधाभास कैसे? न्यायाधीश भी मनुष्य हैं, उनकी अपनी राय है और विवेक के इस्तेमाल का कानूनी अधिकार है किन्तु इतना विरोधाभास तो नहीं होना चाहिए। यदि न्यायपालिका चाहती है कि जनता का विश्वास कानून में बना रहे तो उसे विचार एवं समीक्षा करनी चाहिए ताकि इस तरह के ‘विरोधाभास’ से उस पर सवाल न उठ पाएं कानून तो इतना सरल होना चाहिए कि आमजन भी उसे समझ पाए और अपनी बात रखने के लिए उसे किसी मदद की जरूरत न हो।

नब्बे के दशक में एक फिल्म बनी थी अंधा कानून जिसमें कानून की व्यावहारिक विसंगतियों को दर्शाने का प्रयास किया गया था लेकिन अब निठारी कांड आरुषि हत्याकांड तथा और ऐसे ही दर्जनों बहुचर्चित हत्याकांड में जिस तरह के निर्णय आए हैं वह बता रहे हैं कि हमारी न्याय व्यवस्था आज भी लकीर की फकीर है और जुर्म की दुनिया अपराधियों के तौर तरीके अपराधियों के कानून को चकमा देने के नए-नए षड्यंत्र इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जमाने में अदालतों को धोखा देने के लिए बहुत आगे निकल चुके हैं लेकिन हमारी अदालतें वहीं दायरे में बंधी खड़ी हैं। अदालत यह समझने के लिए तैयार क्यों नहीं है कि समय के साथ-साथ उनको भी बदलना होगा। अपने विवेक का सही इस्तेमाल करना होगा। जहां परिस्थिति जन्य साक्ष्य सरकमस्टेंशियल एविडेंस होते हैं वहां ऐसे बेहद घृणित व नृशंस अपराधों में अदालतों को कुछ अलग हटकर अपने विवेक से भी सोचना होगा। सिर्फ जांच एजेंसियों की जांच पर उंगली उठाकर ऐसे अपराधियों को जिन्होंने मानवता को कलंकित किया, बरी कर देना स्वयं में एक अपराध से कम नहीं है। बेहतर होता कि अदालत इस मामले में दोबारा जांच कर सबूत जुटाने का आदेश देती। क्रूरता भरे अपराध जिसमें दर्जनों बच्चों को कत्ल कर उनकी लाश के टुकड़े कर नाले में फेंक दिया गया उसके आरोपी जिम्मेदार अभियुक्तों का इस तरह सबूत के अभाव में बरी हो जाना समूची मानवता के प्रति अपराध है। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button