सपा को न मस्जिद में चैन न मन्दिर में

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के संसद भवन के पास एक मस्जिद में जाने को लेकर राजनीतिक बवाल मच गया है। भाजपा नेताओं ने पार्टी पर एक धार्मिक स्थल के अंदर राजनीतिक बैठक आयोजित करने का आरोप लगाया है। साथ ही कहा कि सपा सांसद डिंपल यादव ने इस दौरे के दौरान सही कपड़े नहीं पहने थे, जैसा कि मस्जिद के अंदर पहने जाते हैं।भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रदीप भंडारी ने कहा कि अखिलेश के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी घोर हिंदू विरोधी है। ये वही नेता हैं जिन्होंने 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के भव्य उद्घाटन का बहिष्कार किया था और इसे एक “राजनीतिक परियोजना” बताकर खारिज कर दिया था। उधर इटावा में अखिलेश यादव द्वारा केदारेश्वर मंदिर का निर्माण विवादों में घिर गया है, क्योंकि केदारनाथ के तीर्थ पुरोहितों ने इसे धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ बताया है। उन्होंने मंदिर के नाम, डिजाइन और रंग-रूप में बदलाव की मांग की है। चारधाम महापंचायत ने चेतावनी दी कि मांगें न माने जाने पर उत्तराखंड और देशभर में बड़े पैमाने पर आंदोलन किया जाएगा।
सपा नेताओं की मस्जिद में बैठक का विवाद तब और बढ़ गया जब इस दौरे की तस्वीरें सामने आईं, जिनमें डिंपल यादव समेत सपा नेता मस्जिद के अंदर बैठे दिखाई दे रहे थे।अखिलेश यादव और डिंपल के इस दौरे को लेकर भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव ने एक धार्मिक स्थल को ‘अनौपचारिक सपा कार्यालय’ में बदल दिया है। जमाल सिद्दीकी ने कहा कि अखिलेश यादव गत दिनों मस्जिद गए थे। वह मस्जिद संसद भवन के सामने स्थित है। सपा सांसद नदवी वहां इमाम हैं। हम उनकी भी निंदा करते हैं। उन्होंने कहा कि एक मस्जिद के अंदर राजनीतिक बैठक क्यों आयोजित की गई? सिद्दीकी ने डिंपल यादव पर तीखे निजी आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि फोटो में डिंपल यादव ब्लाउज पहने बैठी हैं। उनकी पीठ और पेट दिख रहा है। डिंपल यादव ने सिर पर दुपट्टा नहीं रखा था। उन्होंने कहा कि यह मस्जिद के अंदर की आचार संहिता के विरुद्ध है और दुनिया भर में इस्लामी भावनाओं को ठेस पहुंचाता है। हम उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराएंगे। अगर यही हाल रहा तो हम 25 जुलाई को उसी मस्जिद में एक सभा भी करेंगे, जिसकी शुरुआत राष्ट्रगीत से होगी और समापन राष्ट्रगान के साथ होगा।
भाजपा नेता ने सपा पर मस्जिद को ‘मौज-मस्ती’ का अड्डा बनाने का आरोप लगाया और यहां तक आरोप लगाया कि यात्रा के दौरान राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों पर चर्चा की गई। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी सपा पर संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी हमेशा संविधान का उल्लंघन करती है। भारतीय संविधान कहता है कि हम धार्मिक स्थलों का इस्तेमाल राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं कर सकते। उन्हें संविधान में कोई आस्था नहीं है।
समाजवादी पार्टी ने भाजपा के आरोपों का जोरदार खंडन किया। हालांकि, अखिलेश और डिंपल यादव दोनों ने राजनीतिक बैठक के दावों को खारिज कर दिया और इस विवाद को राष्ट्रीय मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास बताया। डिंपल यादव ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। इमाम नदवी जी, जो हमारे सांसद हैं। उन्होंने हमें बुलाया था, इसलिए हम गए थे। बीजेपी गलतफहमी फैला रही है। हम वहां किसी मीटिंग में नहीं गए थे। बीजेपी असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ये सब कह रही है। सरकार जनता से जुड़े मुद्दों पर बात ही नहीं करना चाहती। डिंपल यादव ने बिहार में एसआईआर, पहलगाम हमले और ऑपरेशन सिंदूर जैसे प्रमुख मुद्दों पर सवालों से बचने के लिए भाजपा की आलोचना की और इन्हें बहुत महत्वपूर्ण मामले बताया।
सपा सांसद जिया उर रहमान बर्क ने इस विवाद को निराधार बताया। उन्होंने कहा कि कोई राजनीतिक बैठक नहीं हुई। क्या संसद या सांसदों के आवासों में बैठक करने की जगह नहीं है? वह मस्जिद में बैठक क्यों करेंगे? डिंपल यादव की आलोचना पर उन्होंने कहा कि डिंपल जी ने अपना सिर ढका हुआ था, हो सकता है कि फोटो खींचते समय उनका दुपट्टा खिसक गया हो। सपा नेता राजीव राय ने व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा कि क्या पार्टी नेताओं को मंदिरों और मस्जिदों में जाने के लिए लाइसेंस लेने की जरूरत है। कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी इसी तरह की राय दोहराते हुए भाजपा की टिप्पणी को शर्मनाक बताया। उन्होंने कहा कि मस्जिद के इमाम भी सांसद हैं। अगर वे मस्जिद में बैठे तो क्या बात है? भाजपा को शर्म आनी चाहिए। डिंपल यादव ने भारतीय संस्कृति के अनुसार कपड़े पहने थे। भाजपा नेता मानसिक रूप से दिवालिया हो चुके हैं। वे महिलाओं का अपमान कर रहे हैं।
अब एक दूसरी तस्वीर देखिए। उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा शुरू किए गए केदारेश्वर मंदिर के निर्माण ने एक नए विवाद को जन्म दिया है। यह मंदिर उत्तराखंड के पवित्र केदारनाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया जा रहा है, जिसे लेकर केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों और चारधाम महापंचायत ने कड़ा विरोध दर्ज किया है। केदारनाथ धाम के वरिष्ठ तीर्थ पुरोहित और चारधाम महापंचायत के उपाध्यक्ष संतोष त्रिवेदी ने इस निर्माण को धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ बताया है। उन्होंने कहा कि केदारनाथ धाम केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है, जिसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। उपाध्यक्ष ने जोर देकर कहा कि केदारनाथ के नाम और स्वरूप की नकल कर किसी अन्य स्थान पर मंदिर बनाना श्रद्धालुओं की भावनाओं और धार्मिक परंपराओं का अपमान है। तीर्थ पुरोहितों ने दावा किया है कि इटावा का केदारेश्वर मंदिर केदारनाथ मंदिर की हूबहू प्रतिकृति है। मंदिर का नाम, ढांचा, रंग और डिजाइन लगभग समान हैं, जिसे उन्होंने उत्तराखंड की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत पर हमला बताया है। चारधाम महापंचायत ने इसे स्थानीय लोगों की आस्था और सम्मान के साथ छेड़छाड़ करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि इटावा के मंदिर का नाम, डिजाइन और रंग-रूप बदला जाए। चारधाम महापंचायत ने बद्री-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) की खामोशी पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। तीर्थ पुरोहितों का आरोप है कि बीकेटीसी का ध्यान केवल आय अर्जित करने पर है, जबकि तीर्थयात्रियों को बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिल रही हैं। उन्होंने समिति पर धार्मिक मुद्दों पर निष्क्रियता का आरोप लगाया है, जिससे इस विवाद को और हवा मिल रही है। तीर्थ पुरोहितों ने अखिलेश यादव पर धार्मिक भावनाओं का राजनीतिक लाभ लेने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि अखिलेश ने कभी केदारनाथ धाम की यात्रा नहीं की, फिर भी उन्होंने उत्तराखंड के पवित्र मंदिर की नकल कर उत्तर प्रदेश में राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की है। तीर्थ पुरोहितों का कहना है कि इस तरह की अनदेखी उत्तराखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को कमजोर करती है। यह विवाद धार्मिक और राजनीतिक तनाव को बढ़ाने वाला साबित हो रहा है। जहां समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं ने मंदिर निर्माण को श्रद्धालुओं की आस्था के प्रति समर्पण बताया है, वहीं आलोचकों का कहना है कि यह कदम केवल चुनावी लाभ के लिए उठाया गया है। यह मुद्दा देश में धार्मिक प्रतीकों और परंपराओं को लेकर बढ़ती संवेदनशीलता को भी दर्शाता है। बहरहाल सपा के लिए न मंदिर फलीभूत हो रहा है और न मस्जिद में ही सुकून मिल पा रहा है। (हिफी)