स्टालिन की नाश्ता योजना

भूखे को भोजन कराना और प्यासे को पानी पिलाना हमारी भारतीय परम्परा मंे पुण्य का काम माना जाता है। हालंाकि कौन सचमुच मंे भूखा है, इसकी पहचान करना मुश्किल हो जाता है। बाजार मंे अक्सर भीख मांगती महिलाएं या पुरुष दिख जाते हैं। वे कहते हैं बाबू बड़ी भूख लगी है। आप उनसे कहिए कि आओ कचैड़ी या समोसा खिला दें तो वे फौरन कहेंगे बाबू रुपये दे दो। मेरे घर के सामने नगर निगम के सफाईकर्मी झाड़ू लगाते हैं। वे कहते हैं, बाबूजी चाय पीना है। एक दिन हमने कहा आप लोग कितने हैं, चाय बनवा के पिलाता हूं। वे फौरन हाथ झटकने लगे बाबूजी रुपये दे दो। हम लोग चैराहे जाकर चाय पी लेंगे…। इस प्रकार के लोग भूखे और प्यासे नहीं होते बल्कि किसी न किसी बहाने पैसे मांगते हैं। उसी पैसे से दारू पीते हैं। ये बातें इसलिए याद आयीं कि गत 26 अगस्त को जब खबर पढ़ी कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने मुख्यमंत्री नाश्ता योजना को शहरी क्षेत्रों में भी शुरू किया है। तमिलनाडु की यह योजना बच्चों को भोजन देने की है। गत 26 अगस्त को चेन्नई मंे मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के साथ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान भी बच्चों को भोजन परोस रहे थे। एमके स्टालिन ने 6 मई 2022 को विधानसभा में निःशुल्क नाश्ता दिया जाएगा। यह योजना भी मिड-डे-मील की तरह है। तमिलनाडु मंे इसके तहत पोंगल, खिचड़ी या उपमा जैसे व्यंजन बच्चों को खिलाये जाते हैं। योजना का पहला चरण 15 सितम्बर 2022 को प्रारम्भ किया गया था। बच्चों को पौष्टिक भोजन मिले, इससे अच्छा और क्या हो सकता है। विभिन्न राज्यों में भी सस्ता भोजन काराया जाता है लेकिन जरूरतमंदों तक पहुंच पाता है, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) सरकार की प्रमुख पहल ‘मुख्यमंत्री नाश्ता योजना’ का 26 अगस्त को राज्य के शहरी क्षेत्रों में विस्तार किया। इस विस्तार के साथ योजना का पांचवां चरण शुरू हो गया है, जिससे 2,429 विद्यालयों के 3.06 लाख अतिरिक्त बच्चों को लाभ मिलेगा। योजना के विस्तार के बाद अब राज्य में कुल 20.59 लाख बच्चे ‘मुख्यमंत्री नाश्ता योजना’ से लाभान्वित होंगे। मुख्यमंत्री ने 6 मई 2022 को विधानसभा में घोषणा की थी कि पहली कक्षा से पांचवीं तक के छात्रों के लिए निःशुल्क नाश्ता योजना शुरू की जाएगी। उन्होंने इस योजना का पहला चरण 15 सितंबर को मदुरै में शुरू किया था। स्टालिन ने कहा था, “जस्टिस पार्टी के दिनों से लेकर द्रविड़ मॉडल सरकार तक, हम बच्चों को भोजन प्रदान करते आए हैं और उन्हें शिक्षा उपलब्ध कराते हैं। यह सिर्फ भोजन नहीं है, बल्कि बच्चों के विकास के लिए एक मजबूत आधार है।”
सब्सिडी वाली योजनाएं कई राज्य सरकारों के कल्याणकारी प्रयासों का एक प्रमुख हिस्सा रही हैं लेकिन शहरी गरीबों को सस्ते में भोजन उपलब्ध कराने का विचार सबसे पहले तमिलनाडु में उस समय मुख्यमंत्री रहीं जे. जयललिता को आया था। जयललिता ने फरवरी 2013 में ‘अम्मा उनावगम’ या अम्मा कैंटीन की शुरुआत की थी। उनके कार्यकाल में एआईएडीएमके सरकार के इस प्रमुख कल्याणकारी कार्यक्रम की शुरुआत बड़े धूमधाम से की गई थी। उस समय से ही अम्मा कैंटीन शहरी गरीबों को कम कीमत पर भोजन उपलब्ध करा रही हैं। जयललिता का इरादा राज्य भर में इन सब्सिडी वाले रेस्तरां की एक चेन स्थापित करने का था।
‘अम्मा कैंटीन’ परियोजना के लॉन्च के समय, मीडिया ने इस विचार की सराहना की थी। क्योंकि इसकी वजह से गरीब घरों के बच्चों को कम कीमत में नाश्ता उपलब्ध हो रहा था। यह उनके लिए बहुत उपयोगी साबित हुआ जिनकी माताएं सुबह जल्दी काम पर जाती थीं। डीएमके के सत्ता में आने के बाद भी यह कार्यक्रम जारी रहा, हालांकि कैंटीनों की उपेक्षा की शिकायतें भी आईं। वर्ष 2021 में सरकार के कार्यभार संभालने के तुरंत बाद, एक डीएमके कार्यकर्ता ने जयललिता की तस्वीर वाली एक कैंटीन के बोर्ड को हटाने की कोशिश की थी। लेकिन वह बोर्ड वापस अपनी जगह पर लगा दिया गया और कैंटीनें भी शहरी गरीबों को नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना सस्ती कीमतों पर परोसती रहीं। पहले तो सरकार ने इस परियोजना के विकास पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया था। लेकिन मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कुछ महीने पहले मंत्रियों, विधायकों और स्थानीय निकाय प्रतिनिधियों को निर्देश दिया कि वे समय-समय पर अम्मा कैंटीनों का दौरा करें और उनकी देखभाल और विकास के लिए अधिकारियों को फीडबैक दें। यहां तक कि उन्होंने नए बर्तनों की खरीद और कैंटीनों के नवीनीकरण के लिए भारी भरकम बजट को भी मंजूरी दी।
सराहनीय यह कि इसे राजनीतिक रूप नहीं दिया गया। एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि चेन्नई के 200 वार्डों में और सात सरकारी अस्पतालों में कुल 388 अम्मा कैंटीनें हैं, जो प्रतिदिन औसतन 1,05,000 लोगों को भोजन परोसती हैं। इसका मतलब है कि एक साल में लगभग चार करोड़ बार भोजन परोसा गया। मई 2021 से जुलाई 2024 तक इस पर 469 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं जो कैंटीन में काम करती हैं, उन्हें प्रतिदिन 300 रुपये का भुगतान किया जाता है। पिछले एक साल में इस पर 148.4 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। मुख्यमंत्री स्टालिन खुद शहरी गरीबी दूर करने और एक कल्याणकारी परियोजना को पुर्नस्थापित और विकसित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से प्रयास कर रहे हैं। भले ही इन कैंटीनों का नाम जे. जयललिता के नाम पर रखा गया हो, जिन्हें उनके अनुयायी प्यार से अम्मा कहते थे।
अम्मा कैंटीन के मेनू में तीन विकल्प हैं। इडली का भोजन एक रुपये में, चपाती का भोजन तीन रुपये में और पोंगल, सांभर, दही चावल या अन्य चावल की थाली पांच रुपये में मिलती हैं। वर्ष 2022-23 में ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन ने इस योजना के लिए 4.85 करोड़ रुपये आवंटित किए। अधिकारियों ने बताया कि शहर की करीब 400 कैंटीनें हर दिन 2.5 लाख इडली, लगभग 50,000 प्लेट पोंगल और एक लाख से अधिक प्लेट चावल बेचती हैं। अम्मा कैंटीन की तर्ज पर अन्य राज्यों में भी सस्ते दर पर भोजन उपलब्ध कराने की शुरुआत की गई। उनमें कुछ राज्यों में यह सफलता पूर्वक जारी हैं जबकि कुछ जगहों पर ये बंद हो गईं।
2016 में वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार ने पहली बार सस्ती दर पर भोजन की सुविधा प्रदान की थी। “सबके लिए भोजन, सबके लिए सम्मान” के नारे वाली विशेष वैन पूरे राज्य में भोजन वितरित करती थीं। दिसंबर 2018 में अशोक गहलोत के सत्ता में आने के बाद इस योजना को बंद कर दिया गया। कोविड-19 महामारी के दौरान, 2020 में उन्होंने इंदिरा रसोई योजना शुरू की। वर्तमान में, 800 से अधिक एनजीओ और स्वयं सहायता समूह
इस योजना के तहत भोजन प्रदान कर रहे हैं। इसकी कीमत 17 रुपये है और यह सप्ताह के सभी सात दिन उपलब्ध है।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार ने जनवरी 2020 में इस योजना की शुरुआत की थी. महाराष्ट्र में कुल 1,768 भोजनालय हैं। पिछले साल इस योजना में अनियमितताओं के आरोप लगे थे जब शिवसेना-बीजेपी सरकार ने इसके संचालन में गड़बड़ियों का आरोप लगाया था। इसमें औसतन 1.75 से 1.76 लाख भोजन प्रतिदिन परोसे जाते हैं। शहरी क्षेत्रों में एक थाली की वास्तविक लागत 50 रुपये है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 35 रुपये है। इसे कैंटीनों द्वारा 10 रुपये में बेचा जाता है, बाकी खर्च सरकार उठाती है। (अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)