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दृढ़ इच्छाशक्ति से टूटेगा मिलावट का तिलिस्म

 

कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में 17 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता है परंतु खपत 64 करोड़ टन दूध की है यानी कि उत्पादन से चार गुना अधिक। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार यदि यह रुक जाए तो देश के 7 करोड़ किसानों को फायदा पहुंचेगा और इस बीच के खेल में भारतीय जनमानस भी अपनी सेहत से हो रहे खिलवाड़ को रोक सकेगा।

हाल ही में हमारी संसद की एक समिति ने मिलाबटी खाद्य-पेय पदार्थ बेचने वालों के लिए कम से कम 6 महीने की कैद और न्यूनतम 25000 रुपये जुर्माना की सिफारिश की है, स्थाई समिति ने कहा कि मिलावटी भोजन के सेवन से होने वाली गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए इस धारा के तहत दोषियों के लिए निर्धारित सजा अपर्याप्त है। इसमें कहा गया कि समिति से पारित कर दिया कि इस धारा के तहत अपराध के लिए न्यूनतम 6 माह की कैद और न्यूनतम 25000 रुपए जुर्माना राशि की सजा का प्रावधान किया जाए, हानिकारक खाद्य या पेय पदार्थ की बिक्री का जिक्र करते हुए समिति ने कहा कि इस अपराध में बड़े पैमाने पर जनता को प्रभावित करने की क्षमता है और इस धारा के तहत अपराधियों के लिए निर्धारित की गई सजा भी पर्याप्त नहीं है। इसमें कहा गया है समिति सिफारिश करती है कि इस धारा के तहत अपराध के लिए न्यूनतम 6 महीने की कैद और न्यूनतम 10000 रुपये के जुर्माने की सजा का प्रावधान किया जाए। वर्तमान में खाद्य पदार्थों में मिलावट के अपराध के लिए 6 महीने की अभी तक कारावास या 1000 रुपये का जुर्माना का प्रावधान या दोनों सजाओं का प्रावधान है। समिति ने भारतीय न्याय संहिता के तहत सजा के रूप में सामूहिक सेवा की शुरुआत को स्वागत योग्य कदम बताया है।

इस संदर्भ में यदि आंकड़ों पर जोर दिया जाए तो भारतीय जनमानस के समक्ष देश में मिलावटी वस्तुओं का प्रतिशत चार गुना दिखाई देता है यानी कि हमारी खपत के मुताबिक शुद्ध वस्तुओं की अनुपलब्धता है। वहीं अधिक मुनाफा हासिल करने की प्रवृत्ति भी मिलावट को बढ़ावा देने का काम करती है। मिलावटी वस्तुएं हमें मार्केट में मिल रही हैं और हम उनका अपने दैनिक जीवन में खाने-पीने में उपयोग कर रहे हैं। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में 17 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता है परंतु खपत 64 करोड़ टन दूध की है यानी कि उत्पादन से चार गुना अधिक। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार यदि यह रुक जाए तो देश के 7 करोड़ किसानों को फायदा पहुंचेगा और इस बीच के खेल में भारतीय जनमानस भी अपनी सेहत से हो रहे खिलवाड़ को रोक सकेगा। यह भारतीय किसान की आय में बट्टा लग रहा है।

दूसरी ओर इन रिपोर्ट को देखकर लगता है कि हमारे देश की सरकार आंख मूंद कर भारतीय जनमानस के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने का लाइसेंस देश के मिलावटखोर स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले छोटे-बड़े व्यापारी को खुलेआम दे रही है क्योंकि मात्र 1000 रुपये का जुर्माना उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं डालता है, ले देकर जो कि भारत की संस्कृति बनता जा रहा है उसके तहत पकड़े जाने पर भी ऐसे लोग बाहर से ही जमानत करा कर आ जाते हैं और फिर खुलेआम दुगने जोश के साथ मिलावट के खेल को जारी रखते हैं। कृषि मंत्रालय की यह रिपोर्ट जहां एक ओर दूध के खेल पर्दाफाश करती है, दूसरी ओर इससे साफ जाहिर होता है सरकार जानने के बाद भी सख्त कानून अभी तक क्यों नहीं बना पाई है।

यह भी सच है कि सरकारी मशीनरी के भ्रष्टाचार के चलते मिलावट जारी है नमूना लेने से लेकर नमूना पास कराने तक सरकारी मशीनरी के भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा दोनों हाथों से लूट की जाती है। असली चीज का नमूना भी बिना सुविधा शुल्क बटोरे पास नही किया जाता है। एक एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी करोड़ों की सम्पत्ति रिश्वत में बटोर रहे हैं। जुर्माना राशि बढ़ाने से हलवाई दुकानदारों से मंथली चैथ की राशि बढ़ जाती है। जब तक सिस्टम में भ्रष्टाचार का घुन लगा है, मिलावट खत्म नहीं हो सकती है।

हमारे देश में यदि इस प्रकार के लोगों को नहीं रोका गया आने वाले समय में कितनी ही गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ेगा। आखिर कब तक हमारे देश में हमारे बीच के गद्दार जो मिलावट के कार्य करते हैं या इन्हें रिश्वत लेकर संरक्षण देते हैं खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ाकर इस प्रकार कार्य करते रहेंगे? आखिर क्यों उन्हें कोई नहीं रोक पाता है? कार्यवाही के नाम पर भ्रष्टाचार के चलते आज तक चंद लोगों को ही सजा हुई है बाकी बंदरबांट की संस्कृति के तहत कानूनी कार्रवाई से बच निकलकर आ जाते हैं।

जानकारी के अनुसार हमारे देश में 2018 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह अहलुवालिया ने देश में बिकने वाले करीब 68 प्रतिशत दूध और उससे बने उत्पादों को नकली बताया था और कहा कि यह उत्पाद भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। अहलुवालिया ने दूध और उससे बनने वाले उत्पादों में मिलावट की पुष्टि करते हुए कहा था कि सबसे आम मिलावट डिटर्जेंट, कास्टिक सोडा, ग्लूकोज, सफेद पेंट और रिफाइन तेल के रूप में की जाती है।

भारत में खाद्य पदार्थों में मिलावट बदस्तूर जारी है हमारे देश भारत की नदियां बहने वाले भारत देश में दूध उत्पादन कागजों में दिनों-दिन बढ़ है लेकिन अगर प्रति व्यक्ति दूध उप्लब्धता की बात की जाए तो एक आदमी को पव्वा भर भी दूध नहीं मिलता है और जितना मिलता है वो भी नकली।

मिलावट एक बहुत बड़ा मुद्दा है लेकिन किसी भी सरकार का इस पर ध्यान नहीं जाता है। देश में जितना दूध का उत्पादन हो रहा है उतने पशु ही नहीं बचे है। जो है उनकी दूध उत्पादन क्षमता काफी कम है। किसान जो अभी दूध की दामों को लेकर आंदोलन करते हैं वो अपने आप कम हो जाऐंगे। अगर सरकार मिलावटी दूध और उससे बने उत्पादों कड़ाई से रोक लगाए क्योंकि उन्हें लागत के मुताबिक दाम मिलने लगेगा। मगर इसकी जमीनी हकीकत यह भी है कि भले ही देश का डेयरी उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन उसकी तुलना में किसानों की आमदनी बढ़ने की बजाए लगातार घट रही है।

वर्ष 2018 में फूड रेगुलेटर एफएसएसएआई ने खाने पीने की चीजों में मिलावट करने वालों को उम्रकैद की सजा और दस लाख रुपए तक का दंड देने का प्रावधान किए जाने की सिफारिश की थी,देश में दूध की मिलावट का असर सीधे किसानों की आमदनी में पड़ रहा है। दूध के दाम न मिलने की वजह अधिकतर किसान इस व्यवसाय से मुंह मोड़ रहे हैं। जुर्माना राशि बढ़ाने से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने की संभावना है। इसलिए मिलावट के तिलिस्म को तोड़ने के लिए सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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