अधिकार लांघने पर सुप्रीम नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की एक जज ने अवहेलना की और महाराष्ट्र विधानसभाध्यक्ष विधायकों की अयोग्यता के मामले को टाल रहे हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जतायी है।
रामचरित मानस मंे एक प्रसंग है जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम राक्षसराज विभीषण की सलाह पर समुद्र से लंका जाने का रास्ता मांगते हैं। भगवान राम तीन दिन तक प्रतीक्षा करते रहे लेकिन समुद्र ने कोई जवाब तक नहीं दिया। इस पर राम को क्रोध आया और कहने लगे कि भय के बिना मित्रता भी नहीं होती। अतुलनीय बलशाली श्रीराम अग्निबाण संधान करते हैं और समुद्र खौलने लगता है। विनयावत समुद्र अपनी दीनता दिखाते हुए प्रभु श्रीराम को याद दिलाता है कि
प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही।
मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।। अर्थात् प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी किन्तु मर्यादा स्वभाव भी आपका ही बनाया हुआ है। इसका तात्पर्य यही है कि अधिकार लांघने की इजाजत किसी को नहीं है। बीते दिनों (30 अक्टूबर) को अपना अधिकार लांघने पर एक जज को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कड़ी फटकार लगायी। सीजेआई ने यहां तक कहा कि मैंने 23 साल के जज के कार्यकाल में पहली बार किसी जज को अवमानना नोटिस दिया है। इसके बाद चीफ जस्टिस ने सुप्रीम नाराजगी जताते हुए कहा कि उनको यहां आने दीजिए हम उनको तिहाड़ जेल भेजते हैं। यह मामला फिनोलेटस केबल्स लिमिटेड का था। इसी तरह महाराष्ट्र मंे विधानसभा अध्यक्ष को कड़ी चेतावनी दी और कहा ‘हम नहीं चाहते कि मामला अगले चुनाव तक लटका रहे। अगर स्पीकर सुनवाई नहीं कर सकते तो हम करेंगे। यह मामला शिवसेना बनाम शिवसेना और एनसीपी बनाम एनसीपी में विधायकों की अयोग्यता का है।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन न होने के मामले में कोर्ट ने अभूतपूर्व कदम उठाया है। कोर्ट ने आदेश की अवमानना के आरोप में फिनोलेक्स केबल्स लिमिटेड के चेयरमैन रहे दीपक छाबड़िया पर एक करोड़ रुपये और स्क्रूटनाइजर पर दस लाख रुपये जुर्माना लगाया है। ये राशि अगले दो हफ्ते में प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करने को कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक सदस्य राकेश कुमार और तकनीकी सदस्य आलोक श्रीवास्तव की सदस्यता वाली राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील अधिकरण (एनसीएलएटी) की पीठ ने फिनोलेक्स केबल्स मामले में अपना फैसला सुनाकर उसके 13 अक्टूबर के आदेश की जानबूझकर अवहेलना की। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कुमार और श्रीवास्तव के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही बंद कर दी। न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लिया कि न्यायिक सदस्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है और कुमार के आदेशों का केवल पालन करने वाले श्रीवास्तव ने बिना शर्त माफी मांग ली है। पीठ ने कहा, हमारा मानना है कि इस अदालत के आदेशों की अवहेलना करने की कोशिश की गई है।
सुनवाई के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, मैंने 23 साल के जज के कार्यकाल में किसी जज को पहली बार अवमानना नोटिस दिया है। एनसीएलएटी ने जानबूझकर हमारे आदेशों की अवेहलना की। सुनवाई के दौरान भी इस मामले पर सीजेआई ने बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि कोर्ट आदेश के बाद देश के कारपोरेट जगत को ये ध्यान रखना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट की उन पर सीधी निगाह है। हम यही बता भी रहे हैं। नाराज चीफ जस्टिस ने कहा कि हमारे आदेश के बावजूद जांच करने वाले स्क्रूटनाइजर ने पूर्व सीजेआई से कानूनी राय क्यों और कैसे मांगी और इस आधार पर नतीजे क्यों रोके? उनको यहां आने दीजिए, हम उनको तिहाड़ जेल भेजते हैं, तब उनको इस कोर्ट की शक्ति समझ में आएगी। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि इस मामले का निपटारा अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली एक अन्य एनसीएलएटी पीठ नए सिरे से करेगी। इससे पहले, न्यायालय ने एनसीएलएटी के न्यायिक सदस्य कुमार और तकनीकी सदस्य श्रीवास्तव को नोटिस जारी कर उनसे पूछा था कि फिनोलेक्स केबल्स विवाद मामले में शीर्ष अदालत के आदेश की अवहेलना को लेकर उनके खिलाफ अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए।
एनसीएलएटी पीठ ने शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए यथास्थिति बनाए रखने के आदेश की अनदेखी करते हुए 13 अक्टूबर को फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत ने फिनोलेक्स केबल्स की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) से संबंधित, एनसीएलएटी पीठ के 13 अक्टूबर के फैसले को इसके गुण-दोष पर विचार किए बिना निरस्त कर दिया। न्यायालय ने प्रकाश छाबड़िया के नेतृत्व वाली ‘ऑर्बिट इलेक्ट्रिकल्स’ द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा करते समय यह फैसला सुनाया। ‘ऑर्बिट इलेक्ट्रिकल्स’ फिनोलेक्स केबल्स की एक प्रमोटर इकाई है।
इसी प्रकार महाराष्ट्र में चल रहे राजनीतिक संकट पर सुप्रीम कोर्ट ने अभूतपूर्व कदम उठते हुए बड़ा फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर को 31 दिसंबर तक अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला लेने का स्पष्ट निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा,ष्हम नहीं चाहते कि मामला अगले चुनाव तक लटका रहे। अगर स्पीकर सुनवाई नहीं कर सकते तो हम करेंगे। हमने बार-बार स्पीकर से फैसला लेने के लिए कहा है। महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा दखल देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र स्पीकर के लिए समय सीमा तय कर दी है। सीएम एकनाथ शिंदे और उनके गुट के 33 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिका पर 31 दिसंबर तक फैसला देने का निर्देश कोर्ट ने स्पीकर को दिया है। साथ ही एनसीपी मामले में 31 जनवरी तक फैसला करने का निर्देश दिया गया है।
मामले पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि ऐसा लगता है कि अयोग्यता याचिकाओं को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास किया जा रहा है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की तरफ से दलील दी गई कि दीवाली और क्रिसमस की छुट्टियां आएंगी और इस दौरान शीतकालीन सत्र भी आएगा। इस पर कोर्ट ने कहा कि अगर इन याचिकाओं पर स्पीकर सुनवाई नहीं कर सकते तो लगता है कि समय आ गया है कि अदालत इन पर सुनवाई करें। सीजेआई ने सख्त लहजे में कहा कि अगर स्पीकर इन याचिकाओं पर समयबद्ध तरीके से सुनवाई नहीं कर सकते तो लगता है कि इस अदालत में याचिकाओं को सुनने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि यह कार्यवाही तब तक नहीं चल सकती जब तक अगले चुनाव घोषित न हो जाएं और उन्हें निष्प्रभावी न कर दें। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)