सुप्रीम फटकार, बने नजीर

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
सरकारें, केन्द्र की भी और राज्यों की जनता के टैक्स को जब बेदर्दी से उड़ाती हैं, तब प्रबुद्ध वर्ग को तो तकलीफ होती ही है। आम जनता उन पर ध्यान भी नहीं दे पाती। ऐसा ही एक मामला दिल्ली की केजरीवाल सरकार का सामने आया है, जिसमंे देश की सबसे बड़ी अदालत ने जमकर फटकार लगायी और योजना के बुनियादी ढांचे में रुपये जमा करने को मजबूर भी कर दिया। मामला दिल्ली-मेरठ क्षेत्रीय रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आरआरटीएस) परियोजना का है। दिल्ली सरकार ने अपनी वाहवाही के लिए तीन सालों मंे विज्ञापन के लिए 1100 करोड़ रुपये खर्च कर दिये लेकिन परियोजना के लिए अपने हिस्से का फंड नहीं दिया। जाहिर है कि इससे परियोजना प्रभावित हुई। अदालत की फटकार के बाद दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि परियोजना के लिए धन आवंटित किया जाएगा। इस तरह की गंदी राजनीति को रोका जाना जरूरी है। यह भी देखना चाहिए कि विज्ञापन के नाम पर जनता की गाढ़ी कमायी को लुटाया जाना क्या उचित है? अपने हिस्से का फंड न देने से कितनी ही परियोजनाएं अटकी हैं। पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज-यमुना लिंक नहर परियोजना और राजस्थान मंे पूर्वी राजस्थान नहर योजना वर्षों से लटकी हुई हैं। इनकी लागत बढ़ती जा रही है। आरआरटीएस परियोजना के तहत दिल्ली को राजस्थान और हरियाणा से जोड़ा जाना है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-मेरठ क्षेत्रीय रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आरआरटीएस) परियोजना को लेकर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर दिल्ली सरकार तीन सालों में विज्ञापन के लिए 1100 करोड़ आवंटित कर सकती है, तो बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए फंड भी जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि या तो भुगतान करें या फिर अदालत उसके फंड तो अटैच करने के आदेश जारी करेगी । हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की फटकार और चेतावनी के बाद दिल्ली सरकार दो महीने के भीतर 415 करोड़ का बकाया देने को राजी हो गई ।जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने राज्य सरकार को दो महीने के भीतर परियोजना के लिए बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने की शुरुआत में परियोजना के लिए अपने हिस्से के फंड में देरी को लेकर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी ।इसके बाद उसने दिल्ली सरकार को पिछले तीन वित्तीय वर्षों में विज्ञापनों पर अपने खर्च का विस्तृत ब्यौरा पेश करने का निर्देश दिया था। ऐसा तब हुआ जब दिल्ली सरकार ने कहा कि उसके पास इस परियोजना के लिए फंड नहीं है।
दिल्ली सरकार ने अपने हलफनामे में अपना बचाव किया है। केजरीवाल सरकार ने कहा है कि सरकारी नीतियों के प्रचार के लिए ये खर्च वाजिब, किफायती और कार्यकुशल है। ये खर्च किसी भी तरह से दूसरे राज्यों के प्रचार से ज्यादा नहीं है। प्रचार पर खर्च गुड गवर्नेंस और प्रभावी प्रशासन के लिए जरूरी है। दिल्ली सरकार बुनियादी ढांचे के विकास और संबंधित गलियारों के निर्माण के महत्व को स्वीकार करती है, हालांकि पर्याप्त वित्तीय संसाधनों के बिना, दिल्ली सरकार बजटीय आवंटन करने में सक्षम नहीं है। एक कारण जून 2022 में जीएसटी मुआवजा कार्यक्रम है, जिससे दिल्ली पर बहुत बुरा असर पड़ा है। जीएसटी से राज्य के राजस्व में बढ़ोतरी का वादा कई कारणों से पूरा नहीं हो पाया है, जिसमें कोविड-19 महामारी का प्रभाव भी शामिल है। दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार से अगले पांच वर्षों तक मुआवजा जारी रखने की भी अपील की है, जब तक कि जीएसटी 14 फीसद वार्षिक वृद्धि दर हासिल नहीं कर लेता। साल 22-23 में दिल्ली को जीएसटी मुआवजा 10000 करोड़ मिला था, लेकिन 23-24 में ये सिर्फ 3802 करोड़ रुपये मिलेंगे। इसके अलावा स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक कल्याण जैसी आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं के खर्च भी बढ़ गए हैं।
आरआरटीएस प्रोजेक्ट के जरिए दिल्ली को राजस्थान और हरियाणा से जोड़ा जाना है। इसके तहत हाईस्पीड कम्प्यूटर बेस्ड रेलवे सर्विस दी जाएगी। रैपिड रीजनल ट्रांजिट सिस्टम के जरिए नॉन-पीक टाइम में माल ढुलाई की योजना है। रैपिड रेल 180 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चलेगी। 8 मार्च 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कॉरिडोर की आधारशिला रखी थी। स्थानीय पारगमन आवश्यकताओं के लिए आवंटित 21 किमी (13 मील) के साथ मेरठ में दिल्ली-मेरठ आरआरटीएस नेटवर्क पर स्थानीय पारगमन सेवाएं भी प्रदान की जाएंगी।
एनसीआरटीसी ने मार्च 2023 तक साहिबाबाद और दुहाई के बीच 17 किलोमीटर (11 मील) लंबे प्राथमिकता वाले खंड पर नियमित परिचालन शुरू करने की योजना बनाई है। पूरे 82 किलोमीटर (51 मील) लंबे दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ आरआरटीएस कॉरिडोर के जून 2025 तक चालू होने की उम्मीद है।
दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ आरआरटीएस कॉरिडोर के कार्यान्वयन से क्षेत्र में सार्वजनिक परिवहन के पक्ष में मॉडल शेयर 37 फीसद से 63 फीसद तक स्थानांतरित होने की उम्मीद है, जिसके परिणामस्वरूप यातायात में कमी आने का अनुमान है। अनुमान के मुताबिक, यह गलियारा वायु प्रदूषकों, अर्थात् पीएम 2.5 में 60,000 टन, नाइट्रोजन ऑक्साइड में 475,000 टन, हाइड्रोकार्बन में 80,000 टन और कार्बन मोनोऑक्साइड में 80,000 टन प्रति वर्ष की कमी लाएगा।
इस प्रोजेक्ट की प्रोग्रेस रिपोर्ट की बात करें तो यूपी की तरफ के हिस्से में ज्यादातर पिलर तैयार कर दिए गए हैं। कॉरीडोर के एलिवेटेड हिस्से में लगभग 700 पिलर खड़े कर लिये गए है जो सम्पूर्ण कॉरीडोर का 20 किमी से ज्यादा या एक चैथाई हिस्से जितना निर्माण है। इस समय 13 लॉन्चिंग गैंट्रीज (तारिणी) आरआरटीएस वायडक्ट के निर्माण में दिन-रात काम कर रहे हैं जिससे कॉरीडोर में 7 किमी से ज्यादा का वायडक्ट भी तैयार कर लिया गया है। वहीं, दिल्ली आनंद विहार में जल्दी सुरंग का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा। आनंद विहार साइट पर दिल्ली जल बोर्ड के इंटरसेप्टर सीवर लाइन को शिफ्ट करने का काम भी किया जा रहा है। इस लाइन को माइक्रो टनलिंग बोरिंग के तहत शिफ्टिंग का काम किया जा रहा है। आनंद विहार, दिल्ली में आरआरटीएस कॉरिडोर के कार्य में से 20 मीटर लंबी और 16 मीटर चैड़ाई वाली टनल बोरिंग मशीन के लॉन्चिंग शाफ्ट का निर्माण भी शामिल है। (हिफी)