लेखक की कलम

दागी नेताओं पर सुप्रीम निगरानी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
इसे राजनीति की विडम्बना ही कहेंगे कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने दागी नेताओं की निगरानी करने का निर्देश उच्च न्यायालयों को दिया है। पहले एक-दो मामले ही राजनेताओं के ऐसे होते थे जिनका फैसला अदालत मंे होता था। अब इस तरह के आरोपियों कीे भरमार हो गयी है। मौजूदा समय मंे ही कितने राजनेता जेल के अंदर हैं और उससे कहीं ज्यादा जमानत कराकर फैसले का इंतजार कर रहे हैं। आरोपों का सिलसिला थम नहीं रहा है। पश्चिम बंगाल की सांसद महुआ मोइत्रा पर भी पैसे लेकर संसद मंे सवाल पूछने का आरोप लगाया गया है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा मंे ऐसा बयान दे रहे हैं जिससे महिलाओं का अपमान हुआ है। नेताओं के खिलाफ मुकदमों को आगे बढ़ाने मंे बहुत समय लग रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम विशेष अदालतों मंे प्रत्येक मामले की निगरानी नहीं कर सकते। इसलिए मौत की सजा के आरोपों का सामना कर रहे सांसद और विधायकों के मामलों को सुनने में प्राथमिकता दी जाए। हाईकोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर एमपी-एमएलए कोर्ट मंे चल रहे आपराधिक मामलों का शीघ्र निपटारा करें। सुप्रीम कोर्ट ने एक वेबसाइट बनाने को भी कहा है जिसमंे यह दर्शाया जाए कि जिलावार कितने मामले पेंडिंग हैं। इस प्रकार गंभीर अपराधों मंे आरोप तय होते ही चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शीघ्र ही सुनवाई कर सकेगा। उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया का मामला भी इसी तरह का है।
दागी नेताओं से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा कदम उठाया है। कोर्ट ने एमपी/एमएलए के खिलाफ आपराधिक मामलों पर दिशा-निर्देश जारी करते हुए हाईकोर्ट को निगरानी करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट चीफ जस्टिस ऐसे मामलों पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई करें, जिला जज स्पेशल कोर्ट के ट्रायल की निगरानी करें। हाईकोर्ट समय समय पर ट्रायल की रिपोर्ट मांगे। साथ ही सांसदों/विधायकों पर ट्रायल के लिए और स्पेशल कोर्ट हों। कोर्ट ने कहा कि हम विशेष अदालतों में प्रत्येक मामले की निगरानी नहीं कर सकते। मौत की सजा के आरोपों का सामना कर रहे सांसद/विधायकों के मामलों को प्राथमिकता दी जाए। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि गाइडलाइन बनाना हर राज्य के लिए बनाना संभव नहीं, हर राज्य में परिस्थितियां अलग अलग हैं। ये हम हाईकोर्ट पर छोड़ते हैं कि एमपी/एमएलए कोर्ट मॉनिटरिंग करें।
हाईकोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर एमपी/एमएलए कोर्ट में चल रहे अपराधिक मामलों का जल्दी निबटारा करें। इस बेंच में चीफ जस्टिस हो सकते हैं। हाईकोर्ट जिला जजों से इस तरह के चल रहे केस की रिपोर्ट मांग सकते हैं। ट्रायल कोर्ट अति जरूरी कारणों के अलावा सुनवाई नहीं टालेंगे। इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किए जाएं, एक वेबसाइट बनें जिसमें जिलावार स्टेटस हो कि कितने केस पेंडिंग हैं। गंभीर अपराधों में आरोप तय होते ही चुनाव लडने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आगे सुनवाई करके आदेश जारी करेगा। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच ने ये फैसला बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर दिया है। उपाध्याय ने एमपी/एमएलए के खिलाफ आपराधिक मामलों के फास्ट ट्रैक ट्रायल की अर्जी दाखिल की थी।
मामले जल्दी निपटाने चाहिए। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के इटावा से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद रामशंकर कठेरिया को एमपी/एमएलए अदालत ने साल 2011 में एक बिजली कंपनी के कर्मचारी के साथ मारपीट के मामले में दो साल के कारावास की सजा सुनाई। अदालत ने पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। दो साल कैद की सजा होने के बाद कठेरिया की संसद सदस्यता भी जा सकती है। कठेरिया के खिलाफ 2011 में टॉरेंट पावर कंपनी के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ मारपीट एवं बलवा करने का मामला दर्ज किया गया था। राज्य में उस समय मायावती के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी। कठेरिया के खिलाफ आगरा के हरिपर्वत थाने में आईपीसी की धारा 147 (बलवा) और धारा 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने) के तहत मामला दर्ज किया गया था। विशेष एमपी/एमएलए अदालत के न्यायाधीश अनुज ने कठेरिया को टॉरेंट पावर कंपनी के अधिकारी के साथ मारपीट करने और बलवा करने का दोषी ठहराया। सांसद के अधिवक्ता ने आदेश के खिलाफ सत्र न्यायालय में अपील करने का हवाला देकर उनकी जमानत स्वीकृत करने का आग्रह किया, जिस पर अदालत ने उनकी जमानत स्वीकृत कर रिहाई का निर्देश दिया। अदालत का फैसला आने के बाद कठेरिया ने कहा, ‘‘मैं अदालत के आदेश का सम्मान करता हूं, लेकिन मैं ऊपरी अदालत में अपील करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करूंगा।
राम शंकर कठेरिया ने 2009 में आगरा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी। वह 2014 में फिर से आगरा संसदीय सीट से चुनाव जीते और उन्हें केंद्र सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री बनाया गया। वह नवंबर 2014 से 2016 तक उस पद पर रहे। उन्हें राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया। साल 2019 के चुनाव में उन्हें आगरा लोकसभा सीट से टिकट देने से इनकार कर दिया गया और उन्हें इटावा से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया, जहां से उन्होंने फिर से जीत हासिल की।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा था कि अब देखना यह है कि लोकसभा अध्यक्ष इटावा से भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया को कब अयोग्य करार देते हैं।
इसी प्रकार एनसीपी नेता और लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल को बड़ा झटका लगा था। उन्हें दूसरी बार अयोग्य करार दिया गया है और लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई है। दरअसल, केरल हाईकोर्ट ने हत्या के प्रयास के एक मामले में सांसद फैजल की सजा को निलंबित करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद लोकसभा सचिवालय ने नोटिफिकेशन जारी कर मोहम्मद फैजल को अयोग्य घोषित कर दिया।
राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा करते हुए चुनाव आयोग ने दागी उम्मीदवारों को लेकर भी राजनीतिक पार्टियों को हिदायत दी। आयोग ने कहा कि दागी उम्मीदवारों को क्यों टिकट दिया, इसे सभी दल को बताना होगा, नहीं बताने पर कानून सम्मत कार्रवाई करने की बात भी आयोग ने कही। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि किसी उम्मीदवार का अगर आपराधिक बैकग्राउंड है, तो उसे तीन बार लोगों को बताना होगा। इसके अलावा पार्टी के आधिकारिक वेबसाइट और टीवी मीडिया में भी दागी उम्मीदवारों के बारे में राजनीतिक दलों को जानकारी शेयर करनी पड़ेगी। राजीव कुमार ने पत्रकारों से कहा कि यह नियम तो पहले से ही है, लेकिन अब हम इसे सख्ती से लागू कराने की कोशिश कर रहे हैं।
वर्तमान में नैतिकता से ज्यादा चुनाव जीतना राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है। दागी उम्मीदवारों के चुनाव जीतने के प्रतिशत में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में दागी उम्मीदवारों को राजनीतिक दल भी हाथों-हाथ लेते है। दागियों की एंट्री की सबसे बड़ी वजह पैसा और नेटवर्किंग है। चुनाव लडने के लिए उम्मीदवारों और पार्टियों को जितने पैसे की जरूरत होती है, जो साधारण लोगों के बस में नहीं है। (हिफी)

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