सर्व कामना पूर्ण करने वाला सूर्यषष्ठी व्रत 27 अक्टूबर को
सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य का समय...सायं 05.35 व्रतस्य प्रातः सूर्यार्घ दान मंगलवार को प्रातः 06.25 बजे के पश्चात् करें।


महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान “ट्रस्ट”के ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय ने बताया कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सर्व कामना पूर्ण करने वाला सूर्य षष्ठी व्रत मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने वाली स्त्रियां धन-धान्य-पति -पुत्र व सुख,समद्धी से परिपूर्ण व संतुष्ट रहती हैं । यह सूर्य षष्ठी व्रत चार दिनों का है। इस बार 25 अक्टूबर शनिवार (चतुर्थी) को नहाय खाय व्रत प्रारम्भ हुआ है। नहाय खाय के साथ ही छठ पूजा का प्रारम्भ हो जाता है। इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई करने के पश्चात सात्विक भोजन किया जाता है। इसके अगले दिन 26 अक्टूबर रविवार (पंचमी) को खरना है।
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। खरना इस दिन से व्रत शुरू होता है और रात में खीर खाकर फिर 36 घण्टे का कठिन निर्जला व्रत रखा जाता है। खरना के दिन सूर्य षष्ठी पूजा के लिए प्रसाद बनाया जाता है।
तीसरे दिन 27 अक्टूबर सोमवार को सूर्यषष्ठी व्रत रहते हुए सायं काल अस्त होते हुए सूर्य को सूर्यार्घ पूजन के बाद अर्घ दिया जायेगा। यह व्रत महिलाएं 36 घण्टे तक करती है। मंगलवार को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात पारणा होगा। इस व्रत को करने से समस्त कष्ट दूर होकर घर में सुख शान्ति व समृद्धि की प्राप्ति होती है । ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय बताते है कि सूर्यष्ठी व्रत करने से विशेषकर चर्म रोग व नेत्र रोग से मुक्ति मिल सकती है। इस व्रत को निष्ठा पूर्वक करने से पूजा व अर्घ दान देते समय सूर्य की किरण अवश्य देखना चाहिए। प्राचीन समय में बिन्दुसर तीर्थ में महिपाल नामक एक वणिक रहता था। वह धर्म-कर्म तथा देवताओं का विरोध करता था । एक वार सूर्य नारायण की प्रतिमा के सामने खड़े होकर उसने मल-मूत्र का त्याग किया, जिसके फल स्वरूप उसकी दोनों आखें नष्ट हो गई । एक दिन यह वणिक जीवन से उब कर गंगा जी में कूद कर प्राण देने का निश्चय कर चल पड़ा। रास्ते में उसे ऋषि राज नारद जी मिले और पूछे -कहिये सेठ जी कहां जल्दी जल्दी भागे जा रहे हो ? अन्धा सेठ रो पड़ा और कहा सांसारिक सुख-दुःख की प्रताड़ना से आजिज आकर प्राण- त्याग करने जा रहा हूँ -मुनि नारद जी बोले- हे अज्ञानी तू प्राण-त्याग कर मत मर। भगवान सूर्य के क्रोध से तुम्हें यह दुख भुगतना पड़ रहा है ! तू कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सूर्य षष्ठी का व्रत रख,-तेरा कष्ट समाप्त हो जायेगा। वणिक ने समय आने पर यह व्रत निष्ठा पूर्वक किया जिसके फल स्वरूप उसके समस्त कष्ट मिट गए व सुख-समृद्धि प्राप्त करके पूर्ण दिव्य ज्योति वाला हो गया। अतः इस व्रत व पूजन को करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है। (पं. राकेश पाण्डेय-हिफी फीचर)


