सिक्किम मंे तमांग ही तमांग

छोटे से राज्य सिक्किम मंे भाजपा ने छोटी सी चूक कर दी लेकिन उसका नतीजा बहुत बड़ा दिखाई पड़ा। सिक्किम मंे भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनाव मंे सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा से झगड़ा कर लिया। इसी मोर्चा के नेता प्रेम सिंह तमांग मुख्यमंत्री हुआ करते थे। प्रेम सिंह तमांग केन्द्र मंे भाजपा के सहयोगी दल के रूप मंे समर्थन भी कर रहे थे लेकिन भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पिछले कुछ महीनों से ऐसे फैसले ले रहा है जिससे सहयोगी दल ही नहीं पार्टी के नेता भी हैरान रह जाते हैं, भले ही वे खुलकर विरोध नहीं कर पाते। सिक्किम मंे भी भाजपा ने इसी तरह का फैसला किया। विधानसभा चुनाव मंे भाजपा ने अकेले दम पर चुनाव लड़ने का फैसला किया और 32 सदस्यीय विधानसभा के लिए 31 पर अपने प्रत्याशी उतारे थे। सिक्किम की जनता को महसूस हुआ कि सचमुच बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। यही कारण रहा कि भाजपा को एक भी विधायक नहीं मिल पाया और प्रेम सिंह तमांग की पार्टी को 31 सीटों पर विजय हासिल हुई है। राजनीति में लोक की उपेक्षा करने का सबक सिक्किम की जनता ने सिखाया है। जनता ने प्रेम सिंह तमांग को प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता सौंपी है।
दार्जिलिंग के कालेज से स्नातक की उपाधि हासिल करने वाले प्रेम सिंह तमांग 1990 मंे सरकारी स्कूल में शिक्षक बने थे। समाज सेवा का जज्बा रखने वाले तमांग ने 1994 मंे नौकरी छोड़कर सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (सीडीएफ) की स्थापना की। वह लगभग 20 साल तक सीडीएफ से जुड़े रहे। तमांग ने 2013 मंे सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (सीकेएम) बनाया और 2014 के विधानसभा चुनाव में 14 सीटों पर उनकी पार्टी को विजयश्री भी मिली। तमांग को 2017 मंे भ्रष्टाचार के मामले मंे दोषी पाये जाने पर साल भर जेल में रहना पड़ा था। उन दिनों पवन चामलिंग बड़े नेता हुआ करते थे। तमांग ने 2019 के चुनाव मंे 17 सीटों पर विजय प्राप्त की थी और पवन कुमार चामलिंग को सत्ता से हटाया था। इस बार 2024 के विधानसभा चुनाव मंे 32 मंे से 31 सीटें जीतकर रिकार्ड बनाया है।
सिक्किम विधानसभा चुनाव के नतीजों में इस बार बीजेपी का प्रदर्शन बेहद ही खराब रहा। अबकी बार बीजेपी ने राज्य की 32 में से 31 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा था लेकिन उसे एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हो सकीं। बीजेपी के इस खराब प्रदर्शन की वजह एसकेएम और बीजेपी का अलग-अलग चुनाव लड़ना माना जा रहा है। दरअसल केंद्र में बीजेपी को एसकेएम का समर्थन हासिल है, लेकिन इस बार दोनों पार्टियों ने सिक्किम में चुनाव अलग लड़ने का फैसला किया था। एक तरफ पूरे देश में बीजेपी की लहर की बात कही जाती थी, वहीं दूसरी ओर सिक्किम में बीजेपी को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। राज्य के निवर्तमान सदन में उसके 12 सदस्य थे।
सिक्किम विधानसभा के नतीजे 2 जून को घोषित किए गए थे जिसमें सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने 32 में से 31 सीट जीतकर सत्ता बरकरार रखी है। राज्य में इस बार बीजेपी को केवल 5.18 प्रतिशत वोट ही मिल सके। एसकेएम को 58.38 प्रतिशत वोट मिले, जबकि सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को 27.37 प्रतिशत वोट मिले। इन परिणाम से अंदाजा हो रहा है कि सिक्किम में बीजेपी का प्रदर्शन कितना खराब रहा। भाजपा का सिक्किम में इतना खराब प्रदर्शन क्यों रहा। सिक्किम में बीजेपी के हार के कुछ प्रमुख कारण क्या रहे। सिक्किम के बीजेपी अध्यक्ष दिली राम थापा अपर बुर्तुक विधानसभा क्षेत्र में एसकेएम उम्मीदवार काला राय से हार गए। मौजूदा विधायक एवं पूर्व मंत्री थापा को 2,968 मतों से शिकस्त मिली जहां राय को 6,723 वोट मिले, वहीं थापा को 3,755 वोट मिले। सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के डी बी थापा को 1,623 वोट मिले, जबकि बी के तमांग (सीएपी-ए) को 581 वोट मिले। बीजेपी ने लाचेन मंगन सीट को छोड़कर 31 विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ा और अधिकांश सीट पर बीजेपी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। भारतीय जनता पार्टी और एसकेएम में सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनी थी, जिसके बाद इस बार दोनों ही पार्टियों ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था। जाहिर सी बात है कि बीजेपी को अकेले चुनाव लड़ने का नुकसान तो हुआ ही है, वहीं निवर्तमान सिक्किम विधानसभा में बीजेपी के 12 विधायक थे, जिनमें से दस विपक्षी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) के दलबदलू थे जबकि दो अन्य ने एसकेएम के साथ गठबंधन में अक्टूबर 2019 में हुए विधानसभा उपचुनाव जीते थे। उन 12 विधायकों में से पांच ने पार्टी छोड़ दी है, जिनमें से तीन एसकेएम में शामिल हो गए हैं और एसकेएम के चिह्न पर विधानसभा चुनाव लड़े। शेष सात बीजेपी विधायकों में से केवल दो को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिला था।
बीजेपी और सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा का गठबंधन चुनाव से पहले ही टूट गया था जिसके बाद दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की इस शानदार जीत के पीछे जिस एक शख्स का योगदान हैं वो हैं मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग जो कि सहयोगी दल के रूप में बीजेपी का केंद्र में समर्थन कर रहे हैं। प्रेम सिंह तमांग यूं तो बीजेपी के दोस्त भी माने जाते हैं, लेकिन इस बार उन्हीं की वजह से बीजेपी सिक्किम में जीरो नंबर तक पहुंच गई है।
प्रेम सिंह तमांग का शिक्षक से राजनेता और फिर मुख्यमंत्री बनने का सफर भी कम रोचक नहीं है। तमांग की पार्टी ने इन चुनावों में 32 सीटों में से 31 पर जीत दर्ज की है। तमांग अपने राजनीतिक गुरु को हराकर एक बार फिर सिक्किम की बागडोर संभालने जा रहे हैं। तमांग ने बेटे आदित्य गोले का भी सोरेंग-चाकुंग सीट से टिकट काट दिया था। इस फैसले से भी उन्होंने लोगों के दिलों में अलग जगह बनाई। इस सीट से उन्होंने खुद चुनाव लड़ जीत हासिल की। प्रेम सिंह तमांग ने कहते हैं कि हम बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा हैं। इस बार हमने राज्य में राजनीतिक परिदृश्य और समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग चुनाव लड़ा। हालांकि, हमारे बीच कोई कड़ा मुकाबला नहीं हुआ, हमने 2019 में भी गठबंधन के रूप में चुनाव नहीं लड़ा था, बीजेपी को हमारा समर्थन केवल केंद्र में है।
सिक्किम में 2019 के विधानसभा चुनाव तक भारतीय जनता पार्टी का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड बहुत खराब रहा है। बीजेपी ने 1994 में सिक्किम की चुनावी राजनीति में प्रवेश किया था, जब उसने तीन सीट पर चुनाव लड़ा था और तीनों सीट पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी। इस बार के चुनाव में सिक्किमी पहचान का मुद्दा काफी अहम रहा, इसलिए ये मुद्दा सभी पार्टियों के एजेंडे में भी शामिल रहा। एसकेएम ने राज्यभर में इस बात पर खासा जोर दिया कि इस बार का चुनाव यहां के स्थानीय लोगों की आत्मा की लड़ाई है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि एसडीएफ की विभाजनकारी राजनीति से लोग खफा थे और जिसका खामियाजा साल 2019 में उन्हें भुगतना पड़ा। पिछले दिनों राज्य में सिक्किमी लोगों की परिभाषा का विस्तार किया गया था, बताया जा रहा है कि इससे ज्यादातर क्षेत्रीय दलों में नाराजगी चली आ रही थी। नई परिभाषा के तहत नए वित्त अधिनियम 2023 में 1975 तक सिक्किम में रहने वाले पुराने निवासियों के वंशजों को शामिल किया गया जिसमें स्थानीय लेप्चा, भूटिया और नेपाली लोगों से परे सिक्किमी लोगों की परिभाषा का विस्तार हुआ। भाजपा ने अपनी तरफ से बचाव किया था लेकिन जनता की नाराजगी दूर नहीं कर सकी। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)