सम-सामयिक

नई पीढ़ी को सुनाएं अगस्त क्रांति की कहानी

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
जुलाई बीत गयी। अगस्त का प्रारम्भ हो गया है। भारत के लिए ये सामाजिक त्योहार के दिन होते हैं। सावन का महीना इसी अवधि में पड़ता है। एक तरफ हर-हर महादेव का जयघोष तो दूसरी तरफ त्योहारों की झड़ी लग जाती है। नागपंचमी, रक्षाबंधन और फिर सम्पूर्ण कला के अवतार भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव की तैयारी शुरू हो जाती है। बच्चे भारतीय परम्पराओं से अब दूर होते जा रहे हैं। उन्हें बताएं कि हैरी पोर्टर की कहानी से ज्यादा महत्वपूर्ण है अगस्त क्रांति की कहानी। मुंबई जाकर चैपाटी पर घूमते हैं लेकिन अगस्त क्रांति मैदान (गोवलिया टैंक मैदान) भी जाया करें। हमारा देश जब आजाद नहीं था, तब ये त्योहार भी फीके लगते थे। देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष तो 1857 से ही प्रारम्भ हो गया था लेकिन उसे योजनाबद्ध ढंग से लड़ा गया राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व मंे। महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को बाम्बे के गोवालिया टैंक पर बहुत बड़ी जनसभा की। यहां शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक महात्मा गांधी और अन्य नेताओं ने भाषण किया था। इस आंदोलन के नाम को लेकर भी बहुत चर्चा हुई थी। गांधी जी इसे आर पार की लड़ाई साबित करना चाहते थे। इसलिए ऐसा नारा तलाशा जा रहा था जो हर भारतीय के मन-मस्तिष्क पर छा जाए। यूसुफ मेहर अली ने सुझाव दिया कि इस आंदोलन का नाम होगा- अंग्रेजों भारत छोड़ो, भारत छोड़ो आंदोलन के साथ ही अंग्रेजी हुकूमत डगमगा गयी थी और अंततः 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। दुखद है कि कुटिल अंग्रेजों ने जाते-जाते भारत के दो टुकड़े कर दिये। अलग हुआ पाकिस्तान आज भी कैंसर बना हुआ है। इसके बावजूद अगस्त क्रांति की कहानी बताती है कि ब्रिटिश राज के सूरज डूबने की शुरुआत कैसे हुई थी।
7 अगस्त 1942 की शाम बॉम्बे में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक हुई और इस बैठक में ये तय हुआ कि अगले रोज बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) अंग्रेजों से सत्ता हासिल करने की मुहिम में एक विशाल जनसभा होगी। अगले दिन शाम को इसी मैदान महात्मा गांधी ने चर्चित भाषण दिया।
इसी भाषण में उन्होंने करो या मरो का नारा दिया। इसके साथ ही बापू ने भीड़ की ओर ताकते हुए जोरदार आवाज में कहा, भारत छोड़ो। इस नारे के साथ ब्रितानी सरकार का सूरज हमेशा के लिए डूबाने का इरादा बुलंद किया गया। यहीं से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत हुई। इसे अगस्त क्रांति आंदोलन भी कहा जाता है।
8 अगस्त 1942 को बॉम्बे के गोवालिया टैंक स्वतंत्रता सेनानियों के भाषण देने का सिलसिला शाम 6 बजे शुरू हुआ और ये रात 10 बजे तक चलता रहा। इस दिन कुल चार लोगों ने भाषण दिया था और ये भाषण इतिहास में दर्ज हो गया। सबसे पहले मौलाना अबुल कलाम आजाद ने भाषण दिया। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल और आखिरकार मोहनदास करमचंद गांधी ने जनसभा को संबोधित किया। इस दिन ही स्वतंत्रता आंदोलन की ग्रैंड ओल्ड लेडी के नाम से मशहूर अरुणा आसफ अली गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराया था।
इस आंदोलन के नाम को लेकर बहुत चर्चा हुई थी। महात्मा गांधी चाहते थे कि आंदोलन का नाम ऐसा हो जो लोगों के जेहन में घर कर जाए। इसके लिए कई नाम सुझाए गए। आखिरकार भारत छोड़ो का नारा यूसुफ मेहरअली ने दिया। यूसुफ ने ही साइमन वापस जाओ का नारा भी दिया था।
भारत छोड़ो आंदोलन के आगाज के साथ ही अंग्रेजी हूकूमत के कान खड़े हो गए। साल 1942 के अंत तक 60,000 से अधिक लोगों को जेल में डाल दिया गया और सैकड़ों लोग मारे गये। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल सहित कांग्रेस के कई शीर्ष नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
भारत में ब्रितानी सरकार के खिलाफ हो रहे आंदोलन को देखते हुए अंग्रेजी सरकार ने स्टैफोर्ड क्रिप्स को एक नए संविधान और स्वशासन और भारतीय लोगों की दुविधा को हल करने के लिए मिशन भेजा गया था। यह मिशन विफल रहा। इसकी वजह ये कि ब्रिटिश सरकार भारत पूर्ण स्वतंत्रता नहीं बल्कि विभाजन के साथ-साथ भारत को डोमिनियन स्टेटस देने की पेशकश कर रही थी। डोमिनियन स्टेटस यानी ब्रितानी सरकार के आधिपत्य को स्वीकार करते हुए अपनी सरकार बनाना। इसके अलावा भारतीय स्वतंत्रता सेनानी दूसरे विश्व युद्ध में भारतीय नागरिकों को भेजने के खिलाफ थे।
क्रांति शब्द का अर्थ है आंदोलन और दिवस का अर्थ है दिन, क्रांति का दिन। भारत छोड़ो आंदोलन की तिथि 9 अगस्त 1942 तय की गई। भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे भारत छोड़ो आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है, महात्मा गांधी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की ओर से 8 अगस्त, 1942 को बॉम्बे अधिवेशन में पेश किया गया था। अगस्त आंदोलन, जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, भारत छोड़ो आंदोलन का दूसरा नाम है। इस सविनय अवज्ञा अभियान का लक्ष्य भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था। गांधी के भाषण ने देश से करो या मरो का आग्रह किया।
8 अगस्त, 1942 को बॉम्बे अधिवेशन में कांग्रेस ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन की स्थापना के लिए एक प्रस्ताव पारित किया। अगले दिन, 9 अगस्त को पूरे देश से लोग इसमें शामिल हुए और आंदोलन ने तेजी से रफ्तार पकड़ी। महात्मा गांधी ने इस दिन करो या मरो नारा गढ़ा था। इसी दिन महात्मा गांधी को हिरासत में भी लिया गया था। खास बात यह कि भारत छोड़ो आंदोलन कांग्रेस नेतृत्व के बिना जारी रहा था। छात्रों, मजदूरों और किसानों सहित विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों ने इस आंदोलन का पुरजोर समर्थन किया, जिसने भारत में राष्ट्रवाद की गहराई को दर्शाया। आंदोलन के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश अधिकारियों ने भारतीय स्वतंत्रता के बारे में चर्चाओं को और अधिक गंभीरता से लेना शुरू कर दिया। इसीलिए 9 अगस्त को भारत में अगस्त क्रांति दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ का प्रतीक है, जिसने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई को मजबूत किया। आंदोलन के नारे फ्री इंडिया या भारत छोड़ो थे, और गांधी ने ‘करो या मरो’ के नारे के साथ लोगों से आग्रह किया। इसका उद्देश्य कांग्रेस की अहिंसा की विचारधारा का पालन करते हुए अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्रता देने का शांतिपूर्ण आग्रह करना था। इस प्रस्ताव में ब्रिटिश शासन को तत्काल समाप्त करने, एक अनंतिम सरकार के गठन और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सविनय अवज्ञा की मांग की गई थी।
गांधीजी ने विभिन्न समूहों को निर्देश जारी किए। सरकारी कर्मचारियों को कांग्रेस के प्रति वफादारी की घोषणा करनी थी, सैनिकों से आग्रह किया गया कि वे देशवासियों पर गोली न चलाएं, किसानों को लगान भुगतान के संबंध में सलाह दी गई, छात्रों को पढ़ाई छोड़ने का विकल्प दिया गया तथा राजकुमारों और रियासतों के लोगों से आंदोलन का समर्थन करने का आह्वान किया गया था।
भारत छोड़ो आंदोलन को रोकने के लिए अधिकारियों ने हिंसा का इस्तेमाल किया, जिसके कारण महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 100,000 लोगों को गिरफ्तार किया गया। आंदोलन ने साबित कर दिया कि भारतीयों की सहमति के बिना भारत पर शासन करना अब संभव नहीं था। लोगों ने उल्लेखनीय बहादुरी दिखाई और दमन के बावजूद आंदोलन जारी रखा। (हिफी)

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