कश्मीर में आतंकी गतिविधियाँ

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 18 सितंबर को पुरानी संसद से नई संसद में प्रवेश के अवसर पर स्मृतियों को ताजा किया था। इस दौरान जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी करना भी शामिल था। इस राज्य को दो टुकड़ों में बांटकर दोनों को केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। शासन व्यवस्था केन्द्र के अधीन है, इसलिए वहां की आतंकी गतिविधियों पर पूरी तरह अंकुश न लग पाने के लिए भी केन्द्र सरकार को अपनी जिम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के गडोले वन क्षेत्र में हमारे सुरक्षा बलों को जिस समस्या से गुजरना पड़ रहा है, उसकी निष्पक्ष समीक्षा होनी चाहिए। आतंकवादियों ने हमारे चार जवानों को शहीद कर दिया। गत 12 सितम्बर को इस क्षेत्र में 19 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग आफीसर कर्नल मनप्रीत सिंह और मेजर आशीष ढोचक शहीद हो गये थे। एक जवान हुमायू भट भी शहीद हुआ था। मुठभेड़ से पहले दिन ही प्रदीप नामक सैनिक लापता हो गया था। लगभग 6 दिन मुठभेड़ के बाद सैनिक प्रदीप का शव बरामद हआ। सातवें दिन प्रमुख आतंकी उजैर को मार गिराया। घने जंगल और पहाड़ में गुफाएं बनी हैं जिनमें आतंकियों ने शरण ले रखी थी। टोही विमान भी आतंकियों को खोज रहे थे। सवाल यह उठता है कि ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में आतंकवादी कैसे पहुंचे? घाटी में कुछ लोग आतंकवादियों को अपने घरों में पनाह दे रहे हैं।
सुरक्षा बलों का यह कहना भी सही है कि घुसपैठियों को पाकिस्तान की सेना मदद करती है। भारतीय सेना उसको मुंहमोड़ जवाब भी दे रही है लेकिन कश्मीर घाटी में लोगों के घरों में पनाह लेने वालों और गडोले वन क्षेत्र जैसे इलाके में आतंकवादियों की पहुंच हर हालत में रोकनी होगी। ताजा खबर थी कि गुफा को चारों तरफ से सेना ने घेर रखा था और आतंकवादियों का बचना नामुमकिन बताया जा रहा था लेकिन 2-3 आतंकियों को काबू में करने के लिए 6 दिन तक मुठभेड़ चले, यह भारत जैसे देश के लिए आश्चर्य की बात है। हमारी निगरानी व्यवस्था में कहीं न कहीं कमी है।
जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग जिले के गडोले वन क्षेत्र में सुरक्षा बलों को आतंकवाद रोधी अभियान के छठे दिन को दो शव मिले।केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने मुठभेड़ में शहीद हुए सेना के तीन अधिकारियों और एक सैनिक की शहादत का बदला लेने की प्रतिबद्धता जताई थी। सूत्रों ने बताया कि वन क्षेत्र से दो शव बरामद किये गये।सूत्रों ने बताया कि मृतकों में से एक की पहचान सैनिक प्रदीप के रूप में हुई है, जो 13 सितम्बर को आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गये थे, जबकि दूसरे मृतक की पहचान की जा रही है।आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में हुमायूं भट के अलावा, 19 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल मनप्रीत सिंह और मेजर आशीष ढोचक शहीद हो गये थे।मुठभेड़ के पहले दिन ही प्रदीप लापता हो गये थे और ऐसा माना गया था कि वह मारे गये हैं।
इससे पहले, यहां मौजूद अधिकारियों ने बताया था कि पिछले छह दिन से जारी इस आतंक विरोधी अभियान के दौरान नष्ट हुए आतंकी ठिकानों में से एक के समीप ड्रोन की फुटेज में एक व्यक्ति का झुलसा हुआ शव पड़ा दिखाई दे रहा है।उन्होंने बताया था कि सुरक्षा बलों द्वारा इलाके की छानबीन करने के बाद ही अधिक जानकारी प्राप्त हो सकेगी। अधिकारियों ने बताया कि सुरक्षा बल घने वन क्षेत्र में ड्रोन और हेलीकॉप्टर के जरिए तलाश कर रहे हैं। माना जा रहा था कि शुरुआती मुठभेड़ में सेना के दो अधिकारियों और एक पुलिस उपाधीक्षक के शहीद होने के बाद से आतंकवादी यहीं छिपे हैं।अधिकारियों ने बताया कि वन क्षेत्र में कई गुफानुमा ठिकाने हैं। इसके बाद एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उपराज्यपाल ने कहा कि शहीदों के खून की एक-एक बूंद का बदला लिया जाएगा और आतंकवादियों के आकाओं को इसकी भारी कीमत चुकानी होगी। मनोज सिन्हा ने कहा, हमें हमारे सैनिकों पर पूरा भरोसा है….पूरा देश जवानों के साथ एकजुटता से खड़ा है। पुलिस महानिदेशक (जीपी) और सेना की 15वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) सहित कश्मीर में सुरक्षा बल के शीर्ष अधिकारी अभियान पर नजर बनाए हुए थे। सेना की उत्तरी कमान के कमांडर ने हालात का जायजा लेने के लिए मुठभेड़ स्थल का दौरा किया था। पुलिस का मानना था कि वन क्षेत्र में दो से तीन आतंकवादी छिपे हुए हैं।
अनंतनाग में आतंकियों के खात्मे के लिए सेना का ऑपरेशन 7 दिन चला। सुरक्षाबल एक हफ्ते के बाद उस हाईड आउट के करीब पहुंचे, जहां पर निशाना बनाकर बम और गोले बरसाए गए थे। सुरक्षाबलों ने उस गुफा को चारो ओर से घेर लिया जहां आतंकी छिपे हुए थे। अनंतनाग के कोकरनाग के गडोल एरिया में 13 सितम्बर की रात से ही आतंकियों के खिलाफ ऑपेरशन चल रहा था, हालांकि बारिश के बीच गोलीबारी रोक दी गई थी लेकिन सेना के जवान ड्रोन से लगातार आतंकियों पर नजर बनाए हुए थे।यहां छिपे आतंकियों की गोली से सेना के अधिकारी कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष और जम्मू कश्मीर पुलिस के डीएसपी हिमायूं भट्ट शहीद हो गए थे। बताया जा रहा था कि लश्कर के दो से तीन आतंकी जंगलों में छिपे हैं, इनमें पिछले साल लश्कर में शामिल हुआ उजैर खान भी शामिल है जो इस इलाके के चप्पे-चप्पे से भली भांति वाकिफ है। सातवें दिन सेना के जवानों ने उजैर खान को ढेर कर दिया। वहां अन्य आतंकियों के अब भी छिपे होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। खासकर पीर पंजाल की इन पहाड़ियों पर घने जंगल, गुफा और खाई है जहां पर बारिश के मौसम में विजिबिलिटी काफी कम हो जाती हैं। ऑपेरशन में भी काफीखतरा बढ़ जाता हैं। सेना के सूत्रों से मिलरी जानकारी के मुताबिक उस इलाके में आतंकियों की ओर से फायरिंग नहीं हो रही थी लेकिन जब तक उस एरिया को पूरी तरह से सेनेटाइज नहीं कर दिया जाता तब तक सेना के जवान वहां नहीं जा सकते। घनी पहाड़ियों के बीच जिंदा बचे आतंकी छिपकर फायरिंग कर सकते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि छिपे हुए आतंकियों ने इन इलाकों में आईईडी लगाकर रखा हो, जैसे ही सेना के जवान वहां पहुंचे तो धमाका हो जाए। इसलिए सेना बहुत फूंक-फूंककर एक-एक कदम रख रही थी। इलाके को क्लियर करने में सेना के डॉग्स और विस्फोटक का पता लगाने वाले उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा रहा था ताकि अगर कहीं विस्फोटक मिले तो पहले पता चल जाए और उसे डिफ्यूज किया जा सके।
संभावना ये जताई जा रही थी कि उस आतंकी ठिकाने पर मरे हुए आतंकी का शव हो सकता है। अगर न भी हो तो वहां से भागना काफी मुश्किल भरा काम है क्यों कि सेना ने पूरे इलाके को कवर कर रखा था। कुछ भी हो सेना आतंकियों को छोड़ने वाली नहीं है और उनका खात्मा करने की पूरी कोशिश कर रही है। जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में मुठभेड़ ने यह चेतावनी भी दी है कि उस जंगल का सफाया करना होगा। क्योंकि आतंकी वहां अपना सुरक्षित ठिकाना बनाते हैं। (हिफी
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)