लेखक की कलमसम-सामयिक

आतंकियों को नेस्तनाबूद किया जाए

 

जम्मू कश्मीर के डोडा में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान 15 जुलाई की रात सुरक्षाबलों की आतंकवादियों से मुठभेड़ हो गई। एनकाउंटर में सेना के एक अफसर समेत चार जवान शहीद हो गए। देश की रक्षा में अपने प्राणों का बलिदान देना सेना के उन जवानों का मातृभूमि प्रेम व जज्बा दर्शाता है, हमारा उनको शत-शत नमन। लेकिन ये शहादत होती क्या है? शहादत का अर्थ है युद्ध में वीरगति को प्राप्त होना या धर्मयुद्ध में जान गंवा देना। क्या कश्मीर में युद्ध चल रहा है? क्या हमारी सेना कोई धर्मयुद्ध लड़ रही है? इन दोनों का जवाब है नहीं। फिर कुछ सिरफिरे आतंकवादी हमारे देश में घुसकर हमारे जवानों की जान ले लेते हैं तो क्या यह हमारे लिए वीरता की बात है? या कायरता की? हम उन्हें शहीद बताकर चुप बैठ जाते हैं, उन जवानों के परिजनों को गर्व का अनुभव कराया जाता है। यह सही है कि उनके लाल देश पर जान न्यौछावर कर गए, लेकिन क्या शहादत के इस कवर में सरकार अपनी नाकामी को छिपाने का काम नहीं कर रही? यह देश के लिए गर्व की नहीं, दर्द की बात होनी चाहिए, शर्म की बात होनी चाहिए कि कुछ सिरफिरे आतंकी हमारे जवानों की यूं सरेआम जान ले रहे हैं। लानत है कि हम आतंकियों का सफाया करने में असमर्थ होते जा रहे हैं। यदि हमारे पांच जवानों की जान लेने के बाद दो आतंकी मारे भी गए तो हमारा नुकसान बड़ा है, उनका नहीं।

बेहद चिंता जनक स्थिति यह है कि जम्मू कश्मीर में हमारे जवानों की जान जाना मानो कोई बड़ी बात ही नहीं रही। मीडिया में एक-दो दिन सामान्य खबर प्रसारित-प्रकाशित होती है, ठीक वैसे ही जैसे किसी दुर्घटना में कुछ लोगों की जान चली गई हो और उसके बाद सब पहले जैसा हो जाता है। लेकिन यह पहले जैसा केवल बाकी लोगों के लिए होता है, उन परिवारों के लिए नहीं जो अपना लाल गंवा देते हैं।

आपको बता दें कि अमेरिकी फौज ने भागते समय अफगानिस्तान में जो आधुनिक हथियार छोड़े थे, वे अफगानिस्तान से पाकिस्तान के दहशतगर्दों के जरिए भारत के खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे हैं। यही कारण हैं कि वे हथियार अब आतंकियों तक पहुंच रहे हैं और उन्हीं का उपयोग हमारी सेना को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। हमारे सैनिकों को अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है।

ताजा वारदात में डोडा में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन चल रहा था। डोडा से करीब 55 किमी दूर डेसा के जंगल में आतंकियों को देर शाम घेर लिया गया। आतंकियों ने भागने की कोशिश की और गोलीबारी शुरू कर दी लेकिन सुरक्षाबलों की कार्रवाई जारी रही। गोलीबारी में कैप्टन समेत 5 जवान जख्मी हो गए। अगले दिन चार जवानों की इलाज के दौरान मौत हो गई। इस एनकाउंटर में कैप्टन ब्रिजेश थापा और चार जवान शहीद हो गए। नायक डी राजेश, सिपाही बिजेंद्र और सिपाही अजय और एक जवान जम्मू-कश्मीर पुलिस का शामिल है।

जम्मू-कश्मीर में पिछले एक महीने के अंदर आतंकी घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। सबसे पहले 9 जून को आतंकियों ने जम्मू के रियासी में तीर्थयात्रियों से भरी बस को निशाना बनाया, जिसमें 9 लोग मारे गए। फिर, आतंकियों ने कठुआ में 8 जुलाई को सेना की गाड़ी को टारगेट किया, जिसमें 5 जवान शहीद हो गए थे। नौशेरा में 10 जुलाई को आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की, हालांकि वह नाकामयाब रही लेकिन 16 जुलाई को आतंकियों के साथ मुठभेड़ में सुरक्षाबलों के 4 जवान शहीद हो गए और एक पुलिसकर्मी की भी मौत हो गई। पिछले एक महीने के अंदर आतंकी 7 बड़ी वारदातों को अंजाम दे चुके जिनमें 12 जवान शहीद हुए हैं और 9 आम नागरिकों की मौत हुई है। कटरा के रियासी इलाके में तीर्थयात्रियों को माता वैष्णो देवी मंदिर लेकर जा रही 53 सीटर बस पर 9 जून की शाम आतंकियों ने हमला किया था। इसके बाद बस खाई में गिर गई थी, जिसमें एक नाबालिग समेत 9 लोगों की मौत हो गई और 41 अन्य घायल हो गए थे। बस में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के तीर्थयात्री सवार थे। बस पर हमले करने वाले आतंकी पहाड़ी इलाके में छुपे हुए थे।

गत 11 जून को जम्मू कश्मीर के कठुआ के एक गांव में आतंकी घुस आए थे। इसके बाद आतंकियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ में दो आतंकियों को ढेर कर दिया गया था। कठुआ जिले के गांव में हुए आतंकी हमले के बाद सुरक्षाबलों का ऑपरेशन शुरू हुआ था। इस जिले के हीरानगर सेक्टर के सैदा सुखल गांव पर आतंकियों ने हमला किया था। सुरक्षाबलों के ऑपरेशन में सीआरपीएफ का एक जवान भी शहीद हुआ था। जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में सेना के अस्थायी ऑपरेटिंग बेस पर 12 जून को आतंकियों ने गोलीबारी की थी। इस दौरान सेना के दो जवान घायल हो गए थे। मुठभेड़ में एक आतंकी मारा गया था। इसके साथ ही एक नागरिक घायल भी हो गया था। रियासी और कठुआ के बाद जम्मू इलाके में यह तीन दिनों में तीसरा आतंकी हमला था। जम्मू-कश्मीर के कुलगाम के दो गावों में 6 जुलाई को हुए एनकाउंटर में 2 जवान शहीद हो गए थे। इनमें से एक एनकाउंटर कुलगाम ले के चिनिगाम में तो वहीं दूसरा अभियान मोदरगाम गांव में हुआ था। गोली में लांस नायक प्रदीप नैन (पैरा कमांडो) और आरआर के हवलदार राज कुमार शहीद हुए थे। कठुआ में 8 जुलाई को आतंकियों ने आतंकी हमला किया था, जिसमें पांच जवान शहीद हो गए थे। आतंकियों ने शाम के समय सेना के वाहन पर हमला किया था। इस दौरान आतंकियों ने सेना की गाड़ी पर ग्रेनेड भी फेंका था और अंधाधुंध फायरिंग की थी। इस हमले को दो से तीन आतंकियों के अंजाम देने की बात सामने आई थी। राजौरी के नौशेरा सेक्टर में 10 जुलाई को आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की थी। संदिग्ध आतंकियों के एक ग्रुप ने रात के समय भारतीय इलाके में घुसने कोशिश की थी, लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाए और उन्हें उलटेपांव भागना पड़ा था। जम्मू कश्मीर के राजौरी में 7 जुलाई को सेना के शिविर पर आतंकी हमला हुआ था। इस अटैक में आर्मी का एक जवान घायल हो गया था। आतंकवादियों ने सेना के शिविर पर गोलीबारी की थी। घटना के बाद सेना की अन्य टीमें भी मौके पर पहुंचीं और सर्च ऑपरेशन तेज कर दिया। हमले की जिम्मेदारी कश्मीर टाइगर्स नाम के आतंकी संगठन ने ली है। कश्मीर टाइगर्स जैश का ही संगठन है जिसने कठुआ में जवानों के काफिले पर हमले की जिम्मेदारी ली थी।

यहां आतंक विरोधी अभियान चलाना सबसे चुनौतीपूर्ण और कठिन माना जाता है। पिछले एक महीने से जम्मू के जंगलों और पहाड़ी इलाकों में लगातार सर्च ऑपरेशन चल रहा है। पहाड़ी इलाकों में ही आतंकियों
का ज्यादा मूवमेंट है। यहां आतंकियों के अड्डे होने की खबरें हैं। जम्मू के तीन-चार जिलों के पहाड़ी इलाके में 50 से 60 आतंकियों के छिपे होने की खबर है। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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