लेखक की कलम

महिलाओं की सबसे बड़ी जरूरत सुरक्षा

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
देश में महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। देश की राजधानी दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं। हाल ही में जारी राष्ट्रीय वार्षिक महिला सुरक्षा रिपोर्ट एवं सूचकांक 2025 के मुताबिक दिल्ली के साथ-साथ पटना, जयपुर, फरीदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, श्रीनगर और रांची को महिलाओं ने सबसे असुरक्षित करार दिया है। भारत के अलग-अलग शहरों में महिलाओं की सुरक्षा, और उन पर खतरों को लेकर बनने वाली इस सालाना रिपोर्ट में कोहिमा, विशाखापट्टनम, भुवनेश्वर, आइजोल, गंगटोक, ईटानगर, और मुम्बई को सबसे सुरक्षित माना गया है। दूसरी तरफ पटना, जयपुर, फरीदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, श्रीनगर और रांची को सबसे असुरक्षित माना गया है। ये आंकड़े अभी दो दिन पहले जारी 2025 के एक सर्वे पर आधारित हैं जिनमें 31 शहरों का सर्वे किया गया था। यहां पर महिलाओं से बात करके यह पूछा गया था कि वे इन शहरों में अपने आपको कितना महफूज महसूस करती हैं। यह सर्वे राष्ट्रीय महिला आयोग ने जारी किया है, और कुछ विश्वविद्यालयों, और कुछ संगठनों ने मिलकर इसे पूरा किया है।
सर्वे के कुछ आंकड़ों को देखें, तो 24 बरस से कम उम्र की महिलाएं सबसे अधिक खतरे में हैं और इस आयु वर्ग के 14 फीसदी ने किसी न किसी तरह का शोषण बताया है। ऐसी घटनाओं पर महिलाओं की प्रतिक्रिया भी समझने की जरूरत है, 28 फीसदी महिलाओं ने हमलावर या शोषण करने वाले का सामना किया, 25 फीसदी घटनास्थल को छोडकर चली गईं, 21 फीसदी ने भीड़ के बीच जाकर अपनी सुरक्षा की और 20 फीसदी ने पुलिस या अधिकारियों तक इसकी शिकायत की। शिकायत करने वाली महिलाओं में से कुल एक चैथाई को यह भरोसा है कि उनकी शिकायत पर कार्रवाई होगी। महिलाओं में से आधी से अधिक को इस बात की पक्की जानकारी नहीं है कि उनके कामकाज की जगह पर यौन शोषण के खिलाफ कोई नीति लागू है या नहीं। ऐसे और भी बहुत से आंकड़े इस सर्वे से सामने आए हैं, और अलग-अलग प्रदेशों या शहरों को या विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने इलाकों के बारे में अधिक खुलासे से समझना चाहिए, और कुछ करना चाहिए।
यह राष्ट्रव्यापी सूचकांक 31 शहरों की 12,770 महिलाओं पर की गई रायशुमारी पर आधारित है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा स्कोर 65 फीसदी रखा गया है और शहरों को उक्त मानक से ‘काफी ऊपर’, ‘ऊपर’, ‘समान’, ‘नीचे’ या ‘काफी नीचे’ श्रेणियों में बांटा गया है।सूचकांक में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले कोहिमा और विशाखापत्तनम जैसे शहरों के अच्छे प्रदर्शन के पीछे मजबूत लैंगिक समानता, नागरिक भागीदारी, पुलिस व्यवस्था और महिला-अनुकूल बुनियादी ढांचे का हाथ बताया गया है।
सर्वेक्षण में शामिल 10 में से छह महिलाओं ने अपने शहर में “सुरक्षित” महसूस करने की बात कही, लेकिन 40 प्रतिशत ने अब भी खुद को “उतना सुरक्षित नहीं” या “असुरक्षित” माना। सात प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि 2024 में उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। 24 साल से कम उम्र की महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 14 प्रतिशत पाया गया।सर्वेक्षण में आस-पड़ोस (38 प्रतिशत) और सार्वजनिक परिवहन (29 प्रतिशत) को उन जगहों के रूप में चिह्नित किया गया, जहां महिलाओं को अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इसमें पाया गया कि सिर्फ हर तीन में से एक पीड़ित ही उत्पीड़न की घटनाओं की शिकायत करने के लिए आगे आती है।
सर्वेक्षण से पता चला है कि रात में सुरक्षित महसूस करने की धारणा में भारी गिरावट आई है, खासकर सार्वजनिक परिवहन में और मनोरंजन स्थलों पर। इसमें पाया गया है कि शैक्षणिक संस्थानों में 86 फीसदी महिलाएं दिन में सुरक्षित महसूस करती हैं, लेकिन रात में या परिसर के बाहर वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता में घिरी रहती हैं।
महिलाएं जहां अपने आपको सबसे अधिक असुरक्षित पाती हैं, उनमें दो शहर ध्यान खींचते हैं, जयपुर, और दिल्ली। एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों में से शायद आधे ऐसे रहते हैं जो भारत के एक पर्यटन गोल्डन ट्रेंगल को घूमकर वापिस चले जाते हैं। दिल्ली, आगरा, और जयपुर, ये तीनों शहर सडक, ट्रेन, और प्लेन से बहुत अच्छे से जुड़े हुए हैं, इनके बीच आवाजाही में बड़ा कम समय लगता है, और तीनों ही शहरों में पर्यटकों के हिसाब से रहने, घूमने-खाने का इंतजाम अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। फिर इन तीन जगहों पर पर्यटक इतिहास, हस्तकला, खानपान की विविधता, और भारत के इतिहास के पिछले कई सौ बरसों की झलक पाते हैं, और सीमित बजट में, सीमित समय के लिए भारत आने वाले पर्यटकों के लिए इतना काफी भी होता है। इन तीनों में से किसी भी शहर जाएं, वहां चेहरे-मोहरे, और पोशाक से विदेशी दिखने वाले सैलानियों की भीड़ दिखती है। अब अगर भारत आकर इसी त्रिकोण से होकर करीब आधे, या उससे अधिक सैलानी लौट जाते हैं, तो यह जाहिर है कि वे इन तीन में से दो शहरों, दिल्ली और जयपुर को महिलाओं के लिए असुरक्षित देखकर लौटते हैं। हर कुछ दिनों में किसी गोरी-विदेशी पर्यटक महिला का ऐसा वीडियो सामने आता है जिसे घेरकर हिन्दुस्तानी उसके साथ बलपूर्वक सेल्फी ले रहे हैं, या उसे होली के रंग लगा रहे हैं, और कुछ मामलों में उसे दबोच भी रहे हैं। पर्यटकों और शोहदों-मवालियों की ऐसी भीड़ बताती है कि ये कोई प्रमुख पर्यटन केन्द्र ही है, और अधिक संभावना इस बात की है कि सबसे बुरे सात शहरों में ये भी शामिल हों। लगे हाथों दो और शहरों की चर्चा जरूरी है जहां पर्यटक बड़ी संख्या में जाते हैं, और ये दो शहर भी महिलाएं असुरक्षित पाती हैं, कोलकाता, और श्रीनगर भी इसी दर्जे में हैं। अभी कुछ अरसा पहले जब अमरीकी सरकार ने भारत आने वाले अपने नागरिकों को यह नसीहत जारी की थी कि भारत में महिलाएं कई प्रदेशों में अकेले सफर न करें, उन पर कई तरह के यौन हमले होने का खतरा रहता है, तो उसे ट्रम्प की नाराजगी से जोड़कर देखा गया था। लेकिन न सिर्फ अमरीका बल्कि योरुप के कई देश भी ऐसी एक सावधानी अपने नागरिकों को भारत के बारे में जारी कर चुके हैं, करते रहते हैं कि यहां महिलाओं पर खतरा रहता है। इस बात में कोई दुर्भावना भी नहीं है। न केवल विदेशी महिलाओं को, बल्कि देशी महिलाओं को भी तरह-तरह के शोषण झेलने पड़ते हैं, और सीमित समय के लिए भारत आने वाली महिलाओं से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे अपने हर बुरे तजुर्बे की शिकायत पुलिस तक करें। ऐसा करने पर उन्हें गिने-चुने दिनों में से दो-चार दिन इसी पर बर्बाद करने होंगे, और ऐसा तो देश के भीतर भारतीय पर्यटक भी करना नहीं चाहते। नतीजा यह होता है कि छेड़छाड़ या शोषण करने वाले अधिकतर लोगों को अपने बच जाने का भरोसा रहता है, और वे यह सिलसिला जारी रखते हैं। भारत के किसी शहर या प्रदेश में जाने वाले विदेशी पर्यटकों को हर बार अपनी सरकार की सलाह या चेतावनी की जरूरत नहीं पड़ती। किसी प्रदेश के तमाम न्यूज चैनल अखबारों या इंटरनेट पर खबरों को ढूंढ लिया जाए, तो भी आसानी से पता लग जाता है कि किस शहर, या प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ कितने जुर्म हो रहे हैं।
ताजा रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सर्वेक्षण में शामिल हर तीन में से दो महिलाएं उत्पीड़न की शिकायत नहीं करती हैं, जिसका मतलब यह है कि एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के पास अधिकांश घटनाएं दर्ज ही नहीं होतीं। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि सुरक्षा को केवल कानून-व्यवस्था के मुद्दे के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह महिलाओं के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है, चाहे वह उनकी शिक्षा हो या स्वास्थ्य, कार्य के अवसर अथवा आवागमन की स्वतंत्रता हो। (हिफी)

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button