अध्यात्मधर्म-अध्यात्म

सम्पूर्ण सृष्टि एक ही आत्मा का विस्तार है

अष्टावक्र गीता-46

 

अष्टावक्र जनक से कहते हैं कि तू संसार को अपने से भिन्न समझता है इसलिए मैं और विश्व तुझे दिखाई देते हैं। यह दो का विभाजन ही अज्ञान है। उसी अज्ञान के कारण यह विश्व है अन्यथा परमार्थ मंे न तू है, न ही विश्व बल्कि एक ही आत्मा है।

अष्टावक्र गीता-46

सूत्र: 15
अयं सोऽहमयं नाहं विभागामिति सन्त्यज।
सर्वमात्मेति निश्चित्य निःकंल्पः सुखी भव।। 15।।
अर्थात: ‘यह मैं हूँ’ ‘यह मैं नहीं हूँ’ ऐसे विभाग को छोड़ दे। ‘सब आत्मा है’ ऐसा निश्चय करके तू संकल्प रहित हो, सुखी हो।
व्याख्या: यह सम्पूर्ण सृष्टि एक है, अखण्ड है, उस एक ही आत्मा का विस्तार है। इसमें भिन्नता कहीं नहीं है। नाम रूपों की भिन्नता से अज्ञानी भिन्नता देखता है। वह खण्ड-खण्ड में देखता है। उसे हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई दिखाई देते हैं, उसे जड़-चेतन, मनुष्य, जीव जन्तु में भेद दिखाई देता है, वह जीव और आत्मा में भेद देखता है, आत्मा और परमात्मा में भेद रखता है, यह भेद ही दुःखों का कारण है। सृष्टि एक ही सत्ता है इसका विभाजन करना ही अज्ञान है। द्वैत दृष्टि के कारण ही दुःखों का जन्म होता है। समग्र की अनुभूति हो जाना ही ज्ञान है, यही धर्म है। समग्र ही जीवन है, यही ब्रह्म है। इसी एकीकृत अस्तित्व को उपलब्ध होना ही धर्म है, खण्ड-खण्ड में विभाजन करना ही अधर्म है, अज्ञान है। अहं ब्रह्मास्मि की घोषणा ऐसे ही धर्म की घोषणा करना है। यह अहंकार नहीं है बल्कि उस अखण्ड की उसी समग्र की अनुभूति है कि ‘मैं’ और ‘ब्रह्म’ एक ही हैं, भिन्न नहीं हैं, दो का कोई स्थान नहीं है। सब कुछ छोड़ देने से, भस्मी लगा लेने से, भीख माँगकर खाने से, गिड़गिड़ाने एवं याचना करने से, दण्डवत् करने से, विनम्रता दिखाने से, क्षमा याचना करने से अहंकार नहीं मिटता। अहंकार इस एक की अनुभूति हुए बिना मिटता नहीं। यह धर्म की पराकाष्ठा है कि आत्मा एक है, सब उसी का विस्तार है, वही सर्वत्र व्यापक है। भिन्नता की प्रतीति ही अज्ञान है एवं एकत्व का अनुभव हो जाना ही ज्ञान है, यही मुक्ति है। इसलिए अष्टावक्र कहते हैं कि हे जनक! मैं वही ब्रह्म हूँ अथवा मैं वह नहीं हूँ उससे भिन्न जीव मात्र हूँ, परमात्मा और मैं भिन्न हूँ ऐसी भेद-दृष्टि को ऐसे विभाग को छोड़ दे। क्योंकि सोऽहं, शिवोऽहं आदि कहना भी भेद दृष्टि ही है। जिसे उस शिव या ब्रह्म का ज्ञान नहीं होता वही ऐसा कहता है। ज्ञान होने पर, जान लेने पर ‘मैं’ बचता ही नहीं फिर मैं वही हूँ भिन्नता कहीं है ही नहीं, ऐसा निश्चय करके तू संकल्प रहित हो सुखी हो। एक ही अनुभूति से ही सभी संकल्प गिर जाते हैं एवं मनुष्य सुखी व शान्त हो जाता है।

सूत्र: 16
तवैवाज्ञानतो विश्वं त्वमेकः परमार्थतः।
त्वत्तोऽन्यो नास्ति संसारी नासंसारी च कश्चन।। 16।।
अर्थात: तेरे ही अज्ञान से विश्व है। परमार्थतः तू ए है। तेरे अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं है-न संसारी और न असंसारी है।
व्याख्या: इसी क्रम में अष्टावक्र कहते हैं कि हे जनक! तुझे विश्व की अपने से भिन्न प्रतीति हो रही है। तू संसार को अपने से भिन्न समझता है इसलिए मैं और विश्व तुझे दिखाई देते हैं। यह दो का विभाजन ही अज्ञान है। उसी अज्ञान के कारण यह विश्व है अन्यथा परमार्थ मंे न तू है, न ही विश्व बल्कि एक ही आत्मा है। जो तू है वही यह विश्व है। इसी प्रकार संसारी और असंसारी का भेद भी अज्ञान के कारण है। ये सभी आत्मा है अतः तू ही सब कुछ है। तेरे सिवा (तुझ आत्मा के सिवा) कोई दूसरा है ही नहीं। सब आत्मा रूप है। यही ज्ञान है, यही परम सत्य है। सत्य एक ही है। दो सत्य कभी नहीं होते। यह भेद ही अज्ञान है एवं अभेद ज्ञान है। अभेद की बीच जब अहंकार की दीवार खड़ी होती है तब भेद दिखाई देता है। इसके गिरते ही सब अभेद दिखाई देता है। सभी संयुक्त प्रतीत होता है। अतः अहंकार ही अज्ञान है। यह आत्मा संसारी भी नहीं है क्योंकि यह संसार में लिप्त नहीं है। यह असंसारी भी नहीं है क्योंकि संसार उसी की अभिव्यक्ति है।

सूत्र: 17
भ्रान्तिमात्रमिदं विश्वं न किंचिदिति निश्चयी।
निर्वासनः स्फूर्तिमात्रो न किंचिदिव शाम्यति।। 17।।
अर्थात: यह विश्व भ्रान्ति मात्र है और कुछ नहीं है। ऐसा निश्चय पूर्वक जानने वाला वासना रहित और चैतन्य मात्र है। वह ऐसी शान्ति को प्राप्त है मानो कुछ नहीं है।
व्याख्या: इस संसार मे ंदो ही प्रकार के व्यक्ति हैं अज्ञानी और ज्ञानी तथा इनकी दो दृष्टियाँ हैं संसार के प्रति। अज्ञानी कहता है संसार ही सत्य है, संसार में अनेकता है, विभिन्नता है। प्राकृतिक, राजनैतिक, मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक, धार्मिक आदि अनेक स्तरों में भी भिन्नता दिखाई देती है, यहाँ तक कि कुछ लोगों को आत्मा में भी भिन्नता दिखाई देती है कि सब आत्माएँ भिन्न-भिन्न हैं। कुछ लोग परमात्मा में भी भिन्नता देखते हैं जैसे कि हिन्दू के, मुस्लिम के, ईसाई के, जैनी के परमात्मा भिन्न-भिन्न हैं। यह सब दृष्टि अज्ञानी की है। उसे जैसा प्रत्यक्ष दिखाई देता है वैसा ही मान लेता है। परोक्ष का उसे कुछ पता नहीं है। उसका सारा ज्ञान इन्द्रियगत है। जो इन्द्रियों की पकड़ में आता है, जो बुद्धि की पकड़ में आता है, उसी को वह सत्य मानता है। इन्द्रियों के पार के अस्तित्व का उसे कुछ पता नहीं। वह ब्रह्म, आत्मा, ईश्वर आदि की भी सत्ता में विश्वास नहीं करता क्योंकि वह इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है। ऐसा व्यक्ति वैज्ञानिक है, भौतिक मात्र है किन्तु वह सच्चा है, ईमानदार है। जैसा जाना वैसा ही सत्य व ईमानदारी से कह दिया। वह ब्राह्मण है, ऋषि है। कोई पाखण्ड नहीं किया, कुछ छिपाया नहीं, किसी को धोखा नहीं दिया। जैसा दिखाई देता है वैसा कह देना भी बड़े साहस का कार्य है, बड़ा आत्मबल चाहिए। दुनियाँ के सारे धर्मों की मान्यताओं को ठुकराकर तथा सजा के भय को भी साहस के साथ स्वीकार करते हुए जब गेलीलियो ने कहा कि सूर्य नहीं, पृथ्वी घूमती है तो उसके ये वाक्य क्या किसी ऋषि वाक्य से कम थे। चार्वाक को भी इसीलिए ऋषि कहा गया है कि उसने जैसा जाना प्रकट कर दिया। किन्तु कई पाखण्डी ऐसे हैं जिन्होंने जाना नहीं और कहते हैं कि ब्रह्म है, आत्मा है, सृष्टि माया है, इसमें सार नहीं है, ब्रह्म सत्य है, मोक्ष है, स्वर्ग-नरक है, पुनर्जन्म है आद। अज्ञानी के लिए जगत् ही सत्य है एवं ब्रह्म, आत्मा सब मिथ्या है किन्तु न जानते हुए भी जानने का दावा करना व उन्हें सिद्ध करने का प्रयत्न करना बेईमानी है। ये सच्चे नहीं हैं धोखेाज हैं।

दूसरी दृष्टि ज्ञानी की है। उसी से ब्रह्मा, आत्मा, ईश्वर आदि को जाना है। अज्ञानी स्थूल को ही जानता है, सूक्ष्म उसकी पकड़ में नहीं आता। वह प्रकृति को ही जानता है, उसकी दृष्टि शरीर, उसके भोग एवं विषयों तक ही सीमिति है जिससे इनसे परे जो सूक्ष्म है, जो चेतन है, जो शक्ति है उसे नहीं जान पाता जिससे वह कहता है ये हैं ही नहीं, झूठ है, बकवास है। इसके विपरीत ज्ञानी को इनको जान लेता है
जिससे वह कहता है ब्रह्म, आत्मा, ईश्वर ही सत्य है। जगत् मिथ्या है, भ्रान्ति मात्र है, यह अनित्य है इसलिए इसका मूल्य नहीं है। शाश्वत एवं सनातन का ही मूल्य है। ज्ञानी बीज की बात करता है अज्ञानी वृक्ष व फल की बात करता है। दोनों ही अपनी
दृष्टि से सही हैं। विरोध कहीं नहीं है। दृष्टि का अन्तर है, देखने के ढंग का अन्तर है। क्रमशः (हिफी)
(साभार अष्टावक्र गीता)

(हिफी डेस्क-हिफी फीचर)

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