अध्यात्म

(महासमर की महागाथा-07) संसार और सुख-दुख

(हिफी डेस्क-हिफी फीचर)
इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण हमको उस प्रश्न के रूप में मिलता है, जो जनसाधारण की जबान पर पाया जाता है, ईश्वर ने इस संसार को क्यों बनाया? इसके रचने में उसका क्या उद्देश्य है? बात यह है कि हमारे समस्त जीवन का प्रवाह हमें एक ही शिक्षा देता है। हम बिना मतलब के कोई काम नहीं करते। हर एक काम में हमारा मतलब उसके साथ मिला हुआ रहता है। हमारे मस्तिष्क की बनावट ही ऐसी हो चुकी है कि हम इस संसार को बिना किसी प्रयोजन के रचा हुआ मान नहीं सकते। जिस ब्रह्म को हमारे लिए जानना ही संभव नहीं, उसके विषय में ऐसे प्रश्न करना, उसने ऐसा क्यों किया ? इसमें उसका क्या प्रयोजन है ? कुछ अर्थ नहीं रखता। भगवद्गीता के अध्याय तीन का श्लोक 102 साफ बतलाता है कि इस ब्रह्म ने प्रजा को यज्ञ से, अर्थात् बिना किसी प्रयोजन के रचा है।
व्यवहार में हमारा ज्ञान केवल सापेक्ष ही होता है। भगवद्गीता के अध्याय दो के श्लोक 56 और अध्याय चौदह के श्लोक 24 आदि में कहा गया है कि बुद्धिमान मनुष्य की दृष्टि में सुख-दुःख, प्रशंसा-निंदा, प्रेय-श्रेय, सोना-पत्थर एक जैसे हैं। संसार में हमें एक-दूसरे के विरुद्ध जितने द्वंद्व दिखलाई देते हैं, वे निरपेक्ष तौर पर देखने से एक ही रूप धारण किए मालूम पड़ते हैं। उनमें अंतर सिर्फ दरजे का होता है, जिन्स का नहीं। विज्ञान के क्षेत्र में हम जानते हैं कि विद्युत् की लहर एक ही शक्ति है। इसका ऋण और धन होना एक काल्पनिक सिद्धांत है। इसी प्रकार जीवन-मृत्यु, सर्दी-गरमी, भलाई-बुराई भी हमारे व्यवहार के लिए केवल परिभाषाएँ बनी हुई हैं। दायाँ और बायाँ स्वयमेव कुछ नहीं है। थोड़ी सी गति एक ही चीज को दाएँ से बाएँ कर देती है। जो हमारा उत्तर है, वह थोड़ी सी गति से हमारा दक्षिण हो जाता है। अमेरिका के शहर वाशिंगटन में राजधानी की इमारत की छत की बनावट ऐसी है कि उसकी चोटी पर वर्षा में जो बूँदें गिरती हैं, बाल भर का फर्क होने से उनमें से एक बूँद उत्तर की ओर लॉरेंस की खाड़ी में और दूसरी दक्षिण की ओर मेक्सिको की खाड़ी में एक-दूसरे से हजारों मील की दूरी पर जा पड़ती हैं। सोलहवीं सदी के विद्वानों की दुनिया इस कदर पीछे थी कि जब कोलंबस ने स्पेन के बादशाह के सामने अमेरिका की खोज करने का मामला पेश किया तब बादशाह ने यह मामला विश्वविद्यालय के विद्वानों के सामने रखा। उन्होंने फैसला दिया कि अगर कोई ऐसा देश पृथ्वी के नीचे मौजूद है तो वहाँ के निवासी सिर नीचे और पाँव ऊपर करके चलते होंगे। इस कारण ऐसे लोगों के साथ किसी प्रकार का संबंध स्थापित करना उचित नहीं है। उस समय के विद्वान् यह भी नहीं समझ सकते थे कि ऊपर और नीचे दो काल्पनिक परिभाषाएँ हैं, जो हमने ही अपने व्यवहार के लिए बनाई हैं।
सुख और दुःख के बारे में यही सिद्धांत काम करता है। दुनिया का अनुभव हमें सिखलाता है कि हर प्रकार के सुख के वास्ते थोड़ा-बहुत दुःख उठाना आवश्यक होता है, अर्थात् सुख के अंदर ही दुःख का अस्तित्व विद्यमान होता है। खुशी की खोज ही संसार में दुःख का सबसे बड़ा कारण है। इसी कारण मनुष्य को सुख की अपेक्षा दुःख से अधिक अनुभव और ज्ञान प्राप्त होते हैं। हम मजदूरी के बदले में एक बोझ उठाकर ले जाते हैं। इसमें कोई दुःख या सुख नहीं होता। इस बोझ को बेगार में ले जाने पर हमें दुःख
होता है परंतु अपने प्यारे मित्र के लिए यही बोझ उठाने में हमें सुख प्राप्त होता है।
एक लड़का वर्षों तक श्रम करता और कष्ट उठाता है। इससे उसको विद्या प्राप्ति का आनंद मिलता है। इसी प्रकार संसार में ऐसा हर एक काम के लिए, जिसके अंत में हमें खुशी की आशा हो सकती है, हमारे लिए पहले परिश्रम करना आवश्यक होता है। यहाँ तक कि शारीरिक स्वास्थ्य कायम रखने के लिए भी प्रतिदिन थोड़ा-बहुत व्यायाम करना, जो उस समय दुःख-सा मालूम होता है, आवश्यक है। संसार में रुपया कमाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है। एक आदमी को रुपए कमाने में सफलता प्राप्त होती है। उसे सुख प्रतीत होता है। विफल मनुष्यों के लिए वही बात दुःख सिद्ध होती है। मुकदमे में एक पक्ष जीत जाता है। उसको हर्ष होता है। दूसरे पक्ष को इसी से खेद होता है। वर्षा होती है, रास्ते में चलता मुसाफिर उससे कितना दुःख उठाता है बल्कि वह तो दिल में जलता है लेकिन इसी वर्षा से किसानों के हृदय कितने खुश होते हैं।
इसका एक सुंदर उदाहरण उस लोमड़ी का है, जिसके पीछे शिकारी कुत्ते लगे हुए थे। वह बहुत थक गई। कुत्तों की तरफ मुड़कर उसने पूछा, आखिर तुम यह तो बताओ कि तुम मेरे पीछे क्यों पड़े हो ? एक ने जवाब दिया, सिर्फ तमाशा देखने के लिए। अब लोमड़ी बोली, क्या तुम यह भी जानते हो कि जो बात तुम्हारे लिए तमाशा है वही मेरे लिए मौत है ?
युद्ध में जहाँ एक पक्ष विजय के कारण खुशियाँ मनाता है वहाँ दूसरा पक्ष पराजय के शोक में डूबा होता है।
कई बार सुख-दुःख दोनों का अस्तित्व काल्पनिक होता है। एक गायक किसी धनी के यहाँ कुछ समय तक गाता रहा। अंत में धनी ने कहा, कल आना, तुमको इनाम दिया जाएगा। गवैया खुशी-खुशी घर चला गया। जब अगले दिन आकर उसने इनाम माँगा तो धनी ने कहा, जिस प्रकार बातों से तुमने मेरे चित्त को प्रसन्न किया उसी प्रकार मैंने भी एक बात कहकर तुमको रात भर खुश रखा।
आमतौर पर लोग संसार में बीमारी और दुःख को देखकर घबरा उठते हैं। बहुत से लोग तो इनको इस संसार को बनानेवाले के विरुद्ध एक बड़ा इल्जाम समझते हैं। अगर सचमुच कोई ईश्वर है तो वह संसार से इन बीमारियों को दूर क्यों नहीं कर देता? स्पेन के बादशाह एल्फांसो ने ऐसे ही लोगों का मत प्रकट किया, जब यह कहा, यदि मैं संसार की रचना के समय विद्यमान होता तो खुदा को यह संसार बेहतर बनाने की मंत्रणा देता। जब कोई भूचाल या बाढ़ आती है तो कई नास्तिक ईश्वर में विश्वास रखने वालों से कहते हैं, तुम अपने ईश्वर को क्यों नहीं बुलाते, ताकि वह आकर तुम्हारी मुसीबतों को रोके? संसार में इतनी बुराई को देखकर वे ऐसे घबरा जाते हैं कि उनके मानस में एक प्रकार की बीमारी पैदा हो जाती है, जिसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है।-क्रमशः (हिफी)

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