हरियाली की चादर ओढ़ेगी यूपी की धरती

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
उत्तर प्रदेश में 9 जुलाई को पौधरोपण महाभियान 2025 के तहत योगी सरकार में मंत्री जिले-जिले जाकर पौधे लगाएंगे। सीएम अयोध्या और आजमगढ़ में तो राज्यपाल बाराबंकी में पौधरोपण करेंगी। इसको लेकर जनपदों में नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। नोडल अफसर आवंटित जनपदों में 8 जुलाई की सुबह से ही तैयारी का जायजा ले रहे थे । तैयारियां लगभग पूरी कर ली गई हैं। इसके तहत एक दिन में पूरे प्रदेश में 37 करोड़ पौधे लगाए जाएंगे। सभी 75 जिलों में मंत्री पौधरोपण करेंगे। इससे पहले जनपदों में शासन स्तर के अधिकारियों को नोडल अफसर बनाया गया है। इसको लेकर वन विभाग के अधिकारी विभिन्न विभागों, मंत्रालयों से समन्वय स्थापित कर रहे थे। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि हमारे देश में पुड्डुचेरी के बराबर वनभूमि खत्म हो चुकी है। जंगल को गैर वन गतिविधियों के लिए हटा दिया गया है। इंडिया स्टेट आफ फारेस्ट की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष की तुलना में वन काटे जाने में 66 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है ।वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से दी गयी जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि पिछले एक दशक में चार राज्यों में करीब 49 फीसदी वन भूमि कम हो गयी है । इसमें मध्य प्रदेश में 22 फीसदी, ओडिशा में 14 फीसदी, तेलंगाना में 7 फीसदी और गुजरात में 6 फीसदी वनभूमि कम हो गयी है। उत्तर प्रदेश में भी जंगल काटे गये हैं। इसलिए वृहद स्तर पर 9 जुलाई को होने वाला पौधरोपण काटे गये वनभूमि की भरपाई कर सकता है।
वृहद वृक्षारोपण अभियान के तहत 9 जुलाई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या और आजमगढ़ में पौधरोपण करेंगे। उनके साथ वन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. अरुण सक्सेना, वन राज्यमंत्री केपी मलिक मौजूद रहेंगे। वहीं राज्यपाल आनंदी बेन पटेल बाराबंकी में पौधरोपण करेंगी। उम्मीद की जाती है कि जितने पौधे रोपित किये जाएंगे वे विराट वृक्ष का रूप लेंगे। सभी न सही उनमें 70 फीसदी भी फलने-फूलने की उम्र तक पहुंचते हैं तो तो यह बड़ी सफलता मानी जाएगी। जंगल जिस तरह काटे जा रहे हैं, उसके दुष्परिणाम हमें बाढ़-भूस्खलन आदि कई रूप में मिलने लगे हैं। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने गत दिनों वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023’ का विमोचन किया। उल्लेखनीय है कि 1987 से भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा द्विवार्षिक आधार पर भारत वन स्थिति रिपोर्ट को प्रकाशित किया जा रहा है। भारतीय वन सर्वेक्षण (भा.व.स.) सुदूर संवेदन उपग्रह आंकड़ों और फील्ड आधारित राष्ट्रीय वन इन्वेंट्री (रा.व.इ) के निर्वचन के आधार पर देश के वन और वृक्ष संसाधनों का गहन आकलन करता है और इसके परिणाम भारत वन स्थिति रिपोर्ट (भा.व.स्थि.रि.) में प्रकाशित किए जाते हैं। भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 इस श्रृंखला की 18वीं रिपोर्ट है। रिपोर्ट में, वनावरण, वृक्ष आवरण, कच्छ वनस्पति आवरण, भारत के वनों में कार्बन स्टॉक, वनाग्नि की घटनाएं, कृषि वानिकी आदि विषयों पर जानकारी शामिल है। देश के स्तर पर वन स्वास्थ्य की विस्तृत तस्वीर पेश करने के लिए, वनावरण और वनों की महत्वपूर्ण विशिष्टताओं पर विशेष विषयगत जानकारी भा.व.स्थि.रि. में दर्शाई गई है। वर्तमान आकलन के अनुसार, कुल वन और वृक्ष आवरण 8,27,357 वर्ग कि.मी. है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 25.17 प्रतिशत है। वनावरण का क्षेत्रफल लगभग 7,15,343 वर्ग कि.मी. (21.76 प्रतिशत) है जबकि वृक्ष आवरण का क्षेत्रफल 1,12,014 वर्ग कि.मी. (3.41 प्रतिशत) है।मननीय मंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की है कि 2021 की तुलना में देश के कुल वन और वृक्ष आवरण में 1445 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। उन्होंने उन्नत प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करके भा.व.स द्वारा प्रदान की जाने वाली नियर रियल टाइम अग्नि चेतावनी और वन अग्नि सेवाओं पर भी प्रकाश डाला। कुल भौगोलिक क्षेत्रफल की तुलना में वन आवरण के प्रतिशत की दृष्टि से, लक्ष्यद्वीप (91.33 प्रतिशत) में सबसे अधिक वन आवरण है, जिसके बाद मिजोरम (85.34 प्रतिशत) और अंडमान एवं निकोबार द्वीप (81.62 प्रतिशत) का स्थान है। वर्तमान आकलन से यह भी ज्ञात होता है कि 19 राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों में 33 प्रतिशत से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वनावरण के अंतर्गत हैं। इनमें से आठ राज्योंध्केंद्र शासित क्षेत्रों, जैसे मिजोरम, लक्षघ्द्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर में 75 प्रतिशत से अधिक वनावरण है।उत्तर प्रदेश में भी वनों की कटाई एक गंभीर समस्या है, जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। वनों की कटाई के कई कारण हैं, जिनमें शहरीकरण, कृषि भूमि का विस्तार, अवैध कटाई और औद्योगिक विकास शामिल हैं। सरकार वनों की कटाई को रोकने और वनीकरण को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास कर रही है, जैसे कि वृक्षारोपण अभियान और वन संरक्षण कानूनों को लागू करनात्तर प्रदेश का भौगोलिक क्षेत्रफल 2,40,928 वर्ग किमी है जो देश के कुल क्षेत्रफल का 7.3 फीसद है। इसके 70 जिले भारत के चैदह मुख्य भौगोलिक क्षेत्रों में से दो में आते हैं, अर्थात उत्तरी मैदान या विशाल गंगा के मैदान जिसमें अत्यधिक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी है जिसमें 64 जिले शामिल हैं और केंद्रीय उच्चभूमि या छोटा दक्षिणी पहाड़ी पठार जिसमें 10 जिले शामिल हैं। आगरा इलाहाबाद, चंदौली और मिर्जापुर आंशिक रूप से दोनों क्षेत्रों में आते हैं। राज्य में मुख्य वन प्रकार उष्णकटिबंधीय अर्ध सदाबहार (0.21 फीसद), उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती (19.68 फीसद), उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती (50.66 फीसद), उष्णकटिबंधीय कांटेदार (4.61फीसद) और तटीय और दलदली वन (2.35 फीसद) हैं।
1951 में अविभाजित उत्तर प्रदेश में दर्ज वन क्षेत्र 30,245 वर्ग किलोमीटर था। धीरे-धीरे अतिरिक्त क्षेत्रों को अधिसूचित किया गया और 1998-99 तक वन क्षेत्र 51,428 वर्ग किलोमीटर हो गया। 1999 में उत्तरांचल को उत्तर प्रदेश से अलग कर दिया गया और उत्तर प्रदेश में केवल 16,888 वर्ग किलोमीटर दर्ज वन क्षेत्र रह गया। 2011 की वन स्थिति रिपोर्ट के अनुसार दर्ज वन क्षेत्र 16,583 वर्ग किलोमीटर रह गया है, जो दर्ज वन क्षेत्र में 305 वर्ग किलोमीटर की कमी है। उत्तराखंड के मामले में 1999 के बाद जहां 34,540 वर्ग किलोमीटर रह गया था, वहीं 2011 में दर्ज वन क्षेत्र 34,651 वर्ग किलोमीटर हो गया है-यानी 111 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि। उत्तर प्रदेश के मामले में, वन क्षेत्र में गिरावट का कारण सड़क, सिंचाई, बिजली, पेयजल, खनन उत्पादों आदि की बढ़ती मांग के मद्देनजर वन भूमि का गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाना बताया गया है। इसके अलावा, वन भूमि के बड़े हिस्से पर अतिक्रमण किया गया है और उसे गैर-वनीय उपयोगों के लिए अवैध रूप से डायवर्ट किया गया है। ऐसा माना जाता है कि वन विभाग अतिक्रमण को खाली करवाने में सक्रिय रूप से शामिल है। (हिफी)