सम-सामयिक

हर शहर में हैं भ्रष्टाचार के लाक्षागृह

 

देश के अलग-अलग हिस्सों में तकरीबन हर साल सात हजार छोटे बड़े अग्निकांड होते हैं। इनमें दस हजार से ज्यादा लोगों का असमय जीवन स्वाहा हो जाता है। इन हादसों में बहुत सारे ऐसे त्रासद मामले हैं जिनको जरा सी सावधानी से टाला जा सकता था लेकिन इसके मूल में प्रशासनिक तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और कर्तव्य के प्रति लापरवाही भरी कोताही होती है। हाल ही में मात्र दो दिन में गुजरात के राजकोट के एक गेम जोन और दिल्ली के विवेक विहार के एक बच्चा केअर सेंटर में आग ने 40 से अधिक मासूमों की जान ले ली। सबसे दर्दनाक घटना गुजरात के राजकोट में हुई, जहां एक मॉल के गेमिंग जोन में भीषण आग लगने से 33 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में ज्यादातर बच्चे हैं। हैरानी है उक्त गेम जोन फायर बिना एनओसी के चल रहा था और इसे निगम के मनोरंजन विभाग से भी कोई मंजूरी नहीं मिली थी। वहीं बेबी केअर सेंटर के पास भी एनओसी नहीं थी इसके बावजूद भी ये लाक्षागृह कई सालों से बेधड़क कैसे चल रहे थे, यह जांच का विषय है।

गुजरात से राजकोट के भीषण अग्नि-कांड ने समूचे देश को झकझोर दिया। जो परिवार छुट्टी मनाने के लिए अपने मासूम बच्चों के साथ हंसी खुशी कुछ समय मस्ती करने के लिए इस गेम जोन में गए थे और हादसे का शिकार बन गए उनका क्या कुसूर था? यह अत्यन्त हृदय विदारक एवं वीभत्स घटना देश के लिए कोई नई नहीं है। इससे पहले भी उपहार सिनेमा से लेकर डबबाली तक मानसिक रोगियों के अस्पताल से लेकर नवजात शिशुओं की नर्सरी तक आग में हर साल दर्जनों जान जाती रही हैं। इस बेहद त्रासद हादसे ने भी ऐसी कई घटनाओं की कड़वी यादों को ताजा कर दिया है। इस अग्नि-कांड में हताहतों में अधिकतर बच्चे और उनके अभिभावक शामिल हैं। कनाडा से वतन आए एक नवदंपति की भी इस हादसे में जान चली गई है। यह दुर्घटना जब घटित हुई, उस समय इस गेम-जोन में टी.आर.पी. के जरिये मनोरंजक खेलों का आयोजन किया गया था। जानकारी के अनुसार इस गेम जोन का ढांचा कुछ इस प्रकार से है, कि नीचे से ऊपर जाने और फिर ऊपर से नीचे आने का सीढ़ी मार्ग इतना संकरा था कि लोगों को बच निकलने का अवसर ही नहीं मिला। इसके अतिरिक्त इस व्यवसायिक स्थल में आपात बचाव मार्ग था ही नहीं और निकासी गेट संकरे थे। वहीं सुरक्षा उपकरण इतने कम थे, कि वे आग बुझाने की अपेक्षा व्यवधान का कारण बनते रहे। यह भी, कि इस व्यवसायिक केन्द्र के इर्द-गिर्द टायरों का कबाड़ और डीजल भी हजारों लीटर की मात्रा में पड़ा था जिससे आग बड़ी तेजी से नीचे से ऊपर की तीन मंजिलों की ओर फैल गई। आग का कारण अस्थायी रूप में बनाये गये खेल कमरों के निर्माण हेतु किये जा रहे वैल्डिग कार्यों के दौरान हुए विस्फोट को बताया गया है। इस अग्निकांड के पीछे एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि स्कूलों एवं अन्य शिक्षण संस्थानों में छुट्टी होने और आयोजकों द्वारा प्रवेश शुल्क को काफी सीमा तक कम कर देने के कारण भीड़ अपेक्षा से अधिक हो गई थी जिसे नियंत्रित कर पाने की अतिरिक्त व्यवस्था नहीं की गई थी। सम्भवतः इसी कारण कुछ नये कमरे बनाने हेतु वैल्डिंग कार्य किये जा रहे थे। अत्यधिक गर्मी के कारण वैल्डिंग से उपजी कोई चिंगारी किसी गैस सिलेण्डर में गिरने से संभवतः एकाएक भीषण विस्फोट हुआ, और मनोरंजन पिकनिक मस्ती के लिए वहां पहुंचे सैंकड़ों लोग आग की लपटों के बीच घिर गये। इस खेल जोन में अधिकाधिक कमाई करने के लिए इसमें लकड़ी के पार्टिशन कर कमरे बनाये गये थे। इस कारण आग तेजी से भड़की।

सार्वजनिक स्थलों पर आग लगने जैसी ऐसी कोई गम्भीर घटना गुजरात अथवा देश में पहली बार नहीं हुई। आपको याद दिला दें कि तक्षशिला में हुए एक अग्निकांड में 22 बच्चों की मृत्यु हुई थी। उपहार सिनेमा में पचास से अधिक दर्शकों की मौत हो गई थी।मेरठ के विक्टोरिया पार्क में एक कंपनी के इवेंट प्रोग्राम के दौरान लगी आग में 65 लोगों की मौत हो गई थी। दिल्ली के ही मुखर्जीनगर के कोचिंग सेंटर में आग में कई छात्र हताहत हुए कई होटलों होस्टल मैरिज होम में आग की घटनाएं कितने ही जीवन लील चुकी हैं। वहीं हरियाणा के मंडी डबवाली के एक निजी स्कूल के कार्यक्रम में मैरिज होम के परिसर में 27 वर्ष पूर्व देश के एक सबसे बड़े अग्नि-कांड में 442 लोग जीवित जल गये थे जिनमें से 258 स्कूली बच्चे थे। एक स्कूल कार्यक्रम हेतु इस काम्पलैक्स में भव्य मिलन समारोह का आयोजन किया गया था। वहीं हर साल आतिशबाजी कारखानों में आग व विस्फोट की घटना में सैकड़ों कामगार मौत के मुंह में समा जाते हैं। अभी बीते वर्षों में कई अस्पतालों के नर्सरी केयर यूनिट में आग की घटनाएं लगातार सामने आती रही हैं। इसी कड़ी में 25 मई को दिल्ली के विवेक विहार इलाके में स्थित एक बेबी केयर हॉस्पिटल में आग लग गई। लोगों का कहना है कि इमारत के ग्राउंड फ्लोर में कई ऑक्सीजन सिलेंडर थे, जिसमें ब्लास्ट हुआ। देखते ही देखते पूरी बिल्डिंग आग की लपटों से घिर गई। फायर विभाग की टीम ने लोगों के साथ मिलकर 12 बच्चों को रेस्क्यू किया लेकिन इलाज के दौरान 7 बच्चों की मौत हो गई।

सवाल उठता है कि देश भर में होने वाले इन हादसों से राज्य सरकारें क्या सबक लेती है? क्या देश के एक राज्य में ऐसा कोई हादसा होता है तो दूसरे राज्यों की सरकारों को इस तरह के हादसे उनके राज्य में न हो इस के लिए सबक नहीं लेना चाहिए? हर बड़े हादसे के बाद आकस्मिक स्थिति में निकासी के लिए आपात कालीन द्वार न होने, निकासी गेट संकरे व छोटे होने, नक्शे पास बिना निर्माण क्षमता से अधिक लोगों का प्रवेश अग्निशमन के साधनों का अपर्याप्त होना, आयोजन की अनुमति न लेना आदि ऐसे कारण है जो हर हादसे की पटकथा तैयार करते हैं। हजारों शहर कस्बों में बिना अग्निशमन के पर्याप्त इंतजाम और परमिशन के बिना बैंकटहाल होटल कम्युनिटी हाल कारखाने माॅल संचालित किए जा रहे हैं। कौन है इसके लिए जिम्मेदार? फिर राज्य सरकार उनके अधीनस्थ जिला प्रशासन अपने क्षेत्र के आयोजन स्थलों अथवा सार्वजनिक स्थानों की जांच-पड़ताल व समय समय पर समीक्षा क्यों नही करते हैं? कम लागत में अधिक मुनाफा अर्जित करने की मनोवृत्ति अक्सर कितने भीषण कांड का कारण बन जाती हैं, इसका प्रमाण गुजरात और डबवाली की घटना से चल जाता है। यह तथ्य भी किसी से छिपा नहीं है कि हमारे प्रशासनिक तंत्र की जड़ों तक भ्रष्टाचार की दीमक लगी है सही और नियम के अनुसार निर्माण की स्वीकृति के लिए भी रिश्वत जरूरी है। ऐसी स्थिति में लोगों ने यह मान लिया है कि जब वैध काम के लिए भी सरकारी मशीनरी को रिश्वत देनी पड़ती है तो क्यों न कुछ नियमों को ताक पर रखकर रिश्वत देकर परमिशन जारी करा ली जाए? कर्तव्य निर्वहन में कोताही और आम जन की जान माल की सुरक्षा की उपेक्षा कर जेब भरने का भाव हर हादसे के मूल में जिम्मेदार हैं। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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