‘संसार में श्राद्ध से बढ़कर कोई दूसरा कल्याणप्रद मार्ग नहीं

नोट- जिनके पिता माता प्रत्यक्ष विद्यमान हैं उन्हें श्राद्ध तर्पण नहीं करना चाहिऐ नहीं करना है ।महर्षि सुमंतु ने श्राद्ध से होने वाले लाभ के बारे में बताया है कि ‘संसार में श्राद्ध से बढ़कर कोई दूसरा कल्याणप्रद मार्ग नहीं है। अतः बुद्धिमान मनुष्य को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए।
श्राद्ध की आवश्यकता और लाभ पर अनेक ऋषि-महर्षियों के वचन ग्रंथों में मिलते हैं।
* गरुड़ पुराण के अनुसार ‘पितृ पूजन (श्राद्ध कर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते हैं।
* मार्कण्डेय पुराण के अनुसार ‘श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।
* ब्रह्मपुराण के अनुसार ‘जो व्यक्ति शाक के द्वारा भी श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता।’
साथ ही ब्रह्मपुराण में वर्णन है कि ‘श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यावस्था में ही मर गए हों, वे सम्मार्जन के जल से तृप्त हो जाते हैं।
कुर्मपुराण में कहा गया है कि ‘जो प्राणी जिस किसी भी विधि से एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुनः संसार चक्र में नहीं आता।’
श्राद्ध का महत्व तो यहां तक है कि श्राद्ध में भोजन करने के बाद जो आचमन किया जाता है तथा पैर धोया जाता है, उसी से पितृगण संतुष्ट हो जाते हैं।
बंधु-बांधवों के साथ अन्न-जल से किए गए श्राद्ध की तो बात ही क्या है, केवल श्रद्धा-प्रेम से शाक के द्वारा किए गए श्राद्ध से ही पितर तृप्त होते है
विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धायुक्त होकर श्राद्ध कर्म करने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, दोनों अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, अष्टवसु, वायु, विश्वेदेव, ऋषि, मनुष्य, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होते हैं।
हेमाद्रि नागरखंड के अनुसार एक दिन के श्राद्ध से ही पितृगण वर्षभर के लिए संतुष्ट हो जाते हैं, यह निश्चित है।
देवलस्मृति के अनुसार ‘श्राद्ध की इच्छा करने वाला प्राणी निरोग, स्वस्थ, दीर्घायु, योग्य सन्तति वाला, धनी तथा धनोपार्जक होता है। श्राद्ध करने वाला मनुष्य विविध शुभ लोकों को प्राप्त करता है, परलोक में संतोष प्राप्त करता है और पूर्ण लक्ष्मी की प्राप्ति करता है।’
अत्रिसंहिता के अनुसार ‘पुत्र, भाई, पौत्र (पोता), अथवा दौहित्र यदि पितृकार्य में अर्थात् श्राद्धानुष्ठान में संलग्न रहें तो अवश्य ही परमगति को प्राप्त करते हैं।
यमस्मृति के अनुसार ‘जो लोग देवता, ब्राह्मण, अग्नि और पितृगण की पूजा करते हैं, वे सबकी अंतरात्मा में रहने वाले विष्णु की ही पूजा करते हैं।’
इसके अलावा भी अनेक वेदों, पुराणों, धर्मग्रंथों में श्राद्ध की महत्ता व उसके लाभ का उल्लेख मिलता है।
उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि श्राद्ध फल से पितरों की ही तृप्ति नहीं होती, वरन् इससे श्राद्धकर्ताओं को भी विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
अतः हमें चाहिए कि वर्ष भर में पितरों की मृत्युतिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न करने और गो ग्रास देकर अपने सामर्थ्य अनुसार दीन दुखियों को भोजन करा देने मात्र से ऋण उतर जाता है।
इसलिए पुत्र को चाहिए कि भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ कर आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक सोलह दिन पितरों का तर्पण और उनकी मृत्युतिथि को श्राद्ध अवश्य करें। ऐसा करके आप अपने परम आराध्य पितरों के श्राद्धकर्म द्वारा आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक उन्नति को प्राप्त कर सकते हैं ।
चंद्रद्रग्रहण सूर्यग्रहण एक प्राकृतिक खगोलीय घटना है, लेकिन धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से इसे बेहद खास माना जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार, इस साल अंतिम चंद्रग्रहण 7 सितंबर को लगने वाला है। खास बात यह है कि इस दिन भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि भी होगी। वैदिक पंचांग के अनुसार, ग्रहण की शुरुआत रात 9 बजकर 57 मिनट पर होगी और इसका समापन अर्धरात्रि 1 बजकर 26 मिनट पर होगा। आपको बता दें कि साल का आखिरी चंद्र ग्रहण भारत में भी दिखाई देगा, इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य रहेगा। ऐसे में इस दौरान कुछ खास बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। तो चलिए जानते हैं कि इस अवधि में क्या करना चाहिए और किन बातों से बचना चाहिए।
सभी को अपने घरों में वस्तुवों को पवित्र रखने के लिए प्रत्येक खाद्य सामग्री को कुशा से ढक देना चाहिए । तुलसी पत्र का उपयोग नहीं करना चाहिए ।कुश पवित्र होता है इसलिए वस्तुवों चीजों को अपवित्र होने से बचाने के लिऐ कुशा का प्रयोग करना चाहिए।
ग्रहण काल के दौरान नकारात्मक शक्तियां सक्रिय होती हैं। ऐसे में भगवान की मूर्तियों को छूना अशुभ माना जाता है। इस दौरान घर के मंदिर को लाल या पीले कपड़े से ढक दें।
इस दिन तुलसी, पीपल और बरगद के पेड़ों को छूने से बचें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से दोष लग सकता है।
ग्रहण वाले दिन ऐसे लोगों से न मिलें जो नकारात्मक बातें करते हैं। झगड़ा या वाद-विवाद से भी दूर रहें, वरना घर की शांति भंग हो सकती है।
इसके अलावा इस दौरान ज्यादा बातचीत या बहस करने से भी दूरी बनाए रखें।
इस दिन चाकू, सुई, कैची जैसी नुकीली वस्तुओं का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। साथ ही नाखून और बाल काटना भी अशुभ होता है।
गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के समय बाहर निकलने से मना किया जाता है। साथ ही उन्हें नुकीली चीजों को पकड़ने से भी बचना चाहिए।
ग्रहण काल में भगन्नाम जप करने से ग्रहण दोष दूर होते हैं और पितरों का आशीर्वाद मिलता है। ग्रहण मे सूतक काल आरंभ से लेकर ग्रहण मोक्ष पर्यन्त सिर्फ भगवन्नाम जप कर सकते है इसके अतिरिक्त और कोई भी क्रिया कलाप दान पुण्य हवन कर्मकांड विधि नहीं करना चाहिए। ग्रहण मोक्ष के उपरान्त स्नान करके दान पुण्य कर सकते हैं ।
इस दिन भगवन्नाम सुमिरण करना चाहिए।
माना जाता है कि इससे मन को शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान करना चाहिए। इससे शरीर और घर में फैली नकारात्मकता दूर होती है। स्नान के बाद घर और मंदिर में गंगाजल का छिड़काव अवश्य करें।
मनोज शुक्ल