देव दीपावली पर हुआ था त्रिपुरासुर का वध

कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हमारे देश में दीपावली मनायी जाती है। मान्यता है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम रावण का वध कर सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आये थे। श्रीराम के 14 वर्ष के वनवास की अवधि भी इसी तिथि को समाप्त हुई थी। इस खुशी में अयोध्या के निवासियों ने घर से लेकर बाहर तक घी के दीपक जलाए थे। दीपावली की परम्परा वहीं से प्रारंभ मानी जाती है। इस दीपावली के साथ ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को देवता दीपावली मनाते हैं। इसे देव दीपावली कहा जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का वध किया था। काशी (वाराणसी) को भगवान शिव की सबसे प्रिय नगरी माना जाता है। इसलिए वाराणसी मंें देव दीपावली बहुत ही धूमधाम से मनायी जाती है। इस दिन गंगा के तट पर भव्य रूप से आरती होती है और घाटों को दीपों से जगमग किया जाता है। उत्तर प्रदेश में जब से योगी आदित्यनाथ की सरकार स्थापित हुई है तब से अयोध्या में दीपावली और काशी में देव दीपावली बहुत ही भव्य रूप में मनायी जाती है। इस बार देव दीपावली 5 नवम्बर बुधवार को मनायी जाएगी। इस दिन शुभ मुहूर्त भी बन रहे हैं।
देव दिवाली का त्योहार हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवता धरती पर आते हैं और दिवाली मनाते हैं। इसलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है। देव दिवाली की पौराणिक कथा भगवान शिव और त्रिपुरासुर राक्षस से जुड़ी है। इस कथा का जिक्र महाभारत के कर्णपर्व में मिलता है। महाभारत के कर्णपर्व में वर्णित कथा के अनुसार, तारकासुर नामक राक्षस के 3 पुत्र थे- तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली इन्हें एक साथ त्रिपुरासुर कहा जाता है। जब कार्तिकेय ने देवताओं के साथ मिलकर तारकासुर का वध किया तो तारकासुर के तीनों पुत्रों-तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने देवताओं से बदला लेने की ठानी। इन तीनों ने कठोर तपस्या के बाद ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया, जिसके बाद वर के रूप में ब्रह्मा जी से इन्होंने अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने अमरता का वरदान को छोड़कर कुछ भी मांगने की बात कही। इस पर तीनों भाइयों ने एक ऐसा वर मांगा जिससे उनकी मृत्यु असंभव हो जाए। उन्होंने कहा कि जब हम तीनों एक ही पंक्ति में हों, अभिजीत नक्षत्र हो और एक ही तीर से हमें कोई मारे तभी हमारी मृत्यु हो। ब्रह्मा जी ने उन्हें ये वरदान प्रदान किया।
इसके बाद त्रिपुरासुर यानि तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। त्रिपुरासुर की यातनाओं से देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य त्राहिमाम करने लगे। अंत में सब लोग भगवान शिव के पास मदद मांगने पहुंचे। भगवान शिव न त्रिपुरासुर का वध करने का प्रण लिया। इसके बाद भगवान शिव ने पृथ्वी को अपना रथ बनाया, सूर्य और चंद्रमा को इस रथ का पहिया बनाया गया, मेरू पर्वत धनुष बना और वासुकी नाग धनुष की डोर। इसके बाद अभिजीत नक्षत्र में भगवान शिव ने बाण बने भगवान विष्णु के जरिए त्रिपुरासुर यानि तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली का वध किया और तीनों लोकों को इनके आंतक से मुक्त करवाया।
भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध किया था और इसलिए देवताओं ने इस दिन काशी में दीप दान कर दिवाली मनाई थी। इसी लिए कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली आज भी मनाई जाती है, माना जाता है कि आज भी देवता कार्तिक पूर्णिमा पर देव दिवाली मनाते हैं। वहीं त्रिपुरासुर का वध करने की वजह से भगवान शिव का एक नाम त्रिपुरारी भी है और इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता। देव दिवाली पर गंगा, यमुना के घाटों पर आज भी लोग दीप दान करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा इस साल 5 नवंबर को है। इस दिन चंद्रमा मेष राशि में विराजमान रहेंगे और शुक्र स्वराशि तुला में रहेंगे। ऐसे में चंद्रमा और शुक्र के बीच समसप्तक योग बनेगा, क्योंकि दोनों ग्रह एक दूसरे से सातवें भाव में होंगे। समसप्तक योग के बनने से राशिचक्र की कुछ राशियों को लाभ की प्राप्ति हो सकती है, इन राशियों की किस्मत चमक सकती है।
मेष राशि-चंद्रमा और शुक्र का समसप्तक योग का बनना आपको भावनात्मक रूप से मजबूत करेगा। आपको वैवाहिक जीवन में सुख की प्राप्ति होगी। किस्मत का साथ आपके साथ रहेगा जिससे करियर क्षेत्र में ऊंचाइयां इस दौरान आप प्राप्त कर सकते हैं। इस राशि के कुछ विवाह योग्य लोगों को मनचाहा जीवनसाथी मिल सकता है।
मिथुन राशि-कार्तिक पूर्णिमा के दिन समसप्तक योग के बनने से पारिवारिक जीवन में बेहद शुभ परिणाम मिथुन राशि वालों को मिल सकते हैं। घर के लोगों के साथ कहीं घूमने भी आप निकल सकते हैं। इस राशि के जो लोग कला, लेखन, गायन के क्षेत्र में हैं उन्हें बड़ी उपलब्धि मिलने की संभावना है। भाग्य का भी पूरा सहयोग आपको प्राप्त होगा। धन-धान्य में भी वृद्धि के योग हैं।
तुला राशि-आपके व्यक्तित्व का आकर्षण लोगों को आपकी ओर खींचेगा। कुछ सिंगल लोग इस दौरान मिंगल कर सकते हैं। कारोबारियों को धन लाभ मिलने के योग हैं। आप अपनी योग्यता का लोहा कार्यक्षेत्र में मनवा सकते हैं। कुछ लोगों को भाग्य का साथ मिलेगा और उच्च पद की प्राप्ति हो सकती है। हालांकि इस राशि के जातकों को अत्यधिक भावुक होने से बचना होगा नहीं तो काम बिगड़ सकते हैं।
धनु राशि-कार्तिक पूर्णिमा और इसके बाद का समय आपके लिए गेम चेंजर शामिल हो सकता है। अचानक से करियर के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव आएंगे। बड़े पदों पर आप पहुंच सकते हैं। सेहत में भी अच्छे बदलाव देखने को आपको मिलेंगे। भौतिक सुखों की आपको प्राप्ति हो सकती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर 2025 को रात 10 बजकर 36 मिनट से शुरू होकर 5 नवंबर को शाम 6 बजकर 48 मिनट पर समाप्त होगी। तिथि के अनुसार, देव दीपावली का पर्व 5 नवंबर बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5.15 बजे से 7.50 बजे तक रहेगा। इसी समय में भगवान शिव, विष्णु और मां गंगा की आराधना करना बहुत ही शुभ फलदायी माना गया है।देव दीपावली पर दीपदान का विशेष महत्व है।
देव दीपावली के दिन दीपदान को बहुत ही पुण्यकारी माना गया है। इस दिन सबसे पहले घर के मंदिर में दीप जलाकर भगवान का आशीर्वाद लें। इसके बाद भगवान शिव और विष्णु के मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें। गंगा किनारे या किसी पवित्र जल स्थल पर दीपदान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। पीपल वृक्ष के नीचे और अपने गुरु या ब्राह्मण के घर दीप जलाना ज्ञान और सौभाग्य बढ़ाने वाला माना गया। शाम के समय भगवान शिव, मां गंगा और भगवान विष्णु की पूजा करें। देसी घी के दीपक जलाकर घर के आंगन, मंदिर और हर कोने में रखें। भगवान शिव को जल, दूध, बेलपत्र और फल अर्पित करें। विष्णु जी को केले का भोग लगाएं और तुलसी दल अर्पित करें। इस दिन शिव चालीसा का पाठ और आरती अवश्य करें। (पं. आर.एस. द्विवेदी-हिफी फीचर)


