लेखक की कलम

ट्रंप का खतरनाक ईरादा

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)
कई बार सत्ता की बटेर ऐसे निरंकुश विचारों वाले हिटलर सरीखे व्यक्ति के हाथों पहुंच जाती है जो अपने प्रभुत्व को कायम करने के लिए समूची मानवता, समाज या व्यवस्था के लिए चुनौती बन जाता है। रावण से लेकर कंस और हिटलर से लेकर साउथ कोरिया के किम जोंग तक ऐसे अनेक क्रूर शासकों के नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। इन दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप पर भी सत्ता का ऐसा ही खुमार सिर चढ़कर बोल रहा है और उनकी नीतियां दुनिया के कई देशों के लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर रहीं हैं।
ताजा परिप्रेक्ष्य में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रैरिफ वॉर शुरू किया है, उसका असर अब दुनिया के बाजार में दिखने लगा है। दुनिया भर के बाजारों में उथल-पुथल मच गई है और जिस प्रकार कई देशों के शेयर बाजार में गिरावट देखने को मिली है, उससे आर्थिक मंदी के आसार दिखने लगे हैं। पूरी दुनिया के साथ भारत का शेयर बाजार भी अछूता नहीं रहा है। सोमवार को शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का 7 अप्रैल को सेंसेक्स पिछले बंद से करीब 4000 अंक नीचे रहा। हालांकि, बाजार बंद होने से पहले यह संभला और 2226 अंक नीचे गिरकर बंद हुआ। वहीं, निफ्टी में भी करीब 1100 अंकों का गोता लगाने के बाद 742 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ।
रिपोर्ट्स के अनुसार अमेरिकी टैरिफ वॉर के कारण खुद अमेरिकी बाजार का रुख नीचे की तरफ हो गया है। अमेरिकी शेयर बाजार में करीब 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में 1,212.98 अंकों की भारी गिरावट दर्ज की गई, जो 3.17 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाती है और इसका स्तर 37,101.88 पर आ गया। वहीं, एसएंडपी 500 सूचकांक 181.37 अंक या 3.57 प्रतिशत की गिरावट के साथ 4,892.71 पर पहुंच गया। तकनीकी शेयरों पर आधारित नैस्डैक कंपोजिट भी इस दबाव से अछूता नहीं रहा और इसमें 623.23 अंकों यानी 4.00 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जिससे यह 14,964.56 पर आ गया। इससे पहले डाड जोन्स, नेस्डैक और एसएंडपी 500 में औसतन करीब छह फीसद की गिरावट देखी गई। यह गिरावट सभी क्षेत्रों में जारी रही। उसका असर भारतीय शेयर बाजार में भी दिखा। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यही रुख बना रहा, तो दुनिया में बहुत जल्दी मंदी का दौर शुरू हो जाएगा। दरअसल ट्रंप के ट्रैरिफ वॉर से वैश्विक व्यापार तनाव और आर्थिक मंदी की आशंकाओं से निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई है। निवेशकों का विश्वास डगमगा गया है और इसी कारण शेयरों की बिकवाली के कारण निवेशकों के लाखों करोड़ों रुपये डूब गए। विशेषकर अमेरिका और चीन के बीच जिस प्रकार से टैरिफ वॉर शुरू हुआ है, उसने पूरी दुनिया में अनिश्चितता का दौर शुरू कर दिया है। अमेरिका ने चीन के निर्यात को नुकसान पहुंचाने के लिए 104 प्रतिशत टैक्स लगाया है। चीन ने सात प्रकार के दुर्लभ खनिजों का निर्यात रोक दिया और अमेरिका व भारत से आने वाले मेडिकल एक्स-रे मशीनों की जांच शुरू कर दी। चीन ने 16 अमेरिकी कंपनियों पर भी प्रतिबंध लगा दिए हैं। साफ है कि डोनाल्ड ट्रंप की एक जिद दुनिया पर कितनी भारी पड़ रही है, इसका सीधा असर देखकर भी अमेरिका के राष्ट्रपति आंखें मूंदे हुए हैं। उल्टे ट्रंप ने टैरिफ (शुल्क) को ‘दवा’ बताया है और स्पष्ट किया है कि वह अपनी नीति से पीछे नहीं हटेंगे। उनके अनुसार कभी-कभी चीजों को ठीक करने के लिए कड़वी दवा लेनी पड़़ती है। उनके इस रवैये ने दुनिया भर के निवेशकों में डर भर दिया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप प्रशासन के इस टैरिफ का असर अभी पूरी तरह से बाजार में वित्त वर्ष मूल्य में शामिल नहीं हुआ है। इसका मतलब यह है कि निवेशक अभी भी इस नीति की पूरी गंभीरता को नहीं समझ पाए हैं और जब यह असर दिखने लगेगा तो बाजार में और गिरावट आ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध की वजह से वैश्विक स्तर पर मंदी की आहट की शुरूआत हो सकती है। इसका कारण है कि टैरिफ से महंगाई बढ़ेगी, कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ेगा और उपभोक्ताओं का विश्वास डगमगाएगा। महंगाई बढ़ने का अर्थ है कि लोग अपने जरूरी खचों में भी हाथ पीछे खींचना शुरू कर देंगे। इस तरह बाजार में पूंजी का प्रवाह रुकेगा। इसका सबसे बुरा असर विनिर्माण क्षेत्र पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अमेरिका को मौजूदा नीतियां बनी रहीं, तो यह पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेल सकती हैं। भारत को भले ही सीधे तौर पर उतना नुकसान न हो, लेकिन वैश्चिक मंदी का असर यहां भी जरूर दिखेगा। उदाहरण के तौर पर ट्रंप द्वारा भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने के बाद गोल्डमैन सैक्स ने भारत की विकास दर का अनुमान 6.3 प्रतिशत से घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है। दरअसल भारत का शेयर बाजार सीधे तौर पर अमेरिका से लिंक है। वहां की गिरावट यहां के सबसे बड़े सेक्टर यानी आईटी सेक्टर को धराशायी कर देता है। इसका असर पिछले कुछ दिनों में साफतौर पर देखने को मिला है। देखा जाए तो ट्रंप को तो सिर्फ अमेरिका की चिंता है, भले ही उनकी यह चिंता अब अमेरिका के लिए ही चिंता का विषय बन गई है। तमाम अमेरिकी विशेषज्ञ साफ कह चुके हैं कि ट्रंप के टैरिफ का अमेरिका पर भी काफी बुरा असर पड़ेगा। तात्कालिक प्रभाव से शेयर बाजार ने 6 लाख करोड़ डॉलर तो गंवा ही दिए हैं, जो अमेरिका की अर्थव्यवस्था का करीब 20 फीसदी है। भारत में भी 20 लाख करोड़ से ज्यादा की गिरावट सिर्फ टैरिफ के ऐलान के बाद से आ चुकी है। वैश्विक शेयर बाजार में इतनी बड़ी गिरावट कोरोना के बाद पहली बार देखी गई है। वैसे ही दुनिया अभी मंदी की मार से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाई थी कि ट्रंप प्रशासन की शुल्क नीति ने एक नया चक्रव्यूह रच दिया। कोरोना के बाद सारी अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष करती नजर आ रही हैं। उसकी चपेट में अमेरिका भी रहा है। अब भी यहां महंगाई पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है। अगर संस्थागत निवेशकों ने अपना हाथ पीछे खींचना शुरू कर दिया, तो अमेरिका की अर्थव्यवस्था और लड़खड़ाने लगेगी। अभी अमेरिका को लगता है कि वह पारस्परिक शुल्क के जरिए अपनी पूंजी में बढ़ोतरी और अर्थव्यवस्था में मजबूती ला सकेगा, मगर हकीकत यही है कि इसका सबसे बुरा प्रभाव खुद उसी पर पड़ेगा। इसीलिए वहां शुरू से इस नीति का विरोध हो रहा है। आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं तन्हा नहीं रह गई हैं, उनमें परस्पर जुड़ाव है। वे अपने लाभ के लिए नए समीकरण और संगठन बनाती रहती हैं। ऐसे में कहीं अमेरिका अलग-थलग न पड़ता जाए। हालांकि यह अमेरिका को फिर से ‘ग्रेट’ बनाने के ट्रंप के दुस्साहसी कदम का परिणाम है। मगर इससे ट्रंप अपने घोषित मकसद में कामयाब होंगे, इसकी संभावना भी नहीं दिखती। आखिर अर्थशास्त्र
का आम सिद्धांत है कि सुगम व्यापार से सबको लाभ होता है, जबकि ट्रंप ने उलटी राह पकड़ी है। ऐसे में अच्छा तो यही होगा कि ट्रैरिफ वार को
लेकर फिर से विचार करें लेकिन इस की उम्मीद करना महज मन समझाने जैसा है। (हिफी)

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