सम-सामयिक

तुषार मेहता ने दिलायी द्वापर की याद

 

द्वापर युग मंे महाभारत हुआ था। कौरवों ने अन्याय करके पांडवों का राज्य छीन लिया था। इसी के चलते महाभारत का युद्ध हुआ था। इस युद्ध में भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य कौरवों की तरफ से लड़ने को विवश थे लेकिन मन में पांडवों की विजय की कामना करते थे। मन की यह स्थिति बड़ी जटिल होती है और कभी-कभी हम सभी के सामने ऐसी ही परिस्थितियां आ जाती हैं। भारत के मौजूदा सालिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता सरकार की तरफ से कानूनी लड़ाई लड़ते हैं। उन्हांेने पिछले दिनों द्वापर युग के महाभारत की याद ताजा कर दी। लंदन में एक अन्तरराष्ट्रीय कार्यक्रम मंे सालिसिटर जनरल तुषार मेहता भी मौजूद थे। उन्हांेने आयोजित परिचर्चा मंे भाग लेते हुए कहा कि उन्हांेने कई बार अपनी पराजय को कानून की विजय के रूप में सराहा है। उन्हांेने बिना किसी संकोच के कहा कि कई बार उन्हें यह महसूस हुआ कि कानून के शासन के लिए दूसरे पक्ष की सफलता महत्वपूर्ण है। मेहता ने कहा कि भारत में कानून के शासन का कार्यान्वयन गर्व करने योग्य है। जाहिर है कि तुषार मेहता को कई बार ऐसा भी महसूस हुआ जब सरकार की तरफ से लड़ते हुए उन्हंे पराजित होना बेहतर लगा। तुषार मेहता भारत के एक वरिष्ठ वकील हैं और मौजूदा समय मंे भारत के साॅलिसिटर जनरल (एसजी) के रूप में कार्य कर रहे हैं। गुजरात विश्वविद्यालय से उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की और पांच स्वर्ण पदक भी हासिल किये।

सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों गर्मी की छुट्टी चल रही है। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ छुट्टी के बीच लंदन गए। अब उनके बाद भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के भी लंदन जाने की खबर है। एसजी तुषार मेहता ने हाल ही में लंदन अंतर्राष्ट्रीय विवाद सप्ताह के तहत आयोजित एक परिचर्चा में भाग लिया। इस दौरान उन्होंने ऐसी बात कही कि वहां मौजूद लोग हैरान रह गए। बार-बेंच की रिपोर्ट के अनुसार एसजी तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें भारत में कानून के शासन के कार्यान्वयन पर गर्व है, जबकि उन्होंने बताया कि उन्होंने कई ऐसे मामले हारे हैं, जहां उन्हें भी लगा कि कानून के शासन के लिए दूसरे पक्ष की सफलता की आवश्यकता है।

एक उदाहरण देखें जहां एसजी तुषार मेहता का तर्क सुप्रीम कोर्ट ने नहीं माना था। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉड्रिंग केस में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी। अरविंद केजरीवाल 1 जून तक जेल से बाहर रहे। इसके बाद उन्हें समर्पण करना पड़ा। इस मामले में जांच एजेंसी की ओर से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने का पुरजोर विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दलीलों को खारिज करते हुए सीएम केजरीवाल को अंतरिम जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने अरविंद केजरीवाल को 50,000 रुपये के जमानती बॉण्ड और इतनी ही राशि का मुचलका जमा कराने का भी निर्देश दिया। अदालत ने उनकी इस दलील से भी सहमति नहीं जताई कि चुनाव प्रचार के लिए आप के राष्ट्रीय संयोजक को अंतरिम जमानत देना ‘इस देश के आम नागरिकों की तुलना में राजनीतिक नेताओं को लाभकारी स्थिति में प्रमुखता से रखने’ जैसा होगा। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने कहा, ‘अंतरिम जमानत अथवा रिहाई देने के सवाल की जांच करते समय अदालतें हमेशा संबंधित व्यक्ति से जुड़ी विशिष्टताओं और आसपास की परिस्थितियों को ध्यान में रखती हैं। वास्तव में इसे नजरअंदाज करना अन्यायपूर्ण और गलत होगा।’ पीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि गंभीर आरोप लगाए गए हैं, लेकिन केजरीवाल को अभी तक दोषी नहीं ठहराया गया है। उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह समाज के लिए खतरा नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उनकी गिरफ्तारी की वैधता को शीर्ष अदालत के समक्ष चुनौती दी गई थी, जिसने अभी तक इस पर अपना अंतिम फैसला नहीं सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि केजरीवाल का मामला असामान्य नहीं है। अंतरिम जमानत देने की शक्ति का प्रयोग आमतौर पर कई मामलों में किया जाता है और प्रत्येक मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अंतरिम जमानत दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘उपरोक्त कारणों से हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता (अरविंद केजरीवाल) को मामले के संबंध में अंतरिम जमानत पर 1 जून 2024 तक रिहा किया जाएगा। यानी वह 2 जून 2024 को आत्मसमर्पण करेंगे।’

मेहता को 10 अक्टूबर, 2018 को सालिसिटर जनरल नियुक्त किया था और तब से उन्हें दो बार विस्तार दिया जा चुका है। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की ओर से जारी एक आदेश के अनुसार, मेहता के अलावा, छह अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) को भी सुप्रीम कोर्ट के वास्ते तीन साल की अवधि के लिए फिर से नियुक्त किया गया था। इनमें विक्रमजीत बनर्जी, के एम नटराज, बलबीर सिंह, एस वी राजू, एन वेंकटरमन और ऐश्वर्या भाटी शामिल थे। दिल्ली हाई कोर्ट के लिए अतिरिक्त सालिसिटर जनरल चेतन शर्मा, पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के लिए सत्यपाल जैन, गुजरात हाई कोर्ट के लिए देवांग गिरीश व्यास और पटना हाई कोर्ट के लिए कृष्ण नंदन सिंह को भी तीन साल के लिए पुनर्नियुक्ति प्रदान की गयी थी।

तुषार मेहता ने गुजरात विश्वविद्यालय से लाॅ की डिग्री प्राप्त की है औरें कर्नाटक ला यूनिवर्सिटी से डाक्टरेट की उपाधि भी मिली है। तुषार 1987 में एक वकील के रूप में अपना कार्य शुरू किया था और 2007 में 42 साल की उम्र में गुजरात हाई कोर्ट की ओर से उन्हें वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था। तुषार मेहता को 2008 में अतिरिक्त एडवोकेट जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। तुषार मेहता को 2014 में भारत के अतिरिक्त सालिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद मेहता को 2018 में भारत के सालिसिटर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया था। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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