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Theory of karma (कर्म का सिद्धांत) 3

शिव ब्रह्मा से अलग नहीं है। शिव तत्व ब्रहमा है

करता पुरुष शिव है और कोई नहीं है। मुझसे भी आकर लोग बोलते हैं। बाबा जी आप ने चमत्कार कर दिया। मैं कहता हूं, करता तो वह पुरुष शिव है मैंने कुछ नहीं किया कहते हैं आप कर रहे हो शिव बनके। अगर मैं शिव बन गया, अगर मैं शिव छोड़ के मैं कुछ और बन गया तो शिव का एक अंश भी मेेरे भीतर नहीं रहेगा। उस दिन मैं मिट्टी हो जाऊगा। उस दिन बरबाद हो जाऊगा। कुछ भी न रह पाएगा।
शिव तब आता है, जब मैं मिट जाता हूं। जब यहां कुछ रहता ही नहीं है। जब यहां कुछ रहा ही नहीं तो किसी ने फिर यहां कुछ किया कहां? करना वाला तो शिव ही है। यहां पर फिर भी हम अपने को जय बोल देते हैं
फिर भी इसके बाद यह बोलता है – ये इधर गया था या उधर गया था इसका भी ध्यान नहीं देता कि ये मिटना है। जब ये मिटेगा तभी शिव जागृता होगा। तभी शिव ही जागृत होगा और तभी लोगों का कल्याण हो पाएगा।
तो कर्ता पुरुष तो वहीं हैं। तो क्रोधित होकर कभी भी ये न कहों वो क्या करता है। कोई भी कुछ भी नहीं करता शिव और शक्ति this is the play of conciousness this is the dance of kundalini which is playing every were in this universe. This is the dance natraja. this is the dance of shakti.
इसको समझने की तुम यदि कोशिश करोगें तो तुम देखेगीं कि हर चीज जो तुम्हारे चारों ओर हो रही है उसमें आनंद ही आनंद है। उसमें शिव और शक्ति के ही तुमको प्रत्यक्ष दर्शन होगें।
मेरी बात समझ में आ रही है कि नहीं।
कुछ ज्यादा गहरी तो नहीं? मैं इसको आसान करने की कोशिश करता हूं। कर्ता पुरुष शिव है तुम कर्ता नहीं हो। वहीं करता है तुम्हारे माध्यम से। चाहे वो गुरु हो चाहे वो शिष्य हो। क्योंकि जब भगवान शिव ने भगवान नारायण और ब्रह्मा जी को दीक्षा दी तो उन्होंने कहा तुम दोनों मुझसे भिन्न नहीं हो।
हमसे पूछा जाता है ये प्रश्न कि हमारे उस वाले धर्म में तो कुछ ही देवी देवता है और तुम्हारे हिंदुओं में इतने करोड़ देवी देवता है। ये तुम्हारे आंखों का फेर है, जो तुम्हें करोड़, लाख, दो तीन चार दिखाई देते हैं। यह तुम्हारी आंखों का मैल है जो शिव कृपा अलग-अलग दिख रही है। ये सब तो उसी अनंत उसी ऊंकार का एक स्वरूप है। एक निराकार स्वरूप, एक साकार, एक चंचल स्वरूप, एक शांत स्वरूप। जैसा परमात्मा चाहता है उसी प्रकार की लीला करता हैं, उसी प्रकार की अनुभूति देता है।
भगवान ने कहा तुम मुझसे भिन्न नहीं हो तभी मैं ही हूं। भगवान शिव ने कहा हे ब्रहम्मा सृष्टि की रचना मै तुम्हारा रूप धरके करता हूं। मैं यानि ऊंकार, जय शिव ऊ कारा है जय शिव ओमकारा।
ब्रहम्मा, विष्णु, सदाशिव हर-हर ओमकारा……शिव कहते हैं कि मैं ब्रहम्मा का रूप धर सृष्टि की रचना करता हूं। तो ब्रह्मा शिव से अलग नहीं है, शिव ब्रह्मा से अलग नहीं है। शिव तत्व ब्रहमा है।
हे नारायण तुम्हारा रूप धर मै सृष्टि का पालन करता हूं जब सृष्टि में negative बढ़ जाती है, संभलती नहीं तो घोर कलयुग होता है। तब रूद्र रूप धर के मैं संघार करता हूं कि यह सब मैं ही करता हूं। मैं सब आत्माएं उस महा प्रलय में इधर-उधर भटक न जाए तो उन सब को अपने में समेट लेता हूं।
नई सृष्टि में ब्रहमा रूप धर फिर संचार करता हूं और वे आत्माएं वापस धरती पर आ जाती है। जरा ध्यान दो, सोचने का प्रयास करो कितनी महाप्रलय तुम देख चुके है।
काकभुेशुन्डी बोलते हैं काकभुशुन्डी जो अमर भोग है, वह बोलते है, कितने राम और कितने कृष्ण यहां मृत्युलोक में आते हुए देख चुके हैं। कितनी महाभारत कितनी रामायण बार- बार होती हुई मैं देख चुका हूं। ये एक काल चक्र है जो चलता जाता है। और जो इस मायाजाल से, इस कालचक्र से बाहर निकल जाता है वह कौन है? वही जिसको ज्ञान हो जाता है। वो तुरन्त इस काल चक्र से बाहर निकलता है और उसको हम कहते हैं कि ये मुक्त हो गया। तब रूद्र रूप धारण कर मैं सृष्टि का संहार करता हूं। महेश्वर बन कर मैं तुमको अपने में समेट लेता हूं और वापिस जब वह पृथ्वी पर आते हैं, तब उनको मोक्ष मार्ग दिखाने मैं सत्य मार्ग की ओर लेजाता हूं। ज्ञान मार्ग दिखाने के लिए मैं गुरु रूप धर बड़ा मजा आ गया होगा। इसको सुन के कि लो गुरु सबसे बड़ा हो गया। शिव का जो सबसे बड़ा स्वरूप है वो गुरु होता है। जहां ये विचार आया वो सबसे बड़ा हुआ। वहां गुरु तत्व कहा रहा। गुरु तत्व वो हुआ जो अपने को शिव में इतना खो दे साधना की अग्नि में अपने का इतना जला दे कि उसकी राख, उसकी भस्म तक न रहे। और जब वो पूर्ण रूप से जल कर शून्य हो जाए। जब वो शून्य हो जाता है तब उसी शून्य गुरुतत्व को उसमें शिव समा जाता है। कार्य कौन करता है सिर्फ गुरु नहीं करता। कर्ता कौन? शिव ही है। वहीं उसको कर्ता है। पहले तमोगुण निकलता है फिर रजोगुण निकलता है फिर सतोगुण निकलता है और गुरु का यही कत्र्तव्य है कि जो जो सचित गुण मनुष्य ने पैदा किए उनको ऊभारना। एक सच्ची घटना है, बहुत सी घटनाएं हमने देखी क्योंकि बड़े-बड़े संतों के साथ रहने और मिलने का सुख हासिल हुआ। सब से पहला तो बचपन में ही स्वामी जगन्नाथ का चमत्कार देखा कि मनुष्य मृत्यु के मुंह में जा चुका है और संत का सानिध्य उसे मृत्यु से खीचं लाया जीवित यह सच्ची घटना है। एक और ऐसी घटना है कि एक आदमी का बहुत ज्यादा कोर्ट कचहरी का केस लड़ना पड़ा। वह दुखी हो गयां। घर बर्बाद हो गया। गावं देहात में ऐसा होता है एक केस है, दूसरा केस है, तीसरा केस है और खेत खलियान बेच के केस ही केस चलता है।
वो आदमी संत के पास आया जो सिद्ध थे और गंगा किनारे कुटिया बना कर रह रहे थे। बोला – बाबा जी मैं दुखी हो गया हूं कुछ तो कीजिए। वहीं भभूत रखी थी, उन्होंने जड़ी डाली, उसको दे दिया। बोले कोर्ट में जाओ तिलक लगा के, तुम्हारा काम हो जाएगा। वह तिलक लगा कि वहां गया। जिसके साथ उसका केस था वो उसको देखते ही भागा आया और गले लग के रोने लगा। कहने लगा ये भारी भूल हो गयी और हम दोनों बेकार में अपने का बर्बाद करते जा रहे हैं आओ जज के सामने compromise समझौता कर लें। केस खत्म हो गया। भागा आया, बोला बाबा जी चमत्कार हो गया, केस खत्म हो गया। वहा शिष्य लोग बैठे थे जब वो चला गया तो बोले आपने तो चमत्कार दिखा दिया अब ये मुक्त हो गया। बाबा बोला अभी ये मुक्त नहीं हुआ है। ये कर्मों मेें अभी भी फंसा है। कुछ महीने बाद ये कर्मों में वशीभूत होकर फिर लड़ेगा। प्रारब्ध और होनी होकर रहती है फिर ये लड़ेगे फिर केश कोर्ट कचहरी जाएगें और फिर वैसे ही हो जाएगा। याद रख लेना ये घटना। मैं तीन चार घटनाए और बताऊंगा, याद रखना। एक और घटना, एक आदमी को सपना आता था, ट्रेन में जा रहा है और एक्सीडेन्ट हो गया और मर गया। गंगा किनारे बहुत से अवधूत छोटी-छोटी कुटिया बनाकर बैठे रहते है। दुनिया से दूर।
वह वहां गया और बोला महाराज ये मेरे साथ क्या हो गया है। ये सपना मेरे मनसे दूर करिए, मैं रोज अपने को मरता हुआ एक्सीडेन्ट में देखता हूं। बाबा बोला ऐसा करो हमारे यहा रह जाओ, सेवा करो। वो झाडू करता था, सब्जी काटता था, खाना बनाता था, महात्मा जी मजे से ध्यान में बैठे रहते थे।
वो खाना देता था और रोज सोचता था, मैं अच्छा मुफ्त का नौकर हूं, महात्मा जी खुद मजे से बैठा रहता है मुझसे झाडू भी लगवाता है, कपडे़ भी धुलवाता है और जो काम औरों से नहीं करवाता वो सारे काम मुझसे करवाता है। यहां मैं मुफ्त का नौकर बन गया हूं। यहां मैं फस गया। इसके 10-15 दिन बाद बोला न मेरे लिए कोई हवन कर रहा है न मेरे लिए कोई पूजन करवा रहा है। बेबात का मुझे रखा हुआ है। मुझे मूर्ख बनाए जा रहा है। तब वह बोला – बाबा जी मैं घर जाऊगां। बोला, नहीं नहीं अभी रूक जाओ अभी दो दिन और सेवा करो। पर वह अड़ गया, बोला अभी बहुत हो गया बड़े पैर दबा लिया आपके, सब्जियां बना के खिला ली, बड़े कपड़े धो लिए सफाई कर ली, और बेबात कर आपने मेरे से काम करवाया है। मैं तो जा रहा हूं। जब किसी तरह से वह रूकने का नहीं हुआ, तो महाराज जी ने एक पर्चा निकाला और कहा देख बेटा तूने इतने दिन सेवा करी है। ये मेरे लिए बाजार से दवा ले आ।
शहर थोड़ा दूर था जब वो बाजार दवा लेने गया तो उसकी गाड़ी छूट गई। अगले दिन सुबह अखबार में क्या देखता है उस गाड़ी का एक्सीडेन्ट हो गया और कई सौ लोग मृत्यु के मुंह में चले गए। तो वह वहां उसको ये ज्ञान हुआ कि जो महत्मा यहां मुझे बैठाए हुए थे, ये मुफ्त का काम नहीं करवा रहा था। निष्काम सेवा करवा रहा था। इसको न तो पैर दबवाने की जरूरत थी, न उसको झाडू लगवाने की जरूरत थी, न ही कपड़ा धुलवाने की जरूरत थी। वो तो जब देखो उसके हाथ से कुछ ऐसा कार्य करवाना चाहता था। संत का सांनिध्य, निष्काम सेवा, और सुबह शाम जबदेखो माला पहना देता था और जबरदस्ती दंडा पकड़ के कहता था ओम नमः शिवाय का जाप करो।
इसी संत ने उसको अपने पास पकड़ के जकड़ के, रखा और मृत्यु से उसको बचा या वो जो कर्म, उसे मृत्यु की और घसीटना चाहता था, तप के द्वारा, सेवा के द्वारा निष्काम सेवा के द्वारा उसने उस कर्म को समाप्त कर दिया। तो एक चीज समझ में आनी शुरू हो गई यहां, कि यदि तुम तपस्या करते हो, तप करते हो, तप की अग्नि कर्म को जला देती है। निष्काम सेवा, निष्काम सेवा की अग्नि तुम्हारे कर्म कष्ट को जला देती है। मंत्र जप ये तुम्हारे संचित कर्मों का फल है।

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