सम-सामयिक

जान ले रहीं असुरक्षित सड़कें

 

वल्र्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया के केवल एक फीसदी वाहन हैं, इसके बावजूद पूरे विश्व में होने वाले हादसों का 11 फीसदी देश में ही घटित होते हैं। यहां स्वीडन का जिक्र जरूरी है पिछले साल सड़क हादसों में करीब 250 मौतें ही स्वीडन में हुईं, लेकिन देश इस आकड़ें से भी दुखी है और वह आने वाले सालों में इन आंकड़ों को भी वो खत्म करना चाहता है।

भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में हर साल लाखों की संख्या में लोग अपनी जान गवां देते हैं। भारत सड़क दुर्घटना में जान गंवाने के मामले में दुनिया में पहले स्थान पर है अमेरिका और चीन समेत दुनिया के सभी देश हमसे पीछे हैं। भारत में सड़क हादसे अपने आप में एक गंभीर समस्या है। अभी हाल ही में भारत में कई सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, जिनमें कई लोगों की जान चली गई। वल्र्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया के केवल एक फीसदी वाहन हैं, इसके बावजूद पूरे विश्व में होने वाले हादसों का 11 फीसदी देश में ही घटित होते हैं। यहां स्वीडन का जिक्र जरूरी है पिछले साल सड़क हादसों में करीब 250 मौतें ही स्वीडन में हुईं, लेकिन देश इस आकड़ें से भी दुखी है और वह आने वाले सालों में इन आंकड़ों को भी वो खत्म करना चाहता है। यही कारण है कि विजन जीरो का सपना स्वीडन ने देखा है एक भारत है जहां करीब दो लाख लोग हर साल सड़क हादसों में अपनी जान गंवा रहे हैं।

भारत सरकार सड़क यातायात को सुगम और सुरक्षित साबित करने के बड़े दावे करती है लेकिन वास्तविकता यह है कि भारतीय सड़कें बेहद असुरक्षित हैं जो हर रोज न जाने कितने लोगों के जीवन को लील रही है और लोगों को घायल कर रही हैं। घायल लोगों में बड़ी संख्या में ऐसे भी हैं जो आजीवन विकलांग या शारीरिक रूप से पूरी तरह असमर्थ हो जाते हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा भारत में 2022 के दौरान होने वाले सड़क हादसों को लेकर जो वार्षिक रिपोर्ट जारी की गई है वह बेहद चिंताजनक है। स्थिति की गम्भीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में कहीं न कहीं औसतन हर घंटे 53 दुर्घटनाएं होती हैं जिनमें 19 लोगों की मौत हो जाती है यानि प्रतिदिन करीब 240। ये चिंता जनक आंकड़े चेतावनी के रूप में लिये जाने चाहिये और इन दुर्घटनाओं को टालने के लिये जरूरी कदम उठाने होंगे। सड़कें न केवल सुरक्षित हों वरन वाहनों की स्थिति भी ठीक होना चाहिये तथा वाहन चालन भी दोषरहित हो तभी सड़क यातायात को सुरक्षित कर नागरिकों के अमूल्य जीवन बचाये जा सकते हैं।

हर वर्ष राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस विभागों द्वारा ऐसी रिपोर्ट जारी होती है। साल 2022 के आंकड़े सड़क दुर्घटनाओं और उनके चलते होने वाली मौतों की संख्या व घायलों की तादाद में बड़ी बढ़ोतरी को दर्शाते हैं। ये आंकड़े एशिया पेसिफिक रोड एक्सीडेंट डाटा के अंतर्गत जारी किये गये हैं। इसके अनुसार साल 2022 के दौरान देश भर में 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएं हुई। इनमें 1,68,491 लोगों की मौत हुई और 4,43,366 लोग घायल हुए। उसके पहले साल की तुलना में दुर्घटनाएं 11.9 प्रतिशत बढ़ी हैं। 9.4 फीसदी अधिक लोगों की मृत्यु हुई जबकि घायलों की संख्या के लिहाज से यह 15.3 प्रतिशत की वृद्धि है।

आपको बता दें कि रिपोर्ट में सड़क हादसों का सबसे बड़ा कारण निर्धारित गति से भी तेज चालन, नशे में गाड़ी चलाना और यातायात नियमों का अनुपालन न करना बताया गया है। सड़क हादसों को लेकर वाहन चालकों को जागरूक करने की जरूरत बतलाई गई है। उनके लिये शैक्षणिक व प्रशिक्षण अभियान भी आवश्यक बताये गये हैं। सवाल तो यह है कि कुछ वर्षों पहले भारत सरकार ने नियम तोड़ने वालों के लिये बड़े जुर्माने निर्धारित किये थे। विशेषज्ञों ने तभी यह राय जाहिर की थी कि भारी-भरकम आर्थिक दण्ड की बजाय जागरूकता बेहतर उपाय है। मंत्रालय का यह भी दावा रहा है कि सड़क हादसों को रोकने के लिए कई तरीके अपनाए जा रहे हैं जिनमें मंत्रालय द्वारा वाहन चालकों को प्रशिक्षण देना आदि शामिल है। इसके अलावा वह सड़कों की गुणवत्ता, वाहन के मानक, यातायात नियमों का कड़ाई से अमल सहित दुर्घटनाओं को रोकने के अन्य पहलुओं पर काम करने का दावा भी करती रही है। सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मिलकर काम करने की जरूरत भी बतलाई गई है। मंत्रालय ने कई अन्य संबंधित संगठनों के साथ मिलकर इन्हें रोकने की ठानी है। इस कार्यक्रम को फोरई नाम दिया गया है, जिसमें शिक्षा, इंजीनियरिंग, प्रवर्तन और आपातकालीन देखभाल शामिल हैं। मंत्रालय का यह भी दावा है कि वह सड़क सुरक्षा ऑडिट कराने जा रही है। इस क्षेत्र में कई तरह के शोध, अध्ययन आदि भी किये जा रहे हैं ताकि सड़कों को पूर्णतः सुरक्षित बनाया जा सके।
यहां बता दें कि मौजूदा रिपोर्ट बहुत ही चेतावनी भरी है। इसलिये सरकार को चाहिये कि वह सभी आवश्यक कदम उठाये। सरकारों की रुचि केवल सड़कों के अनावश्यक रूप से चैड़ीकरण और फोर लेन या सिक्स लेन बनाने में रहती हैं। ये सड़कें परिवहन का समय घटाने और हादसों को रोकने के नाम पर चैड़ी तो कर दी जाती हैं लेकिन दुर्घटनाओं में कोई कमी नहीं हो पाती। सफर में लगने वाला वक्त जरूर घट जाता है परन्तु वह इकलौता लाभ पर्याप्त नहीं है। देखा यह भी गया है कि वाहन चलाने वाले और रास्तों पर चलने वाले कोई भी सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि रास्तों के किनारे रहने वाले भी दुर्घटनाओं की आशंका में जीते हैं।

हाल के वर्षों में वाहनों की गुणवत्ता भी काफी सुधरी है परन्तु यह भी सच है कि उसकी गति में भी इजाफा हुआ है। बेहतरीन व चैड़ी सड़कें पाकर वाहनों को फर्राटा गति से दौड़ाने का लालच भी बढ़ा है। समस्या यह है कि सड़कों पर चलने-चलाने का शऊर अब तक भारत के लोगों में विकसित हो नहीं पाया है। सरकार को लगता है कि केवल बड़ी राशि का जुर्माना ठोंककर समस्या से निजात पाया जा सकता है। कुछ बड़े व अनुशासनप्रिय शहरों में तो यातायात नियमों को तोड़ने वालों पर निगरानी रखी जाती है लेकिन छोटे शहरों, कस्बों व गांवों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि लोगों को नियमों का पालन करने के लिये प्रेरित या बाध्य किया जा सके। परिवहन व यातायात के तमाम नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए सड़कों पर वाहन दौड़ते नजर आते हैं। हेलमेट व सीट बेल्ट लगाये बिना वाहन दौड़ते हैं, र्बाइं ओर चलना अब तक देश ने सीखा ही नहीं, गलत ओवरटेकिंग करना व कट मारना लोगों का खास शगल है। निर्धारित संख्या से अधिक लोगों को ठूंसकर वाहन चलते हैं। निर्धारित गति से अधिक तेज रफ्तार के कारण सड़क के किनारे पलटी हुई गाड़ियां और उनके कारण मरने वाले व घायल होते लोगों के मंजर स्वयं ही बतलाते हैं कि भारतीय सड़कें कितनी असुरक्षित हैं। गडकरी बताएं कि क्या उनके मंत्रालय ने किसी एक्सप्रेस हाइवे पर किसी आपात स्थिति में प्राथमिक चिकित्सा देने के लिए कोई अस्पताल या ट्रामा सेंटर खोला? नहीं उनकी सोच सिर्फ जुर्माना राशि बढ़ाने तक सीमित रही। उन्हे नहीं अहसास है कि सारा देश न्यूयार्क या मुंबई नहीं है यहां आम आदमी भी सड़क पर चलते हैं और दिन रात हैवी जुर्माना की आड़ में पुलिस की खुली लूट का शिकार बन रहे हैं। (हिफी)

(मनोज कुमार अग्रवाल-हिफी फीचर)

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