वन्दे मातरम्: राष्ट्र की आत्मा का स्वर

वंदे मातरम, वंदे मातरम,!
सुजलाम्, सुफलाम् मलयज शीतलाम्
शस्यश्यामलाम्, मातरम्।
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम,
वंदे मातरम्, वंदे मातरम,
कोटि कोटि कण्ठ कल कल निनाद कराले
द्विसप्त कोटि भुजैर्धृत खरकरवाले
के बोले मा तुमी अबले
बहुबल धारिणीम् नमामि तारिणीम,
रिपुदलवारिणीम् मातरम,
तुमि विद्या तुमि धर्म, तुमि हृदि तुमि मर्म
त्वं हि प्राणाः शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारै प्रतिमा गडि मन्दिरे-मन्दिरे
त्वं हि दुर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमलदल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी, नमामि त्वाम
नमामि कमलां अमलां अतुलाम
सुजलां सुफलां मातरम्
श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम्
वन्दे मातरम्: यह दो शब्द नहीं, भारत माता के चरणों में अर्पित वह अमर स्तुति है जिसने एक गुलाम देश को स्वतंत्रता का स्वप्न देखने का साहस दिया। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित यह गीत भारत के राष्ट्रचेतना का वह मंत्र बना, जिसने देश की सुप्त ऊर्जा को जाग्रत किया। इस गीत की प्रत्येक पंक्ति में भारतभूमि के प्रति भक्ति, श्रद्धा और गौरव का जो भाव झलकता है, वह किसी भी धार्मिक या राजनीतिक सीमाओं से परे है।
अंग्रेजी दासता के समय जब देश निराशा में डूबा था, तब “वन्दे मातरम्” की गूंज ने हर भारतीय हृदय में क्रांति की लहर उत्पन्न की। यह गीत सुनते ही देशभक्तों की आँखों में मातृभूमि के लिए प्राण देने का जोश भर जाता था। बंगाल के नवयुवक क्रांतिकारियों से लेकर उत्तर भारत के स्वतंत्रता सेनानियों तक, ‘वन्दे मातरम्’ उनका युद्धघोष बन गया। यह गीत बंदूक से अधिक शक्तिशाली था, क्योंकि इसने आत्मा को झकझोरा, चेतना को जाग्रत किया और दासता की जंजीरों को तोड़ने की प्रेरणा दी।
भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाषचंद्र बोस और अनगिनत वीर सेनानी जब अंग्रेजों के विरुद्ध रणभूमि में उतरे, तो उनके ओठों पर वन्दे मातरम् का उद्घोष था। जेल की दीवारों में यह गीत गूंजता था और फांसी के तख्ते पर यह अंतिम वाणी बनकर निकलता था। मातृभूमि के लिए प्राणोत्सर्ग करने वालों के लिए यह गीत ही मंत्र था, यह गीत ही जीवन था।
किन्तु, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जो व्यवहार इस गीत के साथ हुआ, वह हमारी राष्ट्रीय स्मृति पर एक काला धब्बा है। आजादी के बाद जब यह अवसर आया कि इस गीत को पूर्ण सम्मान के साथ राष्ट्रगीत घोषित किया जाए, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस के कुछ नेताओं ने तथाकथित “धार्मिक तुष्टिकरण” की राजनीति के चलते इसे विवादित बना दिया। उन्होंने यह तर्क दिया कि गीत के कुछ अंश “धार्मिक भावनाओं” से जुड़े हैं, इसलिए केवल इसकी पहली दो पंक्तियों को मान्यता दी जाएगी।
वास्तव में यह निर्णय न केवल दुर्भाग्यपूर्ण था, बल्कि राष्ट्र की भावना के साथ विश्वासघात जैसा था। जिस गीत ने इस देश की स्वतंत्रता यात्रा में क्रांतिकारी भूमिका निभाई, उसे दो पंक्तियों में सीमित कर देना- यह सांस्कृतिक दुर्बलता और राजनीतिक कायरता
दोनों का परिचायक था। यह उस भारत के साथ अन्याय था जिसने “वन्दे मातरम्” को अपने प्राणों से भी ऊपर रखा था।
तुष्टिकरण की यह नीति केवल वन्दे मातरम् तक सीमित नहीं रही, यह धीरे-धीरे भारत की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने का प्रयास बन गई। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अपनी जड़ों से काटने की यह सोच वास्तव में भारतीयता की आत्मा पर प्रहार थी।
आज जब देश आत्मगौरव के नवयुग में प्रवेश कर रहा है, तब “वन्दे मातरम्” के पूर्ण स्वरूप को पुनः प्रतिष्ठित करना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने जिस प्रकार सम्पूर्ण “वन्दे मातरम्” गीत गाने का आह्वान किया है, वह केवल एक औपचारिकता नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय जागरण का प्रतीक है। इस गीत के सम्पूर्ण पाठ में भारत की भूमि, जल, वायु, अन्न और संस्कृति की आराधना है। यह भारत माता के उस रूप का चित्रण है जो समृद्धि, शौर्य, करुणा और सौंदर्य से परिपूर्ण है।
आज समय आ गया है कि देश की नई पीढ़ी को यह बताया जाए कि “वन्दे मातरम्” मात्र एक गीत नहीं, बल्कि यह हमारी आत्मा की धड़कन है। यह गीत हमें स्मरण कराता है कि भारत केवल भूमि का टुकड़ा नहीं, वह हमारी जननी है और जननी के प्रति श्रद्धा किसी राजनीति का विषय नहीं हो सकती।
अब आवश्यकता है कि “वन्दे मातरम्” को उसके पूर्ण स्वरूप में राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक के हृदय में पुनः प्रतिष्ठित किया जाए। विद्यालयों, संस्थानों, संसद भवनों और जनसभाओं में इसका पूर्ण गायन होना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी भी समझ सके कि जिस गीत ने भारत को स्वतंत्रता दी, उसे संकुचित या सीमित नहीं किया जा सकता।
वन्दे मातरम् वह उद्घोष है जो हमें विभाजन नहीं, एकता की प्रेरणा देता है। यह गीत हमें किसी धर्म, भाषा या क्षेत्र से नहीं, बल्कि मातृभूमि से जोड़ता है। जब तक इस गीत की ध्वनि हमारे हृदयों में गूंजती रहेगी, तब तक भारत की आत्मा अमर रहेगी।
वन्दे मातरम्: भारत की पहचान, भारत की प्राणधारा और भारत का शाश्वत नाद है।
मीना चैबे
प्रदेश मंत्री भाजपा, उत्तर प्रदेश



