त्रिपुरा में विपक्षी गठबंधन को चेतावनी

पूर्वोत्तर भारत के राज्य त्रिपुरा में दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव ने विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ को चेतावनी दी है कि इस तरह की एकता से भाजपा को नहीं पराजित किया जा सकता है। लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में हुए उपचुनावों को सेमी फाइनल माना जा रहा था। इन उपचुनावों से विपक्षी दलों की एकता में कितना दम है, इसका परीक्षण होना था। हालांकि दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में विपक्षी दलों की असमंजसपूर्ण स्थिति से यही अनुमान लगाया जा रहा था कि एकता की डोर अभी कमजोर है। त्रिपुरा में इसी का संकेत मिला है क्योंकि यह वामपंथियों का गढ़ था जिसे भाजपा ने छीन लिया। ममता बनर्जी ने जब पश्चिम बंगाल पर कब्जा किया, तब त्रिपुरा में भी उनका आधार मजबूत हुआ था लेकिन विपक्षी दलों की एकता के चलते ही कांग्रेस और टीएमसी बिखर गयी है। उधर, उपचुनाव से ठीक पहले गृहमंत्री अमित शाह ने टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देवबर्मन से वार्ता करके एक बड़ा सियासी दांव चला। दूसरी तरफ वामपंथी और टीएमसी के लोग यह नहीं तय कर पाए कि टिपरा मोथा के साथ मिलकर ही भाजपा को पराजित कर सकते हैं। टिपरा मोथा को वामपंथी अपने साथ क्यों नहीं कर पाए, जबकि देववर्मन को आदिवासियों की आवाज कहा जाता है। सीपीआई (एम) विधायक समसुल हक की मौत के कारण ही बोक्सानगर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ। यह सीट वामपंथियों की थी लेकिन भाजपा ने उनको पराजित कर दिया। धनपुर सीट जरूर भाजपा की थी क्योंकि केन्द्रीय मंत्री प्रतिभा भौमिक के इस्तीफे से खाली हुई थी। विपक्षी गठबंधन इसे भी छीनने में असफल रहा है। ध्यान रहे कि पहले टिपरा मोथा ने इंडिया का साथ देने का वादा किया था।
देश के छह राज्यों की सात विधानसभा सीटों पर 5 सितंबर को हुए उपचुनाव के लिए 8 सितम्बर वोटों की गिनती चल रही थी। बीजेपी ने त्रिपुरा की दोनों सीटों पर कब्जा जमा लिया है। वहीं इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उत्तर प्रदेश के घोसी विधानसभा सीट पर जारी मतगणना में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह लगातार बीजेपी के दारा सिंह चैहान पर बढ़त बनाए हुए हैं। भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार, घोसी विधानसभा उपचुनाव के 5वें दौर की मतगणना में सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह बढ़त बनाए हुए थे। उत्तराखंड की बागेश्वर सीट पर बीजेपी की पार्वती दास आगे थीं तो वहीं पश्चिम बंगाल की धूपगुड़ी सीट पर भी बीजेपी से तापसी रॉय आगे थी। चुनाव आयोग के मुताबिक, बीजेपी ने त्रिपुरा के सिपाहीजला जिले की धनपुर और बोक्सानगर विधानसभा सीटें जीत ली हैं। करीब 66 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाताओं वाली बोक्सानगर सीट पर बीजेपी ने कब्जा जमा लिया है। धनपुर में बिंदु देबनाथ को जीत मिली है।वहीं बोक्सानगर में बीजेपी के तफज्जल हुसैन ने 30,237 वोटों से जीत हासिल की। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले इन चुनावों को विपक्षी गुट ‘इंडिया’ के लिए बड़े टेस्ट के रूप में देखा जा रहा है।
त्रिपुरा उपचुनाव से ठीक कुछ दिन पहले टिपरा मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मन ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्वोत्तर के समन्वयक संबित पात्रा ने कहा, प्रद्योत माणिक्य जी ने आज दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह जी के साथ एक सार्थक बैठक की। उन्होंने स्वदेशी लोगों के अधिकारों और कल्याण के संबंध में चर्चा की। प्रधानमंत्री का त्रिपुरा और देश के बाकी हिस्सों के आदिवासियों के अधिकार सुरक्षित रखने और उन्हें सशक्त बनाने का दृष्टिकोण रहा है।“ सूत्रों ने उसी समय कहा कि यह बैठक राजनीतिक महत्व रखती है क्योंकि सीपीआई (एम) ने हाल ही में इस क्षेत्रीय पार्टी के साथ चर्चा की थी और त्रिपुरा के सिपाहीजला जिले में धनपुर और बॉक्सानगर सीटों पर उपचुनाव के लिए उसका समर्थन मांगा था। हालांकि देबबर्मन के करीबी सूत्रों ने संकेत दिया कि बैठक में बातचीत त्रिपुरा के आदिवासियों की संवैधानिक मांगों से संबंधित मुद्दों पर टिपरा मोथा सहित त्रिपुरा में क्षेत्रीय दलों से बात करने की केंद्र की पहल के अनुरूप थी। जब त्रिपुरा में आदिवासियों के अधिकारों की बात आती है तो देबबर्मन को सबसे प्रमुख आवाज के रूप में देखा जाता है। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इसी संदर्भ में कहा निश्चित रूप से यह वास्तव में प्रेरक है। मुझे विश्वास है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के मार्गदर्शन से उत्तर-पूर्व के राज्यों में स्वदेशी समुदायों द्वारा अनुभव की जाने वाली चुनौतियों का स्थायी समाधान प्राप्त किया जाएगा। एक सोशल मीडिया पोस्ट पर टिपरा मोथा प्रमुख ने संकेत भी दिया था कि उनकी पार्टी के सीपीआई (एम), जिसने उपचुनाव में उम्मीदवार उतारे हैं, का समर्थन करने की संभावना नहीं है।
इस प्रकार बीजेपी सीपीआई (एम) से मुकाबला करने के लिए तैयार हो गयी क्योंकि टिपरा मोथा और कांग्रेस ने उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। सीपीआई (एम) के विधायक समसुल हक की मौत के कारण बॉक्सानगर निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव आवश्यक हो गया था। केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक ने धनपुर के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया, इसलिए उस सीट पर उपचुनाव कराया गया। उपचुनाव के नतीजे पर देवबर्मन और अमित शाह की बैठक का असर पड़ा है।
टिपरा मोथा और कांग्रेस ने त्रिपुरा में दो विधानसभा सीट पर उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारा। टिपरा मोथा के विधायक व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अनिमेश देबबर्मा ने कहा कि धनपुर और बोक्सानगर विधानसभा उपचुनाव में उनकी पार्टी उम्मीदवार नहीं उतार रही है। उन्होंने कहा, “चुनाव लड़ने के लिए बहुत सारे संसाधनों, धन, लोगों, समय आदि की जरूरत होती है। इसके अलावा ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्षी दलों के बीच मतों का विभाजन होने पर सत्तारूढ़ दल को बढ़त मिल सकती है।” देबबर्मा ने दावा किया कि टिपरा मोथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी नहीं है। उन्होंने कहा कि पार्टी की अपनी विचारधारा और लोगों के प्रति प्रतिबद्धता है। देबबर्मा ने कहा, पार्टी में इस बात पर चर्चा की जा रही है कि टिपरा मोथा को उपचुनाव में किसे समर्थन देना चाहिए।
उन्होंने कहा, हम अपनी मांगों को लेकर केंद्र सरकार से बातचीत कर रहे हैं। भाजपा के किसी भी नेता ने दावा नहीं किया कि पार्टी ने टिपरा मोथा के साथ बातचीत शुरू की है।” त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) के अध्यक्ष आशीष कुमार साहा ने भी कहा था कि पार्टी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की भावना का सम्मान करते हुए धनपुर और बोक्सानगर में उपचुनाव नहीं लड़ेगी। उन्होंने कहा, “हम टीपीसीसी और दिल्ली नेतृत्व के फैसले के अनुसार उपचुनाव नहीं लड़ रहे। भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट करने के लिए एक विरोधी मंच ‘इंडिया’ बनाने वाली कांग्रेस उपचुनाव में विपक्षी वोट बैंक को कमजोर नहीं होने देना चाहती। इसीलिए पार्टी ने उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया।”
‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने धनपुर और बोक्सानगर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव के लिए पहले ही अपने उम्मीदवार उतार दिए थे। कांग्रेस ने पिछला विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था जबकि अकेले चुनाव लड़ने वाली पार्टी टिपरा मोथा 13 सीट जीतकर मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरी थी। अब भाजपा की जीतने विपक्षी दलों को दुबारा रणनीति बनाने पर मजबूर किया है। (हिफी)
(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)