यूपी में जब डबल इंजन ने थामा बच्चों का हाथ

(अनुष्का-हिफी फीचर)
उत्तर प्रदेश में 2017 के बाद से शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव देखने को मिले हैं, जब राज्य की बागडोर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभाली और केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पहले से ही सक्रिय थी। इस ‘डबल इंजन सरकार’ ने शिक्षा को विकास का आधार मानते हुए प्राथमिकता में रखा, और यही कारण है कि पिछले सात-आठ वर्षों में राज्य में स्कूलों में नामांकन, छात्रों की उपस्थिति, अधोसंरचना, शिक्षण गुणवत्ता और समावेशी नीतियों में ऐतिहासिक प्रगति देखी गई है।
2017 में जब स्कूल चलो अभियान को फिर से प्रभावशाली रूप में शुरू किया गया, तब प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नामांकन 1.34 करोड़ था, जो 2023-24 तक बढ़कर 1.92 करोड़ से अधिक हो गया। इसका मतलब है कि करीब 58 लाख नए छात्रों को स्कूलों की ओर आकर्षित किया गया। वर्ष 2024 की वार्षिक शिक्षा रिपोर्ट और एएसईआर-एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कक्षा तीन के छात्रों में पढ़ने की क्षमता 2018 में 12.3 फीसद थी, जो 2024 में बढ़कर 27.1 फीसद हो गई। इसी तरह, कक्षा पांचवी में दूसरे स्तर की किताब पढ़ सकने वाले बच्चों की संख्या 26.8 फीसद से बढ़कर 50.5 फीसद हो गई। गणितीय कौशल में भी भारी सुधार हुआ है, कक्षा तीन में घटाव (माइनस) करने वाले छात्रों की संख्या 6.6 फीसद से बढ़कर 31.9 फीसद हो गई, और कक्षा पांच में भाग हल कर सकने वाले छात्रों की संख्या 17 फीसद से बढ़कर 31.7 फीसद हो गई। यह सुधार दर्शाता है कि केवल नामांकन नहीं, बल्कि सीखने की गुणवत्ता पर भी ध्यान दिया गया है।
इस बदलाव के पीछे अनेक सरकारी योजनाएं और नीतियाँ रही हैं। सबसे पहले तो सरकार ने प्रत्येक छात्र को 1200 रुपये की प्रत्यक्ष नकद सहायता देना शुरू किया, जिससे वे यूनिफॉर्म, बैग, जूते, मोजे और किताबें खरीद सकें। इसका परिणाम यह हुआ कि परिवारों पर आर्थिक दबाव घटा और बच्चों की स्कूल उपस्थिति में उल्लेखनीय सुधार आया। साथ ही मिड-डे मील योजना को भी मजबूत किया गया और अब यह लगभग 95 प्रतिशत छात्रों को कवर करती है। इन प्रयासों से विशेष रूप से गरीब और ग्रामीण परिवारों के बच्चे लाभान्वित हुए हैं।
अवसंरचना के मोर्चे पर ऑपरेशन कायाकल्प और प्रोजेक्ट अलंकार जैसे कार्यक्रमों ने सरकारी स्कूलों को आधुनिक बनाने में अहम भूमिका निभाई। ऑपरेशन कायाकल्प के तहत राज्य के 1.3 लाख से अधिक प्राथमिक स्कूलों में साफ-सुथरे शौचालय, पीने का पानी, बिजली, स्मार्ट क्लास, लाइब्रेरी और खेल मैदान जैसी सुविधाएँ सुनिश्चित की गईं। प्रोजेक्ट अलंकार ने
माध्यमिक स्कूलों को कंप्यूटर लैब, साइंस लैब और स्मार्ट क्लास जैसी डिजिटल सुविधाओं से लैस किया। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री-श्री स्कूलों और मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट स्कूलों ने भी शिक्षा के गुणवत्ता मानकों को नया आकार दिया। डिजिटलीकरण के इस युग में सरकार ने ई-पाठशालाएं, टेबलेट वितरण, ऑनलाइन सामग्री और स्मार्ट क्लासेस को बढ़ावा दिया है। इससे विशेष रूप से कोविड के समय में शिक्षण बाधित नहीं हुआ। निपुण मिशन के तहत शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को प्रदर्शन आधारित पुरस्कार दिए गए, जिससे स्कूलों में प्रतिस्पर्धात्मक सुधार की भावना बढ़ी।
उत्तर प्रदेश में शिक्षा में हुई इस प्रगति को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक उदाहरण लिया जा सकता है। ग्राम कोंवरपुर, जो पहले शिक्षा में पिछड़ा हुआ क्षेत्र माना जाता था और 2017 तक वहां के प्राथमिक विद्यालय में मात्र 120 बच्चे नामांकित थे, वह भी अधूरी उपस्थिति और बिना बुनियादी सुविधाओं के। स्कूल में शौचालय नहीं था, कक्षा की दीवारें टूटी थीं, और पेयजल की सुविधा नहीं थी। इसके बाद कायाकल्प योजना के अंतर्गत इस स्कूल को पूरी तरह से पुनर्निर्मित किया गया। सरकार की डीबीटी योजना से वहाँ के छात्रों को यूनिफॉर्म और किताबों के लिए सीधे पैसे मिले, और इससे अभिभावकों में विश्वास बढ़ा। अब उस स्कूल में लगभग 220 बच्चे नामांकित हैं और औसतन उपस्थिति दर 85 फीसद तक पहुंच चुकी है। एक छात्र रामदेव, जो पहले पढ़ाई में रुचि नहीं लेता था, अब गाँव का पहला छात्र है जिसने कक्षा 10वीं में प्रथम श्रेणी से परीक्षा पास की। यह बदलाव केवल नीतियों से नहीं आया, बल्कि उनके प्रभावी क्रियान्वयन और लोगों की भागीदारी से संभव हुआ।
सरकार की योजनाएं विशेष रूप से लड़कियों और पिछड़े समुदायों पर केंद्रित रही हैं। यूपी के 346 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में 76,000 से अधिक लड़कियों को आवासीय शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। इसके अलावा बालिका छात्रवृत्ति योजना और अल्पसंख्यक/ओबीसी छात्रवृत्तियों ने आर्थिक रूप से कमजोर तबके के छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने और आगे की पढ़ाई के लिए तैयार किया है। हालांकि इन उपलब्धियों के बावजूद चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कुछ क्षेत्रों में अभी भी शिक्षक-छात्र अनुपात संतुलित नहीं है, और उच्च शिक्षा की पहुंच सीमित है। हालांकि सरकार ने हाल ही में 19 नए डिग्री कॉलेजों की घोषणा की है, फिर भी जरूरत के मुकाबले यह संख्या कम है। निजी और सरकारी स्कूलों के बीच गुणवत्ता और संसाधनों का अंतर भी एक दीर्घकालीन चिंता है।
कुल मिलाकर, उत्तर प्रदेश की शिक्षा नीति में ‘डबल इंजन सरकार’ के तहत एक व्यापक और दूरगामी बदलाव आया है। अब शिक्षा केवल नामांकन तक सीमित नहीं रही, बल्कि गुणवत्ता, समावेश और व्यावहारिक साक्षरता को प्राथमिकता दी जा रही है। यदि यही रफ्तार बनी रही और नीतियों को स्थानीय आवश्यकताओं
के अनुसार निरंतर परिष्कृत किया जाता रहा, तो उत्तर प्रदेश आने वाले वर्षों में न केवल देश के सबसे बड़े राज्य के रूप में, बल्कि सबसे शिक्षित और सशक्त प्रदेश के रूप में भी जाना जाएगा। (हिफी)