…जब अन्न का अपमान नहीं सह सकी पार्वती

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार की बात है जब भगवान शिव ने प्रकृति के महत्व को कम बताया और माता पार्वती से कहा कि संसार की हर चीज माया है। उन्होंने भोजन को भी माया बताया और कहा कि शरीर और अन्न का कोई विशेष महत्व नहीं है। अब चूंकि प्रकृति तो देवी का ही एक रूप है। ऐसे में महादेव की यह बात सुनकर माता पार्वती को अन्न का अपमान लगा, जिससे वह बहुत आहत हुईं। व्यथित जगदंबा ने शिव जी को अन्न का महत्व समझाने का निश्चय किया और उन्होंने संसार से अन्न को ही लुप्त कर दिया। माता पार्वती के संकल्प के चलते पूरी धरती पर अन्न की भारी कमी हो गई। खेत सूख गए, भंडार खाली होने लगे और लोग भूख से व्याकुल होकर हाहाकार मचाने लगे। देवताओं और ऋषियों ने जब यह स्थिति देखी, तो सभी ने माता पार्वती से करुणा की प्रार्थना की। शिव जी को भी अपने कहे पर पछतावा हुआ। उन्होंने देवी को मनाया और अपनी भूल स्वीकारी।
इसके बाद माता पार्वती ने देवी अन्नपूर्णा का दिव्य रूप धारण किया और वे हाथों में अक्षय पात्र लिए प्रकट हुईं। यह एक ऐसा पात्र है, जिसमें भोजन कभी समाप्त नहीं होता। यह रूप धरतीवासियों को अन्न और ऊर्जा का आशीर्वाद देने के लिए अवतरित हुआ। शरीर के लिए भोजन के महत्व को समझने के बाद भोलेनाथ भी भिक्षु का रूप धारण कर माता अन्नपूर्णा के सामने पहुंचे। उन्होंने विनम्रता से भोजन मांगा और स्वीकार किया कि अन्न और शरीर दोनों ही जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। माता अन्नपूर्णा ने उन्हें भोजन का दान दिया, जिसे महादेव ने पृथ्वी के लोगों में वितरित कर अकाल की स्थिति समाप्त की। इस तरह देवी ने समझा दिया कि अन्न केवल शरीर का पोषण नहीं करता, वह आत्मा के लिए भी सेवा का माध्यम है।
मान्यता है कि माता अन्नपूर्णा की कृपा से घर में अन्न की कभी कमी
नहीं होती। शास्त्रों में वर्णित है कि जिस दिन मां पार्वती अन्नपूर्णा का रूप धारण कर धरती पर अवतरित हुईं थी, वह मार्गशीर्ष पूर्णिमा की तिथि थी। इसलिए इस पावन तिथि को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में हर साल मनाया जाता है। इस दिन माता अन्नपूर्णा की पूजा, व्रत और दान आदि का बहुत महत्व माना
गया है। (मोहिता-हिफी फीचर)



