भाजपा की जीत से ताकतकर बनकर उभरे योगी

लखनऊ। उपचुनाव में मिली जीत ने भारतीय जनता पार्टी में बीते कई महीनों से चल रही अंदरूनी भितरघात पर लगाम कस दी है। लोकसभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद पार्टी के भीतर ही योगी के नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले नेताओं को इस जीत ने निरुत्तर कर दिया है। सिर्फ योगी ही नहीं, इस जीत से भाजपा संगठन भी ज्यादा शक्तिशाली बनकर उभरा है। संगठन में बदलाव के कयासों पर भी इस जीत की वजह से विराम लग सकता है।
बता दें कि विधानसभा की नौ सीटों पर उपचुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद कमान संभाली थी। साथ ही, 30 मंत्रियों को भी मोर्चे पर तैनात किया था। संगठन के विस्तार के लिए सदस्यता अभियान उपचुनाव में जीत की बड़ी वजह बनकर उभरा। इसने बड़े नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में पिरोने का काम किया, जिसका असर उपचुनाव में देखने को मिला है। पार्टी द्वारा उपचुनाव में श्श्बंटेंगे तो कटेंगेश्श् और श्श्एक रहेंगे तो सेफ रहेंगेश्श् नारों का इस्तेमाल मुफीद साबित हुआ। करीब डेढ़ वर्ष बाद प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी इन नारों को तवज्जो मिलनी तय है, जो वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने का काम करेंगे। खासकर विपक्ष द्वारा चुनाव को जातियों की गणित में उलझाने का फॉर्मूले की काट भाजपा इनके जरिए करेगी।
लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम में अचानक बदलाव आया और भाजपा के तमाम बड़े नेता दिल्ली तलब किए जाने लगे। मुख्यमंत्री की बैठकों में कई बड़े मंत्रियों की गैरमौजूदगी को उनकी नेतृत्व से नाराजगी से जोड़ा जाने लगा। विपक्ष ने भी इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के कयासों को बल देने लगे। हालांकि इससे इतर योगी पार्टी संगठन को मजबूत करने में जुटे रहे। उपचुनाव वाले जिलों में उनके ताबड़तोड़ दौरों ने सियासी हवा का रुख बदल दिया। नतीजतन, लोकसभा चुनाव के बाद संगठन की समीक्षा बैठकों में शामिल न होने वाले नेता भी अपना रुख बदलने को मजबूर हो गए। इतना ही नहीं, सरकार और संघ के बीच सांमजस्य पर भी काम हुआ जिसका असर उपचुनाव में जमीन पर देखने को मिला।