राजनीति

योगी का जज्बा बरकरार

 

 

 

लोकसभा चुनाव में भाजपा को कई जगह उम्मीद के अनुरूप सांसद नहीं मिल पाये। इनमें सबसे ज्यादा निराशा उत्तर प्रदेश में हुई है जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सफलता के प्रति लगभग आश्वस्त थे। भाजपा को सिर्फ 33 सांसद मिल पाये लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जज्बे में कोई कमी नहीं दिखाई पड़ रही है। केन्द्रीय नेतृत्व ने भी योगी को किसी प्रकार की ग्लानि का एहसास नहीं होने दिया हैं। हालांकि कई दौर की बैंठक के बाद ऐसे कारण सामने आये हैं जिनके चलते भाजपा को वांछित सफलता नहीं मिल पाई लेकिन पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के चेहरे पर शिकन न आए, इसलिए योगी ने प्रदेश के विकास के हित में आदेश जारी किए हैं। बीते दिनों गोरखपुर में जनसमस्याओं के प्रति लापरवाही बरतने वाले अफसरों को कड़े निर्देश दिये तो मंडल के सांसदों और विधायकों को प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सभी खामियां दूर करने को कहा है। योगी जानते है कि निराश कार्यकर्ता लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। इसलिए न वे स्वयं निराश हैं और न नेताओं व कार्यकर्ताओं को निराश होने देना चाहते हैं।

प्रदेश में 20 से 25 जून के बीच मानसून आने की संभावना है। ऐसे में योगी सरकार मानसून को लेकर अलर्ट हो गयी है। इस संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उच्च स्तरीय बैठक कर  बाढ़ की स्थिति से निपटने के लिए अधिकारियों को खाका तैयार करने का आदेश दिया ताकि प्रदेशवासियों और उनके मवेशियों को समय रहते सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जा सके। राहत आयुक्त जीएस नवीन ने बताया कि मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरुप बाढ़ की स्थिति से निपटने की तैयारियां शुरू कर दी गयी हैं।  विशेष निगरानी के लिए टीमों का गठन कर अलर्ट कर दिया गया है, जिसमें सिंचाई विभाग, कृषि विभाग और पशुपालन विभाग के अधिकारी के साथ कर्मचारी शामिल हैं।

ये राहत आयुक्त ने बताया कि बाढ़ से निपटने के लिए एनडीआरएफ की 7 टीमें, एसडीआरएफ की 18 टीमें और पीएसी की 17 टीमों की प्रीपोजीशनिंग की जा चुकी है। इसके साथ ही राहत आयुक्त कार्यालय द्वारा बाढ़ की अवधि में मौसम विभाग, सिंचाई विभाग, कृषि विभाग और केंद्रीय जल आयोग से रिपोट्स प्राप्त कर दैनिक समीक्षा का रोस्टर तैयार कर लिया गया है ताकि बाढ़ प्रबंधन के संबंध में आवश्यक कार्यवाही की जा सके।

बाढ़ से निपटने की तैयारी के लिए सभी जनपदों को बाढ़ पूर्व तैयारी चेक लिस्ट भेजी जा चुकी है। योगी सरकार ने प्रदेश में बाढ़ समेत अन्य आपदा से निपटने के लिए 400 आपदा मित्रों की तैनाती की है। इन्हे 15 दिन की ट्रेनिंग के साथ यूनीफार्म, आईडी कार्ड, सर्टिफिकेट तथा इमरजेंसी रिस्पांडर किट उपलब्ध करायी गयी ।

इसमें कोई संदेह केंद्र में तीसरी बार सत्ता में आयी नरेंद्र मोदी सरकार को यूपी ने निराश किया है। अगर यूपी साथ देता तो हालात कुछ और ही होते। अब बीजेपी के लिए जरूरी है हार की वजहों को तलाशना। इसके अलावा उस पर बीजेपी संगठन तेजी से काम कर भी रहा है। कई दौर की बैठकों के बाद कई ऐसे कारण सामने भी आए हैं, जिनसे पता चलता है कि आखिर यूपी में बीजेपी का बुरा हाल क्यों हुआ? वहीं, बीजेपी के रणनीतिकारों के मुताबिक जल्द ही पूरी रिपोर्ट तैयार कर दिल्ली में आलाकमान को सौंपी जाएगी। उसके बाद कई महत्वपूर्ण फैसलें लिये जा सकते हैं, जिनमें पार्टी संगठन के साथ ही सरकार में बदलाव तक की बात कही जा रही है। सूत्रों के हवाले से जो खबर आ रही है, उसके मुताबिक यूपी में हार की प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार हो गई है। चुनाव में उतरे प्रत्याशी नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ के नाम पर खुद को जीता हुआ मानकर चल रहे थे। इसके कारण वे अति उत्साह में थे और मतदाताओं को यह बात खटक गई। इसके अलावा मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से लगातार दो बार जीत हासिल कर चुके प्रत्याशियों से जनता में नाराजगी थी। क्षेत्र में गैर मौजूदगी के अलावा कामकाज में ढिलाई इस नाराजगी की बड़ी वजह थी। कई सांसदों के लोगों के साथ गलत व्यवहार की शिकायतें भी थीं। कई जिलों में सांसद प्रत्याशी की लोकप्रियता इतनी हावी हो गई की बीजेपी कार्यकर्ता घरों से ही नहीं निकले।

यह बात भी समीक्षा के दौरान सामने आई कि पार्टी पदाधिकारियों का सांसदों के साथ तालमेल अच्छा नहीं रहा। इसके कारण मतदाताओं की वोट वाली पर्ची पहुंचाने का काम बहुत ढिलाई से हुआ। जबकि, इसी प्रकार के प्रबंधन से पूर्व में बीजेपी अप्रत्याशित नतीजे लाती रही है। इसके अलावा कुछ जिलों मे विधायकों की अपने ही सांसद प्रत्याशियों से नहीं बनी। तालमेल के अभाव में विधायकों ने उतने मन से प्रत्याशी का सहयोग नहीं किया।

समीक्षा में यह बात भी सामने आई है कि राज्य सरकार ने करीब 3 दर्जन सांसदों के टिकट काटने या बदलने के लिए कहा था, उसकी अनदेखी हुई। दावा है कि यदि सरकार की ओर से दिए गए सुझावों पर अमल होता तो नतीजा कुछ और हो सकता था। एक और जगह जहां बीजेपी के नेता कमजोर साबित हुए, वो है विपक्ष के संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के दावे का जवाब पूरी दमदारी से न दे पाना। विपक्ष के नेताओं में खासतौर पर अखिलेश यादव अपनी प्रत्येक सभा या रैली में बीजेपी द्वारा संविधान बदलने की बात को पूरी ताकत से उठा रहे थे। इसका परिणाम यह हुआ कि दलित और पिछड़े वर्ग में यह बात घर कर गई, जिसके चलते उसने इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों के पक्ष में काफी हद तक मतदान किया।

कांग्रेस का खटाखट वाला प्रचार भी भाजपा के विरोध में गया। वैसे तो बीजेपी के स्टार प्रचारकों और नेताओं ने अपने हर चुनावी भाषण में केंद्र और राज्य सरकार की ओर से गरीब कल्याण से जुड़ी योजनाओं का बढ़-चढ़कर बखान किया, लेकिन कांग्रेस की 8500 रुपए महीने की गारंटी वाली स्कीम ने मतदाताओं को खासा आकर्षित किया। जबकि, बीजेपी इस स्कीम के काउंटर में कोई सटीक गणित लोगों को नहीं समझा सकी। स्थानीय समीकरणों के साथ ही लगभग हर सीट पर पेपर लीक और अग्निवीर जैसी योजनाओं की तमाम निगेटिव बातें विपक्ष, जनता को समझाने में कामयाब रहा, जबकि बीजेपी ठीक ढंग से काउंटर नहीं कर पाई। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री कपिल देव अग्रवाल कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के अप्रत्याशित नतीजे आए हैं, इसमें कोई दो राय नहीं हैं। इसकी समीक्षा प्रदेश संगठन की ओर से की जा रही है। ऐसे में निश्चित रूप से हार के कई कारण हैं, जिनका अनुमान नहीं लगाया जा सका लेकिन निराश होने की जरूरत नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यही प्रयास कर रहे हैं। (हिफी)

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)

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