लेखक की कलम

हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता और विकास

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नक्सलवाद और उग्रवाद से खिन्न होकर कहा था कि इसमें कोई दो राय नहीं कि हिंसा के प्रति हमारी सहिष्णुता जीरो के बराबर ही रहेगी लेकिन उन क्षेत्रों मंे भी हम विकास करेंगे ताकि भटके हुए लोग सही रास्ते पर आ सकें। यह बात नक्सलवाद से जुड़े कई लोगांे की समझ मंे आयी लेकिन जो नहीं समझे उनके प्राण लेने मंे भी कोई संकोच नहीं किया जा रहा है। नक्सलवाद से प्रभावित 17 जिले हुआ करते थे लेकिन अब इनकी संख्या घटकर सिर्फ 6 रह गयी है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया है कि इसी वर्ष दिसम्बर तक सभी जिले नक्सल-मुक्त हो जाएंगे। नक्सलियों के खिलाफ युद्ध स्तर पर अभियान चल रहा है। पिछले एक दशक में 8000 से अधिक लोगों ने नक्सलवाद का रास्ता छोड़ दिया है। सबसे ज्यादा प्रभावित अब छत्तीसगढ़ राज्य है जहां भाजपा की ही सरकार है। अभी गत दिनों बीजापुर के नेशनल पार्क इलाके में पीएलजीए बटालियन नम्बर-एक की कम्पनी 2 का डिप्टी कमांडर सोढी कन्ना मुठभेड़ मंे मारा गया। इस पर 8 लाख का ईनाम घोषित था। माना जाता है कि अब नक्सलियों की रीढ़ टूट गयी है और ज्यादा से ज्यादा संख्या मंे लोग समर्पण करेंगे।
बीजापुर के नेशनल पार्क इलाके में सुरक्षाबलों और नक्सली के बीच जबरदस्त मुठभेड़ हुई। इसमें एक बड़ा नाम मारा गया। बटालियन नंबर 1 की कंपनी 2 का डिप्टी कमांडर सोढ़ी कन्ना ढेर हो गया। पुलिस को इस नक्सली की काफी वक्त से तलाश थी क्योंकि उस पर 8 लाख का इनाम था। सोढ़ी कन्ना का शव मौके पर ही मिल गया, उसके पास से एक थ्री नॉट थ्री रायफल, भारी मात्रा में विस्फोटक और दूसरे नक्सली सामान बरामद किए गए हैं। ये सारी चीजें बताती हैं कि वो कोई आम लड़ाका नहीं था। ये वही सोढ़ी कन्ना था जो कुख्यात नक्सली हिडमा का करीबी माना जाता था। बटालियन में इसे स्नाइपर की जिम्मेदारी दी गई थी। मतलब वो दूर से टारगेट करने में माहिर था और ऐसे लोग आमतौर पर ऑपरेशन की जान माने जाते हैं।
नक्सली समस्या निपटने के लिए 2019 से सुरक्षा संबंधी खालीपन को भरने के लिए 280 नए शिविर स्थापित किए गए हैं। 15 नए संयुक्त कार्य बल बनाए गए हैं, तथा विभिन्न राज्यों में राज्य पुलिस की सहायता के लिए 6 सीआरपीएफ बटालियनों को तैनात किया गया है। इसके साथ ही, नक्सलियों के वित्तपोषण को रोकने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सक्रिय करके एक आक्रामक रणनीति अपनाई गई है, जिसके परिणामस्वरूप उनके लिए वित्तीय संसाधनों की कमी हो गई है। कई लंबी अवधि के ऑपरेशन चलाए गए, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि नक्सलियों को घेर लिया जाए, ताकि उन्हें भागने का कोई मौका न मिले। नक्सलवाद के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस नीति के तहत, मार्च 2025 तक 90 नक्सली मारे गए, 104 गिरफ्तार हुए और 164 ने आत्मसमर्पण किया। 2024 में, 290 नक्सलियों को बेअसर किया गया, 1,090 को गिरफ्तार किया गया और 881 ने आत्मसमर्पण किया।
हाल ही में 30 मार्च 2025 को बीजापुर (छत्तीसगढ़) में 50 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया। एक दिन पहले 29 मार्च को सुरक्षा एजेंसियों ने सुकमा (छत्तीसगढ़) में एक ऑपरेशन में 16 नक्सलियों को निष्प्रमभावी किया और भारी मात्रा में स्वचालित हथियारों का जखीरा बरामद किया। इससे 20 मार्च 2025 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर और कांकेर में दो अलग-अलग ऑपरेशनों में हमारे सुरक्षा बलों ने 22 नक्सलियों को मार गिराया, जिससे नक्सलमुक्त भारत अभियान में एक और बड़ी सफलता मिली। गृह मंत्री द्वारा साझा की गई जानकारी के अनुसार, 30 वर्षों में पहली बार, 2022 में वामपंथी उग्रवाद के कारण हताहतों की संख्या 100 से कम थी, जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। 2014 से 2024 तक नक्सली घटनाओं में काफी कमी आई है। लगभग 15 शीर्ष नक्सल नेताओं को निष्प्र भावी कर दिया गया है, और पंक्ति में अंतिम व्यक्ति तक पहुँचने के लिए सरकारी कल्याणकारी योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू किया गया है। बुद्ध पहाड़ और चकरबंधा जैसे क्षेत्र नक्सलवाद की पकड़ से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं। छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद के 85 प्रतिशत कैडर समाप्त हो चुके हैं। जनवरी 2024 से छत्तीसगढ़ में कुल 237 नक्सली मारे गए हैं, 812 गिरफ्तार हुए हैं और 723 ने आत्मसमर्पण किया है। पूर्वोत्तर, कश्मीर और वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों के 13,000 से अधिक लोग हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं।नक्सलियों की आर्थिक वृद्धि को रोकने और वित्तीतय स्थिरता को नष्टम करने के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और प्रवर्तन निदेशालय का इस्तेमाल किया गया, जिससे नक्सलियों से करोड़ों रुपए जब्त किए गए। धन शोधन निवारण कानून (पीएमएलए) के तहत मामले दर्ज किए गए और नक्सलियों को धन मुहैया कराने वालों को जेल भेजा गया। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास के लिए इन क्षेत्रों के लिए बजट आवंटन में 300 प्रतिशत वृद्धि की गई। दिसम्बर 2023 में, एक वर्ष के भीतर, 380 नक्सली मारे गए, 1,194 गिरफ्तार किए गए और 1,045 ने आत्मसमर्पण किया।
यह सच है कि माओवादी हिंसा ने मध्य और पूर्वी भारत के कई जिलों की प्रगति को रोक दिया था। इसीलिए 2015 में हमारी सरकार ने माओवादी हिंसा को खत्म करने के लिए एक व्यापक राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना तैयार की। हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता के साथ-साथ, हमने इन क्षेत्रों में गरीब लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए बुनियादी ढांचे और सामाजिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने पर भी ध्यान केन्द्रित किया है। वामपंथी उग्रवाद (एलडब्यूे ई), जिसे अक्सर नक्सलवाद के रूप में जाना जाता है, भारत की सबसे गंभीर आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में से एक है। सामाजिक-आर्थिक असमानताओं में मजबूती से समाया हुआ और माओवादी विचारधारा से प्रेरित, एलडब्यू ई ने ऐतिहासिक रूप से देश के कुछ सुदूरवर्ती, अविकसित और आदिवासी-बहुल क्षेत्रों को प्रभावित किया है।
इस आंदोलन का उद्देश्य सशस्त्र विद्रोह और समानांतर शासन संरचनाओं के माध्यम से भारत को कमजोर करना है, विशेष रूप से सुरक्षा बलों, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और लोकतांत्रिक संस्थानों को निशाना बनाना। पश्चिम बंगाल में 1967 के नक्सलबाड़ी आंदोलन से आरंभ, यह मुख्य रूप से रेड कॉरिडोर में फैल गया, जिसने छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ हिस्सों को प्रभावित किया। माओवादी विद्रोही उपेक्षित लोगों, विशेष रूप से आदिवासी समुदायों के अधिकारों के लिए लड़ने का दावा करते हैं, लेकिन उनके तरीकों में सशस्त्र हिंसा, जबरन वसूली, बुनियादी ढांचे को नष्ट करना और बच्चों और नागरिकों की भर्ती शामिल है। भारत सरकार 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि नक्सलवाद को दूरदराज के इलाकों और आदिवासी गांवों के विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखा जाता है। (हिफी)

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