शरद की किताब से खुले सियासी पन्ने-1

(अशोक त्रिपाठी-हिफी फीचर)
महाराष्ट्र के सबसे चतुर नेता माने जाने वाले शरद पवार को उनके ही भतीजे ने पटकनी दे दी। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने अपने चाचा को भनक तक नहीं लगने दी और उनके विश्वसनीय नेताओं को तोड़कर एकनाथ शिंदे की सरकार मंे शामिल कर दिया। महाराष्ट्र की राजनीति इसी तरह के षड़यंत्रों से भरी रही है। शरद पवार की पुस्तक से राज्य की सियासत के पन्ने खुलते हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों भूचाल आया हुआ है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी- एनसीपी और अपने चाचा शरद पवार का दामन छोड़ अजित पवार मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे वाली सरकार में शामिल हो गए हैं। अजित पवार के साथ एनसीपी के कई विधायकों ने भी एनसीपी को टाटा बोल दिया। भतीजे के इस कदम से राज्य में पार्टी दो टुकड़ों में बिखर गई। अब एनसीपी में चाचा-भतीजे के कब्जे की लड़ाई भी शुरू हो गई है। दोनों ही नेता पार्टी पर कब्जे का दावा ठोक रहे हैं। अब से ठीक 24 साल पहले कांग्रेस से अलग होकर शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया था। किसी समय में कांग्रेस में कद्दावर नेता रहे शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने 10 जून, 1999 को नई पार्टी एनसीपी का गठन किया था। पार्टी के गठन के बाद से अब तक पार्टी की कमान लगातार शरद पवार के हाथों में रही। हाल ही में राजकमल प्रकाशन से शरद पवार की जीवनी “शरद पवारः अपनी शर्तों पर” प्रकाशित हुई है। इसके लेखक खुद शरद पवार हैं। पुस्तक में शरद पवार के निजी और राजनीतिक जीवन के कई रोचक किस्से पढ़ने को मिलेंगे। इन दिनों उनकी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर संकट के बादल छाए हुए हैं। पुस्तक में शरद पवार ने एनसीपी के गठन का विस्तार से वर्णन किया है। पुस्तक में एक अध्याय है ‘अन्तिम विभाजन’। इस अध्याय में खुद शरद पवार ने विस्तार से लिखा है कि किस प्रकार कांग्रेस में उनकी अनदेखी होने लगी थी और फिर एक दिन सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर बेबाक टिप्पणी रखने पर पार्टी ने पीए संगमा, तारीक अनवर सहित उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया।
बारहवीं लोकसभा के चुनाव सम्पन्न होने के बाद ही पार्टी मोर्चे पर काफी गलत चीजें घटित होने लगीं। मेरे और सोनिया गांधी के बीच पहले से ही काफी खटास थी। इस सम्बन्ध में कारणों की चर्चा मैं पहले भी कर चुका हूं परन्तु मैंने जिम्मेदारियों पर केन्द्रित कर कार्यकारी सम्बन्ध बनाए रखे। वह कांग्रेस अध्यक्ष थीं और मैं लोकसभा में पार्टी का नेता था। इससे पूर्व कि यह व्यवस्था भली प्रकार स्थापित हो, एक घटना ने इस कार्यकारी एकता के बारे में भी मेरा विश्वास तोड़ दिया। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के संसद सदस्यों को लेकर गठित कमेटियां संसदीय कार्यवाही का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। सदन में पार्टी के सांसदों की संख्या के अनुसार वह पार्टी विभिन्न संसदीय कमेटियों के सदस्यों को नामित करती है। स्पीकर की स्वीकृति के बाद वह कमेटी गठित मानी जाती है। जैसी परम्परा थी और जैसा व्यावहारिक रूप पहले से चला आ रहा था, मैंने संसदीय कमेटी के गठन के लिए सोनिया गांधी के साथ विस्तार से चर्चा की। भली प्रकार कमेटी के सदस्यों को अन्तिम रूप देने के बाद मैंने लिस्ट टाइप करवाई, सोनिया गांधी की स्वीकृति ली और लिस्ट लोकसभा के स्पीकर के पास भेज दी। दूसरे दिन स्पीकर जी.एम.सी. बालयोगी ने मुझे अपने कार्यालय में बुलाया। उन्होंने कहा, ‘मेरे सामने एक समस्या है। आपकी पार्टी की ओर से मेरे सामने दो लिस्टें हैं।’ मैं एकदम अचम्भित और भ्रमित हो गया। उन्होंने हमें स्पष्ट किया, ‘आपसे कमेटी सदस्यों की एक सूची प्राप्त करने के बाद कांग्रेस के मुख्य निर्देशक पी.जे. कूरियन ने मुझे एक और लिस्ट भेजी। इन दोनों लिस्टों के नामों में भिन्नता है।’
लोकसभा में कांग्रेस पार्टी का संसदीय नेता होने के नाते कमेटी के सदस्यों की लिस्ट स्पीकर को प्रस्तुत करना मेरा सर्वाधिकार था। चूंकि यह पार्टी का भीतरी मामला था इसलिए मैंने स्पीकर से इस विषय पर बातचीत नहीं की। मैंने स्पीकार से कहा, ‘मुझे इसमें कुछ संवाद का गैप (अन्तर) लगता है। मैं इसमें सुधार के बाद आपको दे दूंगा।’ दूसरी लिस्ट की फोटोकॉपी प्राप्त करने के बाद, मैं
वहां से चला आया। मैंने मिस्टर
कूरियन से दूसरी लिस्ट के विषय
में जानना चाहा। उन्होंने स्पष्ट रूप
से कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष के निर्देशानुसार दूसरी लिस्ट तैयार की गई थी।
‘आप जो कुछ कह रहे हैं, मुझे इस पर विश्वास नहीं हो रहा है।’ मैंने कहा। ‘मैं आपसे बहुत जूनियर हूं इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। आप कृपया मैडम से स्वयं ही बात कर लें।’ कूरियन ने मुझसे कहा। मैंने सोनिया गांधी के साथ मिलना निर्धारित किया। मैंने सोनिया गांधी से कहा, ‘विभिन्न संसदीय समितियों के लिए लिस्ट को अन्तिम रूप देने से पूर्व मेरे और आपके बीच विस्तार से चर्चा हुई थी। मैंने आपकी स्वीकृति के बाद ही यह लिस्ट स्पीकर के समक्ष प्रस्तुत की थी परन्तु स्पीकर को हमारी पार्टी की ओर से एक अन्य लिस्ट भी भेजी गई है। हम लोगों को दोनों लिस्टों में से एक वापस लेनी होगी। कृपया आप कूरियन से कहें, उन्होंने जो लिस्ट स्पीकर को भेजी है, उसे वापस ले लें।’
कांग्रेस अध्यक्ष ने शान्त भाव से उत्तर दिया, ‘तुम ही अपनी लिस्ट वापस ले लो।’ यह मुझे स्वीकार्य नहीं था। मैं लोकसभा में पार्टी का नेता था और मैंने तमाम औपचारिकताओं के बाद वह लिस्ट स्पीकर के सामने पेश की थी। मुझसे लिस्ट वापस लेने की बात करना वास्तव में मेरी पदावनति करना था। मैंने दृढ़ता से कहा, ‘यह उचित नहीं है।’ इस घटना ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि इस प्रकार की पार्टी में मैं कितने समय तक कार्य कर सकूंगा? इसके बावजूद मुझे जो भी जिम्मेदारियां दी गईं, मैं उनको निभाता रहा और पार्टी में बना रहा।
इसी बीच अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के गिरने के बाद 13वीं लोकसभा के चुनाव की घोषणा हो गई। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की एक बैठक में अन्य पार्टियों के साथ समझौते का विषय एक मीटिंग में विचारार्थ था। ए.आई.ए.डी.एम.के. कांग्रेस के लिए 6 सीट से अधिक छोड़ने को तैयार नहीं थी। मैंने महसूस किया कि यह कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को नीचा दिखानेवाला प्रस्ताव है। मैंने जब अपना विचार प्रस्तुत किया तो यह तय हुआ कि गुलामनबी आजाद स्वयं जाकर जयललिता से बात करें। यह माना जाता था कि इन दोनों के बीच अच्छे सम्बन्ध हैं। जयललिता के साथ आजाद की मीटिंग व्यर्थ साबित हुई। तब कांग्रेस वर्किंग कमेटी- सीडब्ल्यूसी ने मुझसे चेन्नई जाने को कहा। हम दोनों की बातचीत के बाद जयललिता 15 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ने को तैयार हो गईं। जब मैंने कांग्रेस की अध्यक्ष से इस फैसले के विषय में बताया तो उन्होंने कहा, ‘यह पार्टी के लिए एक सम्मानजनक समझौता है और सन्तोष व्यक्त किया।-क्रमशः (हिफी)